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Thursday, September 2, 2010

फाइन आर्ट्स पँहुचे

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पी .यू .सी .का   रिजल्ट  आने के  बाद फाइन आर्ट्स के लिए भाग दौड़ शुरू हो गई......चूंकि हम लोगो को इसके बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था...इसलिए......श्री गाँधी आश्रम के हरी भाई बाबा जी के एक मित्र श्री रुस्तम  सैटिन और सुश्री ज्ञानेश्वरी जी से मिलने उनके घर गए हम लोग...सैटिन जी के बेटे राजीव वहां के छात्र थे...उनसे   काफी   जानकारी   मिली  .कि   एंट्रेंस  एग्जाम  में क्या  क्या  आता  है ..किस किस  विषय  का पेपर   होता  है  ये  सब ...बार  बार  यही  लगता  था कि पता नहीं वहां दाखिला  मिलेगा  भी  या  नहीं....बस  यूनिवर्सिटी  जाने  का इतना  शौक़  था..कि क्या  कहे  शायद   सभी   को   होता  होगा  एक तो   यूनिवर्सिटी और उस   पर   फाइन आर्ट्स....क्या कहने   .लगता था कितने   मज़े     कि लाइफ    होगी   दिन    भर   अपना मनपसंद काम करते   समय   बीतेगा   ......
     वहां  मैं  और अनामिका  कभी  मेरी  मम्मी   के साथ  कभी उसके पापा के साथ फाइन आर्ट्स जाते रहे......    सारा काम फॉर्म इत्यादि भरने  का निपटा लिया गया.... ......       खैर  वो  दिन आ  ही  गया जिसका  हम सबको  बेसब्री  से इंतज़ार  था......      मैं और मम्मी सुबह     ८ .३०    पर  पहुँच    गए ......सुबह    १०    बजे    से शाम    ४    बजे     तक    3   पेपर्स    हुए   ......और दूसरे     दिन 9   बजे     से इंटरव्यू     था .
       सब कुछ ठीक  ठाक  निबट   गया....वहां इतना अच्छा  अच्छा  काम करने   वाले   बच्चे  (बच्चे   कहना   ठीक   नहीं.....क्यों  कि कोई  भी २२  ,२५  से नीचे  नहीं था...शायद १५ ,२०  लोग ही ऐसे    थे जो  १७  या १८  के अन्दर   थे.....उस  समय   एडमिशन  के  लिए  कोई  उम्र  कि  सीमा  नहीं  थी कई  लोग  बी .ए . कर  के  भी  आते  थे .... ) आये   थे .....कि उनका  काम देख   कर  हमें   अपना काम बेकार  लगने  लगा .................कई  लोग ऐसे  भी थे जो  दूसरो   से चित्र  मांग  कर  लाये  थे अपना नाम लिख कर.....जब सच्चाई  पूछी गई तो वो लोग बगलें झाँकने लगे.........पर कुछ वाकई इतने अच्छे थे और फाइन आर्ट्स ज्वाइन करने के पहले ही उनका काम इतना मैच्योर था कि ताज्जुब होता था....जिनमे नेपाल से आया  हुआ युवक रत्न  तुलाधर और देहरादून से आई हुई सुरेखा  आर्य ने बहुत प्रभावित किया सबको..........युवक तुलाधर काठमांडू से आया था.......(आज ये दोनों ही अपने कला क्षेत्र  में ऊंचाइयो को छू चुके हैं....)
   जब एडमिशन  लिस्ट  आउट  हुई तो उसमे  युवक का नाम पहले स्थान पर सुरेखा  का नाम दूसरे स्थान पर और मेरा सातवे स्थान पर था....        एक लड़की पटना से आई थी..................बहुत  ही प्यारी और अच्छी........राजश्री .....उसकी पर्सनालिटी बहुत अच्छी थी.......लगभग ५.८ ऊँचाई थी उसकी .............सुन्दर और स्मार्ट.....बहुत सारे सीनियर लोग बड़े प्रभावित दिखे उस से ..(खास तौर पर लड़के..).......एक लड़की हमारे सेंट्रल स्कूल से ही आई थी पर उसने कुछ व्यक्तिगत कारणों से ज्वाइन करने के कुछ दिन बाद ही कॉलेज छोड़ दिया........ .... उस लड़की ने विमेंस कॉलेज में एडमिशन ले लिया.....         
फर्स्ट ईअर में सिर्फ ५  ही लड़कियां थीं जिनमे से एक ने कुछ दिनों के बाद ही कॉलेज छोड़ दिया था.............उसके जाने का कारण जानने के बाद कुछ लोगो से बड़ी घृणा सी हुई...जो इतना वक़्त बीत जाने पर भी बनी हुई है.........ऐसे लोगो से हमारा पाला तो नहीं पड़ा............शायद इसमें मेरी..........लोगो को बहुत ज्यादा लिफ्ट नहीं देने की आदत का भी हाथ है...........खैर  धीरे  धीरे   सबके बारे में जाना और कॉलेज में रमने की कोशिश शुरू हुई.....

Wednesday, September 1, 2010

कुछ पंक्तियाँ


 


संदर्भो  से  अलग  अलग  कटा  हुआ  है ...

जाने  किन  पाटो   में  मन  बटा हुआ है 

अपनी परछाईं   भी  अनजान  हो  गई  है ..

जब  से  आधार  बिंदु  से  हटा  हुआ  है ..

मन  कि  गहराई से आस  का  गगन  गहन ..

दूर  दूर  है , मगर  कहीं  सटा   हुआ  है ..

अब  भी  वह  श्वेत  कबूतर   वहीँ  पड़ा  है ..

आँखें  चंचल  है ,..पर  पर  कटा  हुआ  है

तुम  भी  इस  पुस्तक  को  यूं  ही  मत  छोड़ना ..


पृष्ठ  सुरक्षित  हैं ,,आवरण  फटा  हुआ  है ..
  (संकलन से).





परदेस  जा  रहे  हो  तो  सब  देखते  जाओ ....
मुमकिन  है  वापस  आओ   तो  वो  घर  नहीं  मिले .......
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हमें  हमारे  उसूलों  से  चोट  पहुची  है ...


हमारा  हाथ  हमारी  ही  छुरी  ने  काट  दिया ..
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घने  दरख़्त  के  नीचे  मुझे  लगा  अक्सर ..


कोई  बुज़ुर्ग  मेरे  सर  पे  हाथ  रखता  है ...
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तुम्हारे  शहर  की   रंगीनियों  से  भाग  आये ..


हमारी  सोच  का  शीशा  ज़रा  पुराना  था ..
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घर  लौट  के  रोयेंगे  माँ , बाप  अकेले  में ..


मिट्टी  के  खिलौने  भी  सस्ते  न  थे   मेले  में ..
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फिर  मेरे  सर  पे  कड़ी   धूप  कि  बौछार  गिरी ...


मैं  जहाँ  जा  के  छुपा  था  वही  दीवार  गिरी ..
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