रैगिंग के वो दिन
फाइन आर्ट्स पहुँचने के बाद ....महसूस हुआ के जितना हम समझ रहे थे वैसा आसान नहीं है सब ..............खास तौर पर स्केचिंग और ड्राइंग की क्लासेस ........सामने खड़े हुए इंसान को देख कर ज्यों का त्यों बना देना ....बड़ा मुश्किल का काम था ..............और जब किसी को ये पता चलता था कि हम आर्टिस्ट हैं तो सबसे पहले ये ही लोग पूछते थे कि ....हमारा फोटो बना दोगी ???........जैसे वो कोई बहुत ही अद्भुत वस्तु हैं .........और उनका फोटो बना लेना बहुत बड़ी कला है ....... ..... .या जब भी कोई हमारे बहुत अच्छा कलाकार होने का बखान करता तो ये जरूर बताया जाता कि ये बहुत अच्छा चित्र बनाती हैं समझ लो तुम बैठ जाओ तो बिलकुल तुम्हारा फोटो उतार के रख देगी ....
और ये कर पाना जरा मुश्किल काम था ...............क्यों कि जब भी कोई अपना चित्र बनवाने बैठता .........तो वो ये सोच कर बैठता कि हम बिलकुल उसकी फोटो खींच रहे हैं ......और अगर शकल न मिली ...तो ऐसा मुंह बनाता कि जैसे हम लोग बिलकुल बेवकूफ हैं और हमें कुछ आता जाता नहीं ..........फालतू में कलाकार बने बैठे हैं ..........
तो ड्राइंग में हाथ साधते साधते काफी वक़्त लगा ........और स्केचिंग करने कभी लंका (बी.एच.यू. के गेट के बाहर का एरिया ) कभी गंगा घाट तो कभी कैंट स्टेशन जाना पड़ता था ...........ज्यादातर तो हम लोग हॉस्पिटल के सामने के पार्क में या गंगा घाट जाते थे ......और वहां कहीं कहीं बैठ कर स्केच बनाते थे ......जो अनजान लोगो के लिए बड़ा ही उत्सुकता भरा विषय होता था .....सभी घेर कर खड़े हो जाते थे ..........और उस समय अच्छा चित्र न बन पा रहा हो तो बड़ी बेइज्जती सी महसूस होती थी .........
खैर कहते हैं न नया नया मुल्ला प्याज ज्यादा खाता है .......तो वही बात ..हम लोगो के साथ भी थी .....नए नए फाइन आर्टिस्ट ...... .........रात दिन स्केच और ड्राइंग बनाने में जुटे रहते .....
जिस समय हमने कॉलेज ज्वाइन किया था .........उसी समय मेरी सहेली अनामिका की दीदी को बेटा हुआ था वहीँ बी.एच.यू. हॉस्पिटल में .............करीब एक हफ्ते तक कॉलेज जाने के बाद पता चला कि हमारे इंट्रो पार्टी होने वाली है ......हलकी फुलकी रैगिंग तो होती ही रहती थी .... पर ऐसा कुछ नहीं था कि कोई बहुत ज्यादा परेशान हो .......बस नाम पूछना ,गाना सुनना .......यही सब होता था .......तो लंच होते ही हम चारो कॉलेज से निकल भागते थे ....जिनमे राजश्री और सुरेखा तो ..हॉस्टल चली जाती और मैं और अनामिका की दीदी के पास हॉस्पिटल पहुँच जाते ........
और लंच ख़तम होने तक वहीँ रहते ......सीनियर लोगो से डर के मारे छुपे रहते ........
और एक दिन अचानक पता चला के बड़े बड़े लोग जो काफी सीनियर थे .......आने वाले हैं ....और रैगिंग के लिए तैयार हो जाओ .....हम सभी कि हालत ख़राब हो गई .....क्यों कि मेरी क्लास में सिर्फ ४ ही लड़कियां थीं ..........
और सीनियर में भी एक तिवारी दा हैं जो बहुत बुरी तरह रैगिंग लेते हैं ..............ये सुन कर काफी चिंता हुई कि क्या होगा ?//....क्यों कि तिवारी दा को हम लोगो ने रूबरू नहीं देखा था ..................सिर्फ फोटोग्राफी की क्लास में लगी हुई उनकी फोटो देखी थी .....बोहरा सर जो हमारे फोटोग्राफी क्लास के टीचर थे .....उन्होंने कुछ टिपिकल और अलग अलग इम्प्रेशंस कि अच्छी अच्छी फ़ोटोज़ बोर्ड पर लगा रखी थी .....जिनमे तिवारी दा की भी कुछ पिक्चर्स थी .....उनको देख कर कुछ बहुत अच्छा इम्प्रेशन नहीं पड़ा था ....लगता था कुछ रूड टाइप कि पर्सनालिटी होगी उनकी ........खैर ......एक दिन हम लोग कैंटीन में चाय पीने गए तो पता चला कि पूरा सीनियर ग्रुप वहां बैठा हुआ है ......जिनमे .......राजीव दा , सविता दी , धर्मेश दा ,तिवारी दा और भी कुछ लोग थे जिनके नाम अब याद नहीं .......
किसी तरह चाय पीकर हम लोग भागे वहां से ......अगले दिन की चिंता में ..रात भर नींद नहीं आई .....बस यही लगता था कि इतने सारे लोगो के बीच मेंबहुत हंसी उड़ाई जाएगी ....और ये भी कह दिया गया था कि अनुपस्थित नहीं होना है ....क्यों कि जो नहीं आया उसे अकेले ये सब झेलना पड़ेगा .......सबके बीच में तो काम चल जायेगा पर अकेले ???? ये सोच कर ही ..हालत ख़राब थी ..............
Are auntie aapne aage nahi likha ..iske baad kya hua...padhne ke baad usukta badh jati hai ...lekin abhi tak bahut hi acha likha hai , acha anubhav hota hai Ragging ka bhi , hamare yahan bhi ragging hui thi,,hamne bahut enjoy kiya ragging, bahut sare bachche bahut darte the aur bahut to roye bhi...khair ye bhi Jindagi ka bahut acha samay hota hai aur har ek ko iska maja chakhna chahiye ....
ReplyDeleteye tewari da.... heheheheh...
ReplyDeletesahi likha hai.. maza aaya padh k..
BETU.