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. पुरानी यादों के साथ एक बहुत अजीब बात होती है,
वो चाहें कितनी भी अच्छी हों या बुरी...
आंखों में आंसू भर ही देती हैं.....
आज फिर से मन भरा हुआ है ...
डर लगता है जो घाव सूखने को छोड़ा है उस पर जमी पपड़ी उखड़ ना जाए.....
शायद मैं पहले से बदल गई हूँ......
शिकायत भी नहीं करती अब....
मेरे पास एक समय बहुत सी शिकायतें थीं....
पर अब मन नहीं होता कुछ भी कहने का..
ये अच्छा है कि यूँ ही समय भी बीतता रहता है......
बीतता ही जा रहा है ,
मानव मन क्यों अपने से अलग लोगों को स्वीकार नहीं कर पाता है?
वो क्यों सबको अपने ही रंग में रंगना चाहता है?
सब तो एक से नहीं हो सकते....
एक ही हाथ की हर उंगली भीअलग अलग तरह की होती है...
इतना द्वेष क्यों और किसलिए??
कौन कब तक रहने को आया है यहाँ??
और ये बात जितनी जल्दी समझ आ जाए अच्छा है ………
ज़िंदगी में आया हर शख़्स एक एक कर वापस चला जाएगा और ....... वापसी का टिकट तो सब कटवा कर आए है
जाना तो सबको ही है ना!
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