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Tuesday, September 27, 2011

कल किसी जगह पढ़ी हुई  ह्रदय स्पर्शी  कहानी......
फादर फोरगेट्स

             सुनो बेटे ! मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं। तुम गहरी नींद में सो रहे हो। तुम्हारा नन्हा सा हाथ तुम्हारे नाजुक गाल के नीचे दबा है। और तुम्हारे पसीना-पसीना ललाट पर घुंघराले बाल बिखरे हुए हैं। मैं तुम्हारे कमरे में चुपके से दाखिल हुआ हूं, अकेला। अभी कुछ मिनट पहले जब मैं लायब्रेरी में अखबार पढ़ रहा था, तो मुझे बहुत पश्चाताप हुआ। इसीलिए तो आधी रात को मैं तुम्हारे पास खड़ा हूं, किसी अपराधी की तरह।

जिन बातों के बारे में मैं सोच रहा था, वह ये हैं बेटे। मैं आज तुम पर बहुत नाराज़ हुआ। जब तुम स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहे थे, तब मैंने तुम्हें खूब डांटा... तुमने टाॅवेल के बज़ाय पर्दे से हाथ पोंछ लिए थे। तुम्हारे जूते गंदे थे, इस बात पर भी मैंने तुम्हें कोसा। तुमने फर्श पर इधर उधर चीजें फेंक रखी थी... इस पर मैंने तुम्हें भला बुरा कहा। 

नाश्ता करते वकत भी मैं तुम्हारी एक के बाद एक गलतियां निकालता रहा। तुमने डाइनिंग टेबल पर खाना बिखरा दिया था। खाते समय तुम्हारे मुंह से चपड़-चपड़ की आवाज़ आ रही थी। मेज़ पर तुमने कोहनियां भी टिका रखी थीं। तुमने ब्रेड पर बहुत सारा मख्खन भी चुपड़ लिया था। यही नहीं जब मैं आॅफिस जा रहा था और तुम खेलने जा रहे थे और तुमने मुड़कर हाथ हिलाकर बाय बाय, डैडी कहा था, तब भी मैंने भृकुटी तानकर टोका था, अपनी काॅलर ठीक करो।

शाम को भी मैंने यही सब किया। आॅफिस से लौटकर मैंने देखा कि तुम दोस्तों के साथ मिट्टी में खेल रहे थे। तुम्हारे कपड़े गंदे थे, तुम्हारे मोजों में छेद हो गए थे। मैं तुम्हें पकड़कर ले गया और तुम्हारे दोस्तों के सामने तुम्हें अपमानित किया । मोज़े महंगे हैं जब तुम्हें खरीदने पड़ेगे तब तुम्हें इनकी कीमत समझ में आएगी। ज़रा सोचो तो सही, एक पिता अपने बेटे का इससे ज्यादा दिल किस तरह दुखा सकता है ?

क्या तुम्हें याद है जब मैं लाइबे्ररी में पढ़ रहा था तब तुम रात को मेरे कमरे में आए थे, किसी सहमें हुए मृगछौने की तरह। तुम्हारी आंखें बता रही थीं कि तुम्हें कितनी चोट पहुंची है। और मैंने अखबार के ऊपर से देखते हुए पढ़ने में बाधा डालने के लिए तुम्हें झिड़क दिया था कभी तो चैन से रहने दिया करो। अब क्या बात है ? और तुम दरवाज़े पर ही ठिठक गए थे। 

तुमने कुछ नहीं कहा। तुम बस भागकर आए, मेरे गले में बांहें डालकर मुझे चूमा और गुडनाइट करके चले गए। तुम्हारी नन्ही बांहों की जकड़न बता रही थी कि तुम्हारे दिल में ईश्वर ने प्रेम का ऐसा फूल खिलाया था जो इतनी उपेक्षा के बाद भी नहीं मुरझाया। और फिर तुम सीढि़यों पर खट खट करके चढ़ गए। 

तो बेटे, इस घटना के कुछ ही देर बाद मेरे हाथों से अखबार छूट गया और मुझे बहुत ग्लानि हुई। यह क्या होता जा रहा है मुझे ? गलतियां ढूंढ़ने की, डांटने-डपटने की आदत सी पड़ती जा रही है मुझे। अपने बच्चे के बचपने का मैं यह पुरस्कार दे रहा हूं। ऐसा नहीं है बेटे, कि मैं तुम्हें प्यार नहीं करता, पर मैं एक बच्चे से जरूरत से ज्यादा उम्मीदें लगा बैठा था। मैं तुम्हारे व्यवहार को अपनी उम्र के तराजू पर तौल रहा था। 

तुम इतने प्यारे हो, इतने अच्छे और सच्चे। तुम्हारा नन्हा सा दिल इतना बड़ा है जैसे चैड़ी पहाडि़यों के पीछे से उगती सुबह। तुम्हारा बड़प्पन इसी बात से साबित होता है कि दिन भर डांटते रहने वाले पापा को भी तुम रात को गुडनाइट किस देने आए। आज की रात और कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है, बेटे। मैं अंधेरे में तुम्हारे सिरहाने आया हूं और मैं यहां घुटने टिकाए बैठा हूं, शर्मिंदा। 

यह एक कमज़ोर पश्चाताप हैं। मैं जानता हूं कि अगर मैं तुम्हें जगाकर यह सब कहूंगा, तो शायद तुम नहीं समझोगे। पर कल से मैं सचमुच तुम्हारा प्यारा पापा बनकर दिखाऊंगा। मैं तुम्हारे साथ खेलूंगा, तुम्हारी मज़ेदार बातें मन लगाकर सुनूंगा, तुम्हारे साथ खुलकर हंसूंगा और तुम्हारी तकलीफों को बाॅंटूंगा। आगे से जब भी मैं तुम्हें डांटने के लिए मुंह खोलूंगा, तो इसके पहले अपनी जीभ को अपने दांतों में दबा लूंगा। मैं बार बार किसी मंत्र की तरह यह कहना सीखूंगा , वह तो अभी छोटा बच्चा है.... छोटा बच्चा।

मुझे अफसोस है कि मैंने तुम्हें बच्चा नहीं, बड़ा मान लिया था। परंतु आज जब मैं तुम्हें गुड़ी-मुड़ी और थका-थका पलंग पर सोया देख रहा हूं, बेटे, तो मुझे एहसास होता है कि तुम अभी बच्चे ही तो हो। कल तक तुम अपनी मां की बांहों में थे, उसके कांधे पर सिर रखे। मैंने तुमसे कितनी ज्यादा उम्मीदें की थीं, कितनी ज्यादा!

----- डब्ल्यू. लिविंग्स्टन लारनेड

3 comments:

  1. इसे शायद आपने बैरंग पर पढा होगा। तस्वीर देखकर लगा कि शायद यही पोस्ट हो:
    http://bairang.blogspot.com/2011/09/blog-post_24.html

    हो सकता है मैं गलत हूँ।

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  2. haan pankaj....ye aapke hi blog par se liya hai.....bahut pahle kisi magjine me padhi thi....par us din jab aapke blog par dekha to bahut achcha laga.....phir vahin se liya......apne logo se baantne k liye.....

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  3. बहुत बढ़िया लिखा है आपने! और शानदार प्रस्तुती!
    मैं आपके ब्लॉग पे देरी से आने की वजह से माफ़ी चाहूँगा मैं वैष्णोदेवी और सालासर हनुमान के दर्शन को गया हुआ था और आप से मैं आशा करता हु की आप मेरे ब्लॉग पे आके मुझे आपने विचारो से अवगत करवाएंगे और मेरे ब्लॉग के मेम्बर बनकर मुझे अनुग्रहित करे
    आपको एवं आपके परिवार को क्रवाचोथ की हार्दिक शुभकामनायें!
    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/

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