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Friday, September 12, 2025

आजकल

रात बारिश की आवाज़ से नींद खुली... 
 
पूरे लंबे शीशों वाली खिड़की /दरवाजे से बारिश देखती रही। मौसम थोड़ा ठंढा हो गया है .... 

बे-मौसम बारिश.... 

बहुत थकी हूँ...... बिना काम के ही...... मैं आजकल बिना कुछ किए ही थक जाती हूँ.... हद है .... बेतुकी चीज़ें याद आने लगीं हैं...... सिरहाने आधी पढ़ी किताब रख कर आख़िरी बार कब सोई थी!!! 

बारिश के बाद का भीगा, प्यारा मौसम है। गोमतीनगर वाले घर में होती तो अपनी रॉकिंंग चेयर पर बैठ कर कॉफ़ी पीती...... यहाँ ग्रीन टी पी रही हूँ ..... सामने किताबों का कुतुब मीनार बनता जा रहा है.... कुछ अधूरी किताबें देखते हुए सोच रही हूँ , एक आध तो उठाऊं, पूरी करूं.. 
                 फोन बहुत समय बर्बाद करता है यार.. कहते हैं कि किताबें लाना और उन्हें न पढ़ना अपराध है, इस अपराध की सज़ा अगर दी जाती तो मुझे बहुत दिनों की जेल काटनी पड़ सकती थी......... मेरे पास भी अनपढी  किताबों का ढेर लगा है...... न पढ़ पाने का दुख महसूस कर रही हूँ........ कभी कभी मैं कोई किताब बहुत मूड से शुरू करती हूँ और बीच में रोजमर्रा के कुछ झंझट और सबसे ज्यादा ये जान का दुश्मन फोन अपनी टांग अड़ाकर मेरा  ध्यान भटका देते हैं. किताब बेचारी निरीह सी मुझे ताकती  रह जाती है क्योंकि फिर मेरा वो मूड भी तो जल्दी नहीं बनता. 

       कई बार एकसाथ कई किताबे पढती रहती हूँ एक साथ, थोड़ी थोड़ी पढ़कर अगली उठा ली जाती है और बुक मार्क लगा कर रखी हुई किताबों का ढेर सिरहाने बढता चला जाता है....... 

पुरानी बिना पढ़ी कई किताबें रैक में रखी हुई हैं, अपनी बारी की प्रतीक्षा में, ऐसे ही तमाम नयी किताबें पुरानी किताबों को पीछे धकिया देती हैं, वो बेचारी अपने पढ़े जाने की प्रतीक्षा में देखती रह जाती हैं. 

वक्त के साथ मेरा मिजाज़ भी बदलता रहता है. पहले एक बार में एक किताब पढ़ती थी.... अभी भी मन सभी किताबें तत्काल पढने का होता है और किसी के भी साथ न्याय नहीं कर पाती.... 
मन नहीं लग रहा है आज पता नहीं क्यों 😔😔😔😔

देखें कल का दिन कैसा जाता है.... 
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Tuesday, July 15, 2025

यादें

कुछ  साल पहले  हिन्द युग्म प्रकाशन की तरफ से कुछ लेखकों के उपन्यासों का बहुत प्रचार किया जा रहा था....तो उसी से प्रभावित होकर मैने कुछ किताबें मंगाई थी. करीब आठ पुस्तकें मंगाई थी, दो तीन को छोड़कर बाकी मुझे पसंद नही आईं.... एक पुस्तक थी....नाम लिखना  उचित नही लग रहा....जिसका जिक्र मैने किया है....बल्कि उसे देख कर तो शर्मिंदा हो उठी मैं कवर से लेकर अंदर तक कई. अश्लील फोटोज ...और उपन्यास का तो कहना ही क्या.........और इस पुस्तक पर इसके लेखक वगैरह ऐसा बढ़ चढ़ के बोल रहे थे और आधुनिक बन रहे थे कि क्या कहें?  

              खैर मुझे तो ये नई वाली हिन्दी और गाली गलौज से भरे उपन्यास बहुत बुरे लगते हैं....शैलेश से मैने ये बात कही... तो उन्होंने कहा आप वापस कर दैं .....मैने लौटती डाक से वापस कर दिया..मैने उन्हें  लिखा था  ...ये पुस्तक  मंगाने का अफसोस हो रहा है......मुझे लगा था कि सिर्फ कवर तक बात होगी तो किसी तरह बरदाश्त कर लिया जायेगा.... ये तो अश्लील किताबों की श्रेणी मे रखने लायक है......जितनी भी किताबें  आज तक खरीदीं या  कहीं से खरीद कर मंगवाईं....उन सभी को जो सम्मान और प्यार मेरी छोटी सी लाइब्रेरी में मिला है....उनमे ये कहीं नही ठहरती.....ऐसा लग रहा है कि बहुत सी सभ्य शालीन महिलाओं के बीच कोई असभ्य और बेशर्मी की हद तक नग्न स्त्री खड़ी हो गई हो.....मुझे अब इस पुस्तक को छुपा के रखना पड़ेगा.....इस से अच्छा है कि मै इसे वापस भेज दूं.....मुझे नहीं चाहिए......प्लीज़ अपना एड्रेस भेजो कि मै तुम्हे इसे कोरियर कर सकूं.....बुरा मत मानना.....पर सचमुच....मुझे बहुत ही अशोभनीय लगी...या मैं इतनी आधुनिक नहीं हो पाई हूं अभी तक.....