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Tuesday, December 31, 2024

पुरानी यादें

जीवन में हम आगे बढ़ते जाते हैं और साथ-साथ कबाड़ भी बढ़ता चला जाता है. इसी  कबाड़ में कभी कुछ ऐसा निकल आता है, कुछ ऐसा मिल जाता है जो हमारी सोई हुई स्मृतियों को जगा देता है......अभी बरसों बाद घर शिफ्ट कर रहे थे तो कबाड़ में न जाने क्या-क्या मिल गया, जाने क्या-क्या याद आता गया


बीता हुआ ज़माना देर तक आँखों के सामने घूमता रहा जब विदेशी सामानों के लिए हमारा एक ही ठिकाना बढनी (नेपाल बॉर्डर) जाना होता था. तब देश विदेशी सामानों का इतना खुला बाजार नहीं बना था. हम जूते से लेकर टूथब्रश और डिजिटल घड़ी वाला पेन तक वहीं जाकर खरीदते थे. तब नेपाल जाने का एक और आकर्षण होता था फैंसी इलेक्ट्रॉनिक सामान, कॉस्मेटिक्स, जैकेट्स और कंबल इत्यादि लेना....... अपने मनकापुर से कार या स्कूटर में बैठकर हम दो घंटे में बढनी पहुँच जाते थे और दिन भर के लिए ‘ग्लोबल’ बन जाते थे, दिन भर घूम घाम कर पिकनिक मना कर शाम को वापस हो लेते थे.

एक दशक तक उन सामानों ने  हमारा बखूबी साथ दिया. खराब तो वे तब भी नहीं हुए थे... जब तक नए नए सामानो ने घर में जगह नही बना लमें.. 

बाद में वे सब बड़े शौक से खरीदे हुए   सामान घर के सामानों में कहीं दब गए.... टांड पर और दीवान में पैक करके धर दिए गए.... . बाद में उसकी जरुरत भी समाप्त हो गई..... बच्चों के लिए वो सब ओल्ड फैशन और आउट आफ डेट हो गए.... 

उन्हें देखती रही और यही सोचती रही कि नई नई तकनीकी उपलब्धियां भी किस तरह एक जमाने में मॉडर्न और बेहद जरूरी समझे जाने वाले उपकरणों को कबाड़ बना देती है.

आज तो फोन तक में आराम से रिकॉर्डिंग की सुविधा है. लेकिन जीवन से जो रोमांच ख़त्म हो गया था  उसकी याद कबाड़ में मिले टेप रिकॉर्डर से हो आई... बच्चों के खिलौने , सुंदर कपड़े ..... डिजाइनर स्टेशनरी... कितनी चीजें... जिनकी अब हमारे जीवन में कोई जगह नही..... सब बांट दिया मैने... 


कई बार लगता है कबाड़ हमारे मर्म को छूने वाली चीजें हैं- सोई हुई स्मृतियों को  जगा देने वाली! न जाने कब का बखिया कब उधड़ने लगता है!

Friday, December 6, 2024

😢😢😢

आज अमित आनंद पांडेय का जन्म दिन है। 
हर वर्ष आज के दिन सुबह सुबह फोन आ जाता।
"दिदिया आज आपके नालायक भाई का जन्मदिन है। आपको तो याद होगा नहीं आशीर्वाद दीजिए"
आज सब कुछ वैसा ही है मुझे जन्मदिन याद भी है। बदला सिर्फ इतना है कि अब तक फोन नहीं आया।
मैं तुम्हारे फोन की प्रतीक्षा में हूं भाई।
(२७-११-२४)

,😢

कुछ  सालो  बाद  
यह  पल  याद  आयेंगे 
जब तुम्हारे आस पास हम न होंगे......
अकेले  जब  भी  होंगे तुम 
हमारे साथ  साथ  गुजारे   हुए  लम्हे  याद  आयेंगे ,
पैसे  तो  बहुत  होंगे  शायद,  
पर  खर्च  करने  के  लिए
 न इच्छा होगी 
न समय
 न ही कोई जरूरत....   
सिर्फ यह अफ़सोस रह जायेगा....
कि काश उन पैसों से ,
तुम फिर वो लम्हे, वो पल  
खरीद सको 
जो  तुमने हमारे बिना गँवा दिए ......
सब कुछ रहेगा पास ...
तुम्हारे ....
सिर्फ    
हम   न होंगे......--------------------------------

Monday, October 14, 2024

😢😢😢

इधर कुछ ड्रेसिंग सेन्स विकसित होता तब तक शरीर का मध्य देश ऐसा बेढब बेडौल विकसित हुआ कि अब नाप के कपड़े मिलना दुश्वार हो चला है.शरीर की चर्बी जलाना सैद्धांतिक रूप से जीवन की सर्वोच्च प्राथमिकता है लेकिन कहते हैं कि स्वर्ग का रास्ता सदिच्छाओं से पटा  पड़ा है ऐसे ही तमाम सदिच्छाओं के बावजूद मनुष्य के पेट के रास्ते में ठसाठस चर्बी भरी पड़ी है.

            अब कम न कर पाने की बेबसी में जीना तो मुल्तवी नहीं किया जा सकता लिहाज़ा थोड़ी झेंप से ही अपनी तमाम कमियों के बावजूद  जिए जा रहे हैं l

Saturday, October 12, 2024

बनारस की रामलीला

अपने बचपन में देखी रामलीला  याद आती है...जो बनारस के हर गली मोहल्ले और चौराहों पर होती थी..और सिर्फ राम दरबार और आरती के लिए छोटा सा सोफा नुमा मंच स्थाई रूप से बना हुआ होता था  बाकी रामलीला नुक्कड़ नाटकों की तरह जमीन पर ही खेली जाती थी.....चारों तरफ से जनता /दर्शक घेरे रहती थी....ज्यादा जोशीले बच्चे  सजे धजे राम लक्ष्मण और सीता को लगभग छू लेने की हद तक घेरा तोड कर अंदर पंहुच जाते थे...जिन्हे रामलीला संचालक थोड़ी  थोड़ी  देर पर डंडे से हांक कर पीछे कर देते थे.....
           पेट्रोमेक्स,ढोल, नगाडे़,पिपिहरी,शहनाई वाले भी पूरे जोश में होते थे ..कुछ दृश्य  आज भी ज्यों के त्यों आंखों के सामने हैं....एक तो मोटे शीशों वाला चश्मा और घड़ी  लगाए हुए दशानन.....,एक और दृश्य  में मोटी दफ्ती की बनी लकड़ी  के हैंडल वाली चमकती तलवार जो हर बार मेघनाद के लहराने पर लफलफा के मुड़ जाती थी,और उनके ज्यादा  जोश में आ जाने पर टूट के दो टुकडे़ हो गई  थी,और एक दृश्य जब रावण और राम के युद्ध के समय एक वृद्ध व्यक्ति  जोर जोर से चिल्ला पडे़ थे "मारिए मारिए महराज ...रवणवा को मारिए...काट डालिए ससुरे को"😁😁😁😁 आसपास के सारे लोग हंसते हंसते लोट पोट हो गए  थे,😂😂😂😂

Monday, September 23, 2024

बचपन की,स्कूल  की,कालेज की,उस उम्र की यादें कितनी सीन दर सीन याद रहती हैं....आज भी मेमोरी से डिलीट  नहीं होती...... 


और अब समय यह है कि कई बार लोगों के नाम बहुत याद करने पर भी याद नहीं आते, पांच मिनट पहले रखी चीज़ ढूंढे नहीं मिलती..! लगता है हार्ड डिस्क भर गई है......☹️☹️

Saturday, September 7, 2024

मुश्किल समय😒😒😒

एक बेहद मुश्किल वक्त जो अभी पूरी तरह बीता नहीं है लेकिन बीत जाएगा क्योंकि साथ में बहुत सारे अपनों की दुआएं और प्यार है......इस साल  की शुरुआत  थोड़ी  दिक्कतों से हुई.....

अजीब सी मुश्किल थी और उसके बाद एक के बाद कई दिक्कतें पेश आईं,जिनसे उन्होंने बहुत हिम्मत से मुकाबला किया है वो जो जरा से  बुखार या जुकाम खांसी पर ही  हाथ पैर ढीले कर देते हैं ....कराह कराह कर पूरा घर सर पर उठा लेते हैं. ....पर सब संभल गया और उम्मीद है जल्द सब ठीक हो जाएगा. ....

इस पूरे दौर में अगर कुछ लोग ना होते तो मैं बिखर जाती......

शुक्रिया  तुम बच्चों  ने एक पल भी मेरा हाथ नहीं छोड़ा,जाने कितनी बार मैंने तुम पर अपना दुख उड़ेल दिया,बिना सोचे कि तुम भी परेशान हो सकते हो,तुमने मुझे संभाल लिया,अभी भी वही कर रहे हो।


परिवार और दोस्त जो साथ बने रहे ,उनका भी बहुत शुक्रिया..... सबके नाम यहां लिखना मुश्किल होगा लेकिन आप सब जानते हैं कि मैं दिल से शुक्रगुजार हूं........

इस सब में एक और शख्स का जिक्र किए बिना बात अधूरी रह जायेगी.....

डॉक्टर जेपी सिंह ना सिर्फ बहुत अच्छे डॉक्टर बल्कि  एक बेहतरीन इंसान भी हैं

उनके सामने भी मैं कई कई बार आंसुओं  से रो पडी हूँ. ...पर उन्होंने बहुत ढाढस बंधाया....वैसे भी हर छोटी  बड़ी  बीमारियों में वो संकटमोचक सिद्ध हुए हैं.....कैसी भी तबियत  खराब हो हम सबको वही  याद आते हैं…डेढ महीने कोविड झेला है मैने...मीलों दूर रहते हुए भी उन्होंने साबित किया कि दुनिया में अभी भी अच्छे लोग मौजूद हैं और इसे खूबसूरत बनाए रखने में जुटे हैं...... उन्हें खूब दुआएं कि उनके हिस्से में हमेशा अच्छी सेहत आए और उनके हुनर और नाम में खूब इज़ाफा हो......

Sunday, August 11, 2024

हद्द है

कांग्रेस की दी हुई पेंशन खाकर - खाकर भरे पेट अघाए हुए ये सारे निखट्टू पूरे दिन गांधी, नेहरू को कोसते हैं..... सुबह-सुबह व्हाट्सग्रुपों में 
हिंदूबाजी वाले फ़ॉवर्ड मचाने वाले अंकिल जी...... रेलवे और एअरलाइन्स, आपको सीनियर सिटिजन वाली छूट अब नहीं देंगी..... 😀
          सबसे ज्यादा तो ये बुड्ढों  पर चढ़ा है  हिन्दू होने का ढोंग...... . और ये सठियाए बुढ़ऊ लोग परम् भक्त हैं..... अंकल लोगों की तो उम्र बीत बिता गई लेकिन अभी भी वो स्थिति की गंभीरता को समझने की बजाय ही ही फी फी में मस्त  रहते हैं..... रहना भी चाहिए, आगे जाकर धर्म के नाम पर बने देशों सरीखा हाल होना ही है.. तब बर्बादी से पहले वाला एन्जॉयमेंट लेने में क्या हर्ज है..... पेंशन भी बन्द कर देते तो ये हिंदूबाजी वाले मेसेज भी बन्द हो जाते.... इन्हे जेल में भी बंद कर दें तो भी ये हिन्दू - मुस्लिम वाले मैसेज बंद नहीं होगें।😀

हम

जीवन में हमारे एक समय ऐसा भी आता है. जब हमें तय करना होता है कि पन्ना पलटना है या किताब बंद करनी है...
मुस्कुरा रहें है..... क्यों कि हम फिर से लखनऊ में हैं 
सब  से मिलने के बाद 
सोचा है कि 
कुछ समय निकाल लिया करें
सिर्फ तुम लोगों के लिए 
दूर जरूर हैं लेकिन 
हर समय पास होने का अहसास 
बना रहेगा.... 
सोचती हूँ कि अब से, बल्कि आज ही से 
थोडा थोड़ा वक़्त गुल्लक में 
डाला करूँगी
जो सिर्फ तुम्हारा मेरा होगा... 

😔

 मैं तो शायद ही कभी पहनती होऊं.... पर कलेक्शन का भयंकर शौक है..... मम्मी जब तक रहीं उन्होंने कभी पहनने नहीं दिया आर्टिफिशल......और आलसी नं वन होने से रोज बदल बदल के स्कूल जाना बूते से बाहर रहा...बिटिया के लिए खरीदा... उसे बहुत शौक है... तरह तरह की इयरिंग्स का और अब आनलाइन देख देख कर खरीदते जाने का चस्का लग गया है.... ढेरो इकट्ठा हो गई हैं.... बहू भी शौकीन है तो मैं भी हिम्मत कर ले रही हूँ शौक पूरा करने का.....पतिदेव का तो यही कहना है "बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम" 😣😣😏😏

हम्म्म

इंसान हालातों के चलते एक दिन समझदार हो ही जाता है......................
और इतना समझदार हो जाता है कि वहाँ अपनापन ही ख़त्म हो जाता है...
अतः न इंसान कोई शिकायत करता है, न किसी चीज के लिए कोई नाराज़गी, न पहले की तरह अपनेपन की हक़ से कोई ज़िद्द करना, न पहले की तरह अपनेपन से अपना कोई हक़ जताना और न ही कोई सवाल-जवाब... रिश्ते में आई दूरी के सन्नाटे को हमेशा इंसान समझदार हो जाना समझते है...
तुम कैसे हो..................?????
ठीक हो?" पूछने पर जवाब में "मैं ठीक हूँ"  कहने का अर्थ हमेशा वह इंसान ठीक ही है ऐसा नहीं... यह नज़दीक के रिश्ते में आयी एक त्रासदी ही है कि सामनेवाले को झूठ समझ न आया क्यूंकि महसूस करने कि क्षमता खत्म सी  हो चुकी होती है। और दूसरे से अब सच बोला नहीं जाता क्यूंकि बिन एहसासों के चीज़ो को क्या महसूस करवाना... 
रिश्ते, जीवन, मनुष्यता रेंग रही होती है लेकिन जब कोई पूछता है कि सब कैसे चल रहा है तो हम ठीक है कहकर आगे बढ़ जाते हैं..............

Saturday, August 10, 2024

बस्ससस

अभाव जीवन में बड़ी ख़ुशी देते हैं, 
क्योंकि तब हमारी ख़ुशियाँ बहुत छोटी होती हैं, बचपन में 5/- किराए पे लाये video cassette पे देखी हर फ़िल्म masterpiece लगती थी, 

contribution करके दोस्तों के साथ नाथु स्वीट्स का 8/- का डोसा कितना स्वादिष्ट लगता था, 
लक्स साबुन की बट्टी से नहाना अपने आप में status symbol होता था, 

दिवाली पर मिले एक जोड़ी नये कपड़े दुनिया की नियामत लगते थे, 
सड़क किनारे झुलसती गर्मी में पानी की मशीन वाला जो 50 पैसे में नीबूँ पानी पिलाता था उसका स्वाद फिर कभी नहीं मिला, 

2/- के महँगे टिकट वाली dtc special बस में सफ़र करना Mercedes से कम नहीं था, 
मरा पड़ा सा कूलर जिस पर खस की टाट लगा देते थे ऐसी हवा देता था मानो स्विटज़रलैंड कि वादियों में घूम रहे हों, 

१/- के 6 गोलगप्पे खाना अपने आप में luxury था, 
फिर एक दिन अचानक हम बड़े हो गये और छोटी छोटी ख़ुशियाँ हमारे लिये गौण हो गयीं , अब सपने , अहंकार, महत्वाकांक्षाएँ इतनी बड़ी हो गयीं की , जीवन की असल ख़ुशी कहीं दूर निराश हो कर चली गई …., अब सब है पर असल में कोई ख़ुशी नहीं !

कभी कभी मिलती है मुझे, दूर मुस्कुराती हुई और मैं फिर उसकी ओर सबकुछ भूल कर लौट जाती हूँ ताकि सनद बनी रहे

हम्म्म

बस इतनी सी प्रार्थना है तुमसे महादेव , कि जब भी जीवन में तुमसे बात करने आऊँ तो मेरी बात सुन लेना, मुस्कुरा देना और आंखों ही आंखों में कह देना कि, "जा मैं हूँ तेरे साथ" ..... 
_________________
मैं नादान . . .
सब कुछ हार कर भी आसमान की ओर देखती हूँ,,
इस उम्मीद में ____ कि वहाँ कोई है,,
जो इक रोज  . . .
सब  कुछ  ठीक  कर  देगा....... 

वक्त  लगता है . . .
जीवन में कुछ करने के लिए,,
और जो वक्त से पहले करता है न,
वो कुछ वक्त के लिए  रह जाता है..... समय भाग रहा है . . .
और  साथ  साथ  हम  भी  भाग  रहे  हैं...... 

कभी कभी . . .
बारिश अकेले नहीं आती,,
वो अपने साथ ले लाती है . . .ढेर सारी यादें, आंसू ,
और अकेलापन 💔"
____________________________

 महादेव ये जिंदगी आपने दी है,,संभालोगे भी आप"
"आशा नहीं,,विश्वास है "हर मुश्किल से निकालोगे भी आप"।
______________________
वो मेरी हर अनकही बातों को भी 
बड़े ध्यान से  . . .
'सुनता है............. 
___________________
ओह ____
करीब पंद्रह वर्ष तो बीत चुके होंगे न इस तस्वीर को।
तस्वीर लेना भी जरूरी है . . .
क्योंकि कभी कभी बेवजह मुस्कुराने की वजह 
जो मिल जाती है ❤️
   💔

कभी कभी हमारे मन में क्या चल रहा होता है 
ये ठीक से हमें भी नहीं पता होता, 
बस कोई चाहिए . . .
जिसे बेझिझक सब बता सकें,,अच्छा या बुरा जो भी है . . .  पर नहीं है कोई जो समझ सके, और हमें सुनें
और सुनता जाए 💔
___----------
कितने साल पर साल बीत जाते हैं न . . .
यह सोचते हुए कि बस कुछ वक़्त बाद सब सही होगा,        
पर असल में . . .
सब सही फिर कभी नहीं होता........... 
   💔 _________ 💔
ओह . . ये कैसे दिन है . . ये कैसी जिंदगी है,,
जो बस एक जैसी गुज़र रही है हर रोज़....... 
सब कुछ इतना ठहर सा क्यूँ गया है...... 
मैं इतना रुक सी क्यूँ गई हूँ........
न आगे ही बढ़ रही हूँ और न ही कुछ जी पा रही हूँ 
___________________________
बस तारीखें बदलने के अलावा . .
कुछ क्यूं नहीं बदल रहा है जीवन में।💔
_________________
मैं ही क्यों सोचती रहती हूँ कि कहीं किसी को 
बुरा न लग जाए, 
और किसी को यह ख्याल . . .क्यों नहीं आता 
कि मुझे भी बुरा लग सकता है........... 

Tuesday, July 9, 2024

बचपन

मेरे यहां  दोनो बच्चों में झगड़ा ज्यादातर मैगी के लिए होता था.....चाहे दोनों मे कोई भी बनाता.... सर्व करते समय अपने प्लेट की मैगी कम लगने के लिए समेट कर और दूसरे की ज्यादा दिखने के लिए फैला कर परोसी जाती😂😂😂😂😂

टोटका

गर्मी के मारे प्राण सांसत में हैं...... आपकी तरफ भी अगर बारिश नहीं हो रही हो तो इसका रोना रोने के बजाय एक बार पूरे घर के पर्दे, बेडशीट, अपने सूट, साड़ियां, पतिदेव के पैंट शर्ट सहित ढेरों कपड़े धोकर...... या बिना धोए  ऐसे ही धूप में सुखाने डालने वाला टोटका आज़माइए...... .रजाई और कंबल भी डाल सकते हैं... कोई पाबंदी नहीं है... ..अचार के जार, बड़ियां, दालें वगैरह भी सूखने को फैला दें तो और भी जल्दी बारिश होगी.....मेरे लिए हमेशा असरदार रहा  है ये टोटका...और धूप में कपड़े फैला कर मेरी तरह छः आठ घंटे के लिए स्कूल चले जाइए.....तब आंधी के साथ मूसलाधार बारिश होने की पूरी संभावना है😁😁😁सच्ची ये टोटका कभी फेल नहीं हुआ आज तक✌️✌️

Tuesday, May 7, 2024

लानत है

फेसबुक पर हम ऐसे अनजाने लोगो से मिलते हैं ..जिनसे पता नहीं जीवन में कभी मुलाकात हो न हो....पर उनके सुख दुःख......उनकी खुशियों ...उनके गम में शामिल हों......यही तो सोशल मीडिया का  मतलब       है......हमारी   बातों से कोई    खुश   हो.... हम भी किसी की बातों में खुश    हो....मैं तो बस  इसमें   ही  खुश   हो जाती  हूँ.......   मैंने भी देखा है हलकी फुलकी खुशनुमा सी बातों से अपने दिन सुकून से बीत जाते हैं ....पहले से ही जिंदगी में इतना तनाव और टेंशन हैं...कि अब कोई किसी के विचार नहीं जानना चाहता....यहाँ बैठ कर सिर्फ दूसरों पर कमेंट्स मारने या गाल बजाने से कुछ हासिल नहीं होता...सिर्फ कुछ लाइक्स या शेयर से कोई क्रांति नहीं होने वाली...  कभी कभी कुछ लोग इतनी तीखी प्रतिक्रिया करते हैं यहाँ....... कि बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगती.....एक नार्मल सी बात इतना तूल पकड़ लेती है कि आरोप प्रत्यारोप..... और अंत में बात गाली गलौज तक पहुंच जाती है.... और नतीजा कुछ नहीं निकलता....अच्छी मित्रता भी कुछ बेवजह की बातों में टूटने के कगार पर आ जाती है.... यहां तक कि शायद एक दूसरे से मिलें तो मारपीट की नौबत आ जाय...... .तो आखिर  फायदा क्या है....इतनी बहसबाजी का..........अपने आप को ज्यादा  काबिल और बुद्धिजीवी दिखाने के लिए ....दूसरों पर उंगली उठाना ही कुछ लोगों का मकसद है......फेसबुक ....सिर्फ अपनी भड़ास निकलने का ही माध्यम रह गया है कुछ लोगों के लिए........यही सोशल मीडिया का मतलब है क्या??......दिनभर के थके मांदे लोग कुछ पल शांति से .....स्नेह और हल्के मन से एक दूसरे के साथ समय बिताना चाहते हैं तो क्या हर्ज है ??...इसमें कौन से पैसे खर्च हो रहे हैं ?......यहाँ पहले से ही इतने ज्ञानी लोग हैं कि अब और ज्ञान और विचार देने की न जरूरत नहीं है........कम से कम मुझे तो बिल्कुल नहीं...... अपना ज्ञान अपने पास ही रखें..... कुछ पोस्ट्स में कमेंट बॉक्स में ऐसी लीचड़, ओछी और अश्लील फब्तियां देखने को मिलती हैं कि लिखते समय उन काबिल फेसबुकियों को ये भी समझ नहीं होती कि उनकी भाषा का सब पर क्या असर हो रहा होगा?? और जिन जाने माने लोगों के लिए वो अपना घटिया प्रदर्शन कर रहे हैं उन पर कोई असर तो पड़ेगा नहीं ?? छीः लानत है ऐसे लोगों पर😡😡😡😡😡😡

Wednesday, February 7, 2024

मम्मी की याद में... 2024

मन के एक उदास कोने में
कभी कभी 
अतीत की ये बेचैनी 
मुझे बहुत परेशान करती है.... 
दुनिया की सबसे बेशकीमती चीजों में से एक
वो माँ और  पिता जिनके बगैर हमारा सब कुछ अधूरा सा रहता है....
जो हमारी जिंदगी का
हमारी धड़कनों का 
बेहद जरूरी हिस्सा होते हैं, 
अचानक ही 
समूचे परिदृश्य से गायब हो जाते हैं। 
जिनके बिना 
और जिनके निर्देशन के बिना एक कदम भी चलना मुश्किल लगता था.....
हम  परिस्थितियों से सामन्जस्य बैठाने की निरीह कोशिशों में जुट जाते हैं..... 
 भौचक्के, लुटे पिटे से खड़े रह जाते हैं 
इस भरे पूरे संसार में......
किसको कहें अपने सुख दुख , 
कौन है जो हमें ठीक वैसा ही समझे
 जैसा हम समझाना चाहते हैं... 
कोई भी हमें वह सुकून नहीं दे सकता 
जो आश्वस्ति से भरे 
मां - पापा  के आलिंगन से मिलता था 
और 
ताज्जुब ये कि 
उनके जाने के बाद भी 
हमारी ज़िंदगी यूँ ही चलती रहती है..... 
बहुत पछताती हूँ अब.. 
गृहस्थी में उलझी उनको फ़ोन नहीं कर पाती थी.... 
“बस काम में लग गयी थी..... 
टाइम ही नहीं मिल पाता है.....
हफ्ते भर बाद फ़ोन पर भी इतना ही कह पाती थी.....
और अब तो समय ही समय है.... 
बस वो लोग नहीं हैं..... 
जो सचमुच हमसे बात करना चाहते थे...
हमारे साथ समय बिताना चाहते थे... . 
पर अब हाथ मलने से क्या फायदा??
याद करती हूँ वो ज़माना 
जब सब कुछ ज़रूरी छोड़कर  
हम सब पास पास बैठ जाया करते थे..... 
"अब फिर कब आना होगा??
इतना भागमभाग में आई हो कि जी भर के बात भी नहीं कर पाए..... 
वो  कितनी उदासी से कह दिया करते थे....
अब कसकते हुए दिल
और रूंधे हुए मन के साथ
उस वक़्त को याद करती हूँ तो बहुत ग्लानि होती है.... 
खुद को बहुत छोटा पाती हूँ
बेटी के रूप में खुद को हारा हुआ पाती हूँ।
.............. 
(मम्मी को हमेशा के लिए छीन लेने वाला दिन..... 7 फरवरी 2010 😢😢😢😢)

Tuesday, February 6, 2024

यूं ही....

आज भी मेरे पापा के घर पर उन्हीं की नेमप्लेट लगी है जबकि उनको गए बरसों बीत गए हैं.... न पापा हैं न मम्मी 😢😢

जाने वाले अपने पीछे अपने निशां छोड़ जातें हैं.....अब ये उनके पीछे रह गए लोगों पर ही निर्भर करता है... कि वो उनकी यादों को संजो कर रख पाते हैं  या वक़्त की निर्मम परतों के पीछे अदृश्य होने देते हैं....


वैसे आज की पीढी इस मामले में इतनी भावुक नहीं है....जिन चीजों को वर्तमान और एक या दो पीढ़ी तक बहुत आत्मीयता और हिफाजत से सहेज कर रखा जाता है.... वो चीजें उसके बाद वालों के लिए कबाड़ मे गिनी जाने लगती है.....😟😟😟😟ये मेरा निजी अनुभव है

Monday, January 8, 2024

उन्होंने 

चाँद को चांँद नहीं रहने दिया

उससे 

हमारे 

सारे रिश्ते ख़त्म कर दिए

बचपन के मामा

जवानी का महबूब.... 

उनकी 

महत्वाकांक्षा की भेंट चढ गये... 

सब जान गए हैं कि 

चाँद सिर्फ ऊबड़ - खाबड़ नीरस पत्थरों का ढेर मात्र है

जहाँ हवा पानी तक नहीं..... 


हमारे बचपन की 

चरखा कातती बुढिया

चाँद के  बदसूरत 

गड्ढों में दफ्न हो गयी.....

अब बच्चों को चंदामामा में कोई रूचि नहीं....

गर्मी के दिनों में खुले आसमान के नीचे अब कोई नहीं सोता, 

ध्रुव तारे और सप्तऋषियों को

उनींदी आंखों से देखते देखते कहानियां सुनाने वाली 

वो दादी - नानी भी लुप्तप्राय हैं..... 


सच 

कुछ सच्चाइयांँ

बड़ी डरावनी और 

बदसूरत होती हैं  !!