लिखिए अपनी भाषा में

Tuesday, September 21, 2010

बस ऐसे ही ....

              


       फाइन  आर्ट्स में पढने के दरम्यान मैंने पाया..........कि  अध्यापक से ज्यादा सीनिअर्स   जूनिअर्स  की  मदद करते हैं.....अब तो मुझे याद भी नहीं आता कि  सर लोग सिवा कुछ कुछ समझा देने के अलावा हमें और क्या बताते थे???........................... 
           कभी हम लोगो के काम में हाथ नहीं लगाते  थे..............सिर्फ अगर कुछ गलत बना हो तो वो जरूर बता देते थे  .....पर उनका उतना बता देना ही बहुत होता था...........आखिर कला ऐसी चीज है कि वो आपके अन्दर से निकालनी चाहिए...........सिर्फ रास्ता दिखाया जा सकता है  पर मंजिल पर पहुँचने की  इच्छा    और मेहनत   तो खुद को ही करनी होती है न.............और वो कोई कोई ही कर पाता है.....प्रयास करते करते  हर एक का अपना एक स्टाइल हो जाता है काम करने का........जिसे सिर्फ एक नज़र देख कर ही बताया जा सकता है कि ये किस कलाकार का काम है...........और अपना स्टाइल बनाते बनाते    बहुत समय लग जाता है....और ज्यादातर लोग असफल ही रह जाते हैं इस काम में...........शायद मैं भी इनमे से एक हूँ.......मैंने भी कभी अपना कोई स्टाइल बनाने  का प्रयास नहीं किया..............पता नहीं क्यों मुझे एक तरह से ही काम करते करते ऊब सी महसूस होने लगती है........शायद ये मेरी कमजोरी हो सकती है.......पर मैं संतुष्ट हूँ इस से.........और  मुझे कोई परेशानी नहीं.है ........मैंने पेंटिंग की  हर  विधा में काम किया है ....जैसे फेब्रिक कलर.....आयल कलर ....वाटर कलर...ग्लास कलर....इंक.....कलर इंक   या पेस्टल कलर..पेंसिल कलर में भी.....मुझे जो भी माध्यम हो पेंटिंग का .................बस मुझे अच्छा लगना   चाहिए.....सिर्फ आधुनिकता कि दौड़ में कुछ भी बना देना मुझे नहीं सुहाता.......मेरा ये मानना   है कि चित्र को खुद बख़ुद बोलना चाहिए.....न कि देखने वाले को पूछना पड़े कि ये क्या बनाया है???........जब कभी ऐसी  परिस्थिति आती है..........तो बड़ा अजीब सा महसूस होता है........आखिर हम चित्र किस लिए बनांते हैं.....??दूसरो  के  लिए ही न  ??? कि दूसरे उसे देखें और सराहे   ???...कुछ लोगो का ये कहना है कि हम स्वान्तः सुखाय के लिए चित्र बनाते हैं....तो फिर उसे सबके बीच प्रदर्शित ही क्यों करते हैं???.......अपने घर में ही रख कर सुख उठाएं....ये कोई कविता या कहानी तो नहीं है कि सिर्फ जो पढ़ रहा है वो ही आनंद  उठा रहा है.......चित्र तो सबकी सम्मिलित ख़ुशी के लिए हैं......और जो सुन्दर है वो सभी को ख़ुशी ही देगा.......वीभत्स और उटपटांग चित्र मुझे कभी पसंद नहीं आये चाहे वो कितने ही बड़े कलाकार के बनाये हुए क्यों न हों......जिसे देख के मन  को शांति या ख़ुशी न मिले वैसे चित्र मुझे पसंद नहीं.......आज कल बहुत से ऐसे  तथाकथित चित्रकार भी मिल जायेंगे..जिन्हें.....वास्तव में ज्यादा कुछ नहीं आता सिर्फ रंगों की  लीपापोती के अलावा.....और उनसे  एक बच्चा भी कुछ बनाने को कह दे तो वे बगलें झाँकने लगते हैं........इसी का नतीजा ये होता है छोटे छोटे बच्चो के मन में भी तथाकथित मोडर्न आर्ट के लिए सिवा एक हास्यास्पद फीलिंग के और कुछ नहीं.. रहता...कुछ भी ऊलजुलूल बना हो तो उसे मोडर्न आर्ट कह दिया जाता है.......ज्यादातर जन मानस में आज की  चित्रकला के लिए यही सोच है........हर समय की  चित्रकला अपने समय में मोडर्न ही होती है........मुझे लगता है चित्र ऐसे होने चाहिए जिनसे लोग खुद को जुडा हुआ महसूस करें.........और जिन चित्रों को देख कर बरबस ही मुंह से निकल पड़े वाह ........बहुत सुन्दर.....................न कि थोड़ी देर हैरत से  देखने के बाद...दर्शक पूछ ही बैठे ...............वैसे  ये क्या है????...और आर्टिस्ट के लाख सफाई और संतुष्ट  करने लायक .............उत्तर देने के बाद भी....................मुंह छुपा के हंस पड़े.......क्यों की हर कोई कलाकार तो नहीं................... ज्यादातर बहुत साधारण  ही लोग  होते  हैं जिन्हें ठीक   से पेंसिल से रेखा   भी खींचने   नहीं आता......पर वो भी ये तो बता ही सकते   हैंकि  ये चित्र सुन्दर है या बेकार   है.........

2 comments:

  1. चित्र को खुद बख़ुद बोलना चाहिए.....न कि देखने वाले को पूछना पड़े कि ये क्या बनाया है???
    बिल्कुर सही बात ....अच्छी पोस्ट
    शुभकामनाए
    यहाँ भी पधारे
    विरक्ति पथ

    ReplyDelete
  2. Sach me jb tk kisi painting ko dkh k ye smjh na aaye ki wo hai kya... usko bnane ka koi arth nai bnta...
    Chitra to aisa hona chahiye ki use dkhte hi mnn hazaron kalpanaye kr le..

    ReplyDelete