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Friday, November 8, 2013

बनारस डायरी.....





इधर काफी दिनों बाद बनारस जाना हुआ ...बिटिया कि शादी  के सामान की खरीदारी   के सिलसिले में , पिछले साल दो ,तीन बार जाना हुआ , और उसके पहले २०१० में जब मम्मी नहीं रही थी.....मम्मी के साथ आखिरी दीवाली २००९ में मनाई थी........इस बार मम्मी पापा दोनों ही लोग नहीं मिले....



बनारस से भाइयों भाभी और बच्चों का बार बार आने का आग्रह रहा,...बहुत अच्छा महसूस हो रहा था....स्वयं हमारी भी काफी इच्छा हो रही थी   बनारस की बहुत याद आरही थी.......

मम्मी पापा जी के बिना बनारस की कल्पना करना भी बड़ी तकलीफ देता है.....पर अब धीरे धीरे यकीन करना ही पड़ रहा है......ख़ुशी इसी बात की है कि   पिंकी ने काफी हद तक मम्मी का स्थान भरने की चेष्टा की है और काफी अंशों तक उसमे सफल भी है.......


बहुत अच्छा लगा इस बार, तीन चार दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला , खूब  आराम किया...पूरा मायके का सुख उठाया  आराम से बैठे बैठे चाय , नाश्ता, खाना  ,स्वादिष्ट भोजन,  बच्चों का बेहद प्यार और अपनापन ,...भाई के बच्चे बहुत प्यारे हैं...बेहद समझदार और स्नेही .....डुग्गू को तो सभी कहते हैं...मुझ पर गई है... ...कभी कभी मुझे भी लगता है..उसका स्वभाव काफी कुछ मुझ सा .है  .भगवान् सभी को लम्बी उम्र दें....


साफ़ सुथरा सजा संवरा घर पिंकी के सुघड़ गृहणी होने का आभास करा रहा था.... बहुत ख़ुशी हो रही है कि पिंकी ने सब कुछ बहुत अच्छी तरह सम्भाल लिया है.......मम्मी की बनाई हुई  ५०-५२ साल पुरानी गृहस्थी....अभी भी बहुत अच्छी तरह बनी हुई है....



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....  रंजन     के    लिए    थोड़ी     चिंता     रहती       है उसे  समझना  बड़ा दुरूह  कार्य  है , कौन  सी  बात  उसे  बुरी  लग  जायेगी  और किस  बात  पर वो  खुश  हो जायेगा   , पता  ही  नहीं  चलता  , मैं समझती  हूँ कि उम्र  के इस  मोड़  आकर  स्वभाव  में  परिवर्तन   हो पाना  बड़ा  कठिन  है  पर   तसल्ली  है , कि पिंकी ने  काफी  कुछ एडजस्ट  कर  लिया  है..... बाक़ी .  सब लोग  तो  देख  सुन कर  के...समझा  के अलग हो जाते हैं पर जो सब कुछ सहता और निभाता है वही जानता है....इसके लिए मैं पिंकी की ह्रदय से आभारी हूँ.... ..




भगवान् से यही प्रार्थना है कि वे मेरे प्यारे छोटे  भाई को  सहन शक्ति और समझदारी दें और हम सबको धैर्य......आमीन...

दीवाली काफी अच्छी रही.... पप्पू पिंकी की इच्छा रही कि     पतिदेव दीवाली पूजा का प्रारम्भ करें , तो इन्होने बड़े ही सुन्दर तरीके से सारा आयोजन किया ....और पूजा की गई....धनतेरस पर कुछ बर्तन और चांदी के सिक्के खरीदे गए...




सोने के गहने इत्यादि खरीद पाना तो अब  शायद बच्चों  की शादियों में ही सम्भव हो पाये......या शायद डौंडिया खेड़ा की खुदाई में मिलने वाले १००० हजार टन सोने  (!!!!)  की प्रतीक्षा करनी होगी सबको......

दुःख इस बात का है कि हमारे पूर्वजो (ससुराल या मायके ) में भी कोई ऐसा नहीं रहा , जिसने कोई मटकी ,मटका या घड़ा ....सोने की मोहरें भर के कहीं गाड़ रखा हो........अब तो यही मनाते हैं...... कि भगवान् देना तो छप्पर फाड़ के देना ,..पर इतना जरूर देना कि छप्पर बनवाने के बाद भी कुछ बचा रहे....क्यों कि आज कल रिनोवेशन में भी काफी खर्च हो जाता है.....स्वयं हम भुक्त भोगी हैं.....



इस बार मैंने फेसबुक पर सूचित कर दिया था , कि मैं बनारस आरही हूँ, यह जान कर बड़ी ख़ुशी हुई कि मेरे बनारस के कुछ मित्र बड़े उत्सुक रहे मिलने के लिए.....पर समय कम होने के कारण कई मित्रों की सूची में गणेशन (मेरा फाइन आर्ट्स कॉलेज का क्लासमेट )    को सबसे ज्यादा तरजीह दी हमने ...क्यों कि इधर बीच कई बार आना जाना हुआ पर हम लोग मिल नहीं पाये थे.....इस बार उसे फोन करके आने का कार्यक्रम तय किया और समय से पहुँच भी गए.......


बहुत आंतरिक ख़ुशी हुई कि  लगभग २५- २६ साल के बाद मिलने पर भी बड़ी आत्मीय मुलाकात रही....(फेसबुक की आभारी हूँ कि बहुत से पुराने मित्रों को फिर से मिलाया ) 



उसकी पत्नी से पहली बार मुलाकात हुई....बड़े स्नेह और अपनेपन से उनके परिवार ने हमारा स्वागत किया ....बेहद खूबसूरती से सजा हुआ उनका घर , और उनकी आवभगत से हम सब बहुत खुश हुए......फिर तो दो घंटे कैसे बीते पता ही नहीं चला....बहुत पुरानी पुरानी बातें, अपने सुख दुःख, क्या क्या खोया क्या क्या पाया ,...आपस में बांटी गई....अपनी अपनी उपलब्धियां गिनाई गईं...गणेशन ने भी इस बीच में काफी अच्छा काम और नाम कर लिया है,....काफी हार्दिक प्रसन्नता हुई..... अब हम ऐसी उम्र में पहुँच चुके हैं जब मित्रों की उपलब्धियों से ईर्ष्या नहीं होती......बल्कि ख़ुशी होती है कि हम एक ऐसे जाने  मानें व्यक्तित्व के मित्र  हैं....   अच्छी और मधुर स्मृतियों और पुनः मिलने की  इच्छा के साथ हमने विदा ली....आते समय गणेशन की पत्नी ने दक्षिण भारतीय परंपरा के अनुसार सुहागिनों के सौभाग्य चिन्ह मुझे भेंट किये....मुझे बहुत अच्छा लगा. 


भाई और उसकी बिटिया हमें स्टेशन तक छोड़ने के लिए आये....उसका बेटा  बहुत उदास था और हमारे आने पर रो पड़ा......रंजन की इच्छा थी आने की …….  पर कुछ लम्बी छुट्टियां हो मेरी ..  तो उसे बुलाऊंगी.......

रास्ते   भर बच्चों की और सभी की याद आती रही... रंजन की कुछ ज्यादा ही.....


कुछ ऐसी विवशताएं होती हैं...की उनका कोई उपाय नहीं ....सब अपने अपने जीवन ढर्रे में इस तरह बंधे हुए हैं         उनसे निजात नहीं पाई जा सकती.......मेरे बच्चे भी अपनी दिनचर्या में व्यस्त हैं....पर कुछ  ऐसे  ही पल  निकाल    के  सबसे   मिलना जुलना कुछ तसल्ली देता है.......



मनकापुर वापस आ  गई हूँ....

फिर वही पुरानी रूटीन में लौट आई हूँ.....कल से फिर वही उबाऊ दिन चर्या  ...... वही उकताने वाले चेहरे देखने हैं.....जिन्हे देखते देखते थक चुकी हूँ ....पर फिर भी जिन्हे देखे बिना चैन नहीं......                

4 comments:

  1. Bahut hi achcha likha Smita, Such ek running Commentary ki tarah... padhkar khushi hui...aage chalkar ek achcha Writ-up taiyaar ho sakta hai....keep it up...mery Shubhkaamanayen......

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  2. Bahut hi achcha likha Smita, Such ek running Commentary ki tarah... padhkar khushi hui...aage chalkar ek achcha Writ-up taiyaar ho sakta hai....keep it up...mery Shubhkaamanayen......

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