हम और हमारी तन्हाई
जिंदगी और परिस्थितियों ने हमें परिवार से अलग कर दिया है और ..........अकेला रहना सिखा दिया है .........कितनी बार ऐसा लगता है कि आस पास सारा माहौल भरा हुआ होने पर भी......सन्नाटा सा महसूस होता है....धीरे धीरे ऐसा लगने लगा है ......... ये अकेलापन इंसान पर इस कदर हावी होता जा रहा है .........कि उसे ख़तम कर के ही दम लेगा.......
इतने वर्षो में कितना कुछ बदल गया है.......रिश्तो का दायरा सिमटता चला जा रहा है....इतना तंग हो गया है कि रिश्तों के अर्थ ही खोते जा रहे हैं.....न कोई किसी के घर जाना पसंद करता है....न अपने घर किसी का आना.......अकेले रहने की .....सबकी ऐसी आदत पड़ती जा रही है कि किसी का आना या रहना भी एक दखलंदाजी सी लगती है........उम्र के इस पड़ाव पर आने के बाद .....मुझे ये अक्सर महसूस होता है कि सालों तक सबसे कटी हुई जिंदगी जीने के बाद .............अब एक ऐसे अकेलेपन के आदी हो चुके हैं हम सब ...........कि सभी छूट चुके हैं .....हमसे .....
जिनसे हम जुडे हुए थे .....वे एक एक कर जा चुके हैं......और जो हमसे जुडे थे.....उनकी अपनी एक दुनिया बन गई है.....जिसमे हमारी अब शायद ......कोई जगह ........नहीं है.....फिर दूरियां भी इतनी हैं.....कि जल्दी जल्दी मुलाकातें संभव नहीं.....अब सोचती हूँ कि यदि मैं काम काजी न होती तो वक़्त काटना कितना मुश्किल होता..............
इस भागम भाग भरी जिंदगी में ........हमें अपने लिए भी कुछ लम्हों और एक कोने की तलाश रहती है.... ...... और अगर हम कोई लम्हा कोई कोना नहीं निकल पाते .... तो ये खीझ अक्सर खुद पर ही निकलती है.....बार बार ये महसूस होता है .......सब हमें भूलते जा रहे हैं......पर सच तो ये हैं कि ...कोई किसी को नहीं भूलता ....सिर्फ व्यस्तता की वजह से दूरियां बनती जाती हैं....पर .........जब यह दूरी हद से ज्यादा बढ़ जाती है............समस्या वहीँ से शुरू होती है......समय के साथ साथ एक ठहराव सा आ जाता है.....वही शायद कहीं एक कड़वाहट सी घोल देता है.....
एक समय के बाद लगता है कि जैसे अकेलापन सभी की नियति है.......कुछ लोग परिस्थितियों वश अकेले पड़ जाते हैं कुछ अहम् वश ....पर सभी महसूस जरूर करते हैं....इसका क्या निष्कर्ष निकला जाये ......समझ नहीं आता .....सभी इतना व्यस्त हैं कि कोई किसी के लिए वक़्त निकाले भी तो कैसे ?//
.. आज हर घर में यही स्थिति है.....जब हमने अपने माँ बाप के लिए वक़्त नहीं निकाला ......तो नई पीढी जो खुद में इतना व्यस्त है..........हमारे लिए कैसे सोचे .??....जब कि ये स्थिति भविष्य में सबके साथ आने वाली है.....शायद इस से भी ख़राब .........
उम्र बीतती जाती है............घर छूट जाते हैं..........संगी साथी धीरे धीरे साथ छोड़ते जाते हैं.....वक़्त मुठ्ठी से रेत की तरह फिसलता जाता है.....उस समय यादों को रुमाल की तरह तह करके..जेब में रखने का मन होता है कि जब भी उदासी की गर्द चेहरे पर छाए उसे जेब से निकल कर मुंह पोंछ लें और फिर से वही ताजगी महसूस कर लें......
दूरियां .......दिलों की दूरियां भी बढ़ा देती हैं ......अपने पेरेंट्स से हम आज भी इतना इसीलिए जुडे हुए हैं .....कि हम हमेशा उनके साथ रहे ...हर अच्छाई हर बुराई में ...... सुख दुःख में ....... एक साथ ....कभी उनके लिए मन में दुराव की भावना आई ही नहीं ..........कभी लगा ही नहीं कि..... वे हमारे लिए कुछ गलत भी सोच सकते हैं....आज भी .....सिर्फ उनका नाम भर ही आँखों में आंसू ला देने के लिए काफी है .....अब ये लगता है कि ....हम कितना अंतर्मन तक जुडे हुए थे उनसे ...सिर्फ एक तेज़ आवाज ....या आँखों का इशारा ही काफी था ......... हमारी गलती हमें बताने के लिए...और वो गलती दुबारा दोहराने कि नौबत ही नहीं आती थी कभी.....
शायद ........दूसरो से ज्यादा अपेक्षा रखने का यही नतीजा होता है....कि..... थोडा सा भी .......नकारात्मक प्रत्युत्तर मिलने से ........मन विचलित हो उठता है........टीवी या इन्टरनेट ..........हमारा अकेलापन नहीं बाँट सकते .....हमारी समस्याएं नहीं सुन सकते......सुनते भी हैं तो किसी हद तक ही.....पर इसके बाद ???..........वही सूना पन भर जाता है.....अन्दर .........उबा देने वाला सूनापन ............
एक उम्र के बाद यही लगता है .......कि शायद कोई नहीं चाहता हमें...........किसी के पास हमारे लिए ..वक़्त नहीं..........और कोई भी हमारे लिए नहीं....किसी को हमारी जरूरत नहीं........पर सच तो यही है कि ........कोई किसी के लिए नहीं........हमें अपने लिए ...........एक जिंदगी खुद बनानी होती है.......अकेलेपन को खुद हमने ही न्योता दिया है.............इच्छाएं और अभिलाषाएं इंसान को बहुत कुछ करने पर मजबूर करती हैं...पर इन्हें पूरी करने में ....हम जो कुछ गंवाते चले जाते हैं ......वो फिर कभी नहीं मिलता ..............मिलता.है ....तो सिर्फ सूनापन और............अकेलापन ............अकेलेपन में हम किसी से जुड़ नहीं पाते कटते ही चले जाते हैं....शायद ........दूसरो से ज्यादा अपेक्षा रखने का यही नतीजा होता है....कि..... थोडा सा भी .......नकारात्मक प्रत्युत्तर मिलने से ........मन विचलित हो उठता है........टीवी या इन्टरनेट ..........हमारा अकेलापन नहीं बाँट सकते .....हमारी समस्याएं नहीं सुन सकते......सुनते भी हैं तो किसी हद तक ही.....पर इसके बाद ???..........वही सूना पन भर जाता है.....अन्दर .........उबा देने वाला सूनापन ............
इस भागम भाग भरी जिंदगी में ........हमें अपने लिए भी कुछ लम्हों और एक कोने की तलाश रहती है.... ...... और अगर हम कोई लम्हा कोई कोना नहीं निकल पाते .... तो ये खीझ अक्सर खुद पर ही निकलती है.....बार बार ये महसूस होता है .......सब हमें भूलते जा रहे हैं......पर सच तो ये हैं कि ...कोई किसी को नहीं भूलता ....सिर्फ व्यस्तता की वजह से दूरियां बनती जाती हैं....पर .........जब यह दूरी हद से ज्यादा बढ़ जाती है............समस्या वहीँ से शुरू होती है......समय के साथ साथ एक ठहराव सा आ जाता है.....वही शायद कहीं एक कड़वाहट सी घोल देता है.....
एक समय के बाद लगता है कि जैसे अकेलापन सभी की नियति है.......कुछ लोग परिस्थितियों वश अकेले पड़ जाते हैं कुछ अहम् वश ....पर सभी महसूस जरूर करते हैं....इसका क्या निष्कर्ष निकला जाये ......समझ नहीं आता .....सभी इतना व्यस्त हैं कि कोई किसी के लिए वक़्त निकाले भी तो कैसे ?//
.. आज हर घर में यही स्थिति है.....जब हमने अपने माँ बाप के लिए वक़्त नहीं निकाला ......तो नई पीढी जो खुद में इतना व्यस्त है..........हमारे लिए कैसे सोचे .??....जब कि ये स्थिति भविष्य में सबके साथ आने वाली है.....शायद इस से भी ख़राब .........
पर वो अकेलेपन की पीड़ा कैसे दूर हो .......जो बाहर से दिखती नहीं पर पुराने ज़ख्म की भांति रह रह कर टीसती रहती है.....