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Sunday, September 8, 2013

यूं ही ....

           मैंने महसूस किया है , कि कभी कभी कोई पुस्तक इतना गहरे तक छू जाती है , कि कई दिनों ,महीनों सालों तक उसका एक अहसास सा मन पर तारी रहता है , वो किताबों के ढेर से निकल कर इस तरह हमारी अपनी बन जाती है , जैसे भरी हुई कक्षा में कोई एक खास मित्र ही हमारा अपना बन जाता है और हमेशा खास बना रहता है ...ऐसी ही एक पुस्तक है जिसे मैं कभी भुला नहीं सकती ......जिसे पढ़े हुए कई साल हो गए हैं ...पर आज तक उसके असर से नहीं उबार पाई हूँ ..जब तब उसका ध्यान आता रहता है...वो है "नाच्यो बहुत गोपाल " बेहद मार्मिक संवेदनशील और छू जाने वाली कृति ...सभी के प्रिय लेखक अमृत लाल नागर  जी की....मैंने कई लोगों को इसे पढने के लिए प्रेरित किया , और लगभग सभी का यही अहसास रहा , यही प्रतिक्रिया रही... अमृता प्रीतम और शिवानी के सभी उपन्यास मैंने पढ़े हैं और उनसे गहरे तक जुडी हूँ ..मेरी दिली इच्छा थी कि कभी शिवानी जी से मिलूँ , पर मेरा दुर्भाग्य कि ऐसा नहीं हो पाया..खैर ! हर कामना तो पूरी नहीं हो सकती पर उनकी सुरंगमा पढ़ कर मैंने उन्हें एक पत्र लिखा था. उसका प्रत्युत्तर ,स्वयं उन्ही हस्त लिपि में लिखा पोस्टकार्ड आज भी मेरे लिए एक अमूल्य निधि है....

मुझे बहुत से कवियों तथा साहित्यकारों का सानिध्य भी मिला जिनमे सर्वश्री कैलाश गौतम, अदम गोंडवी , अवनींद्र मिश्र विनोद , के.के. अग्निहोत्री , श्री बुध्धि सेन शर्मा , अतुल कुमार सिंह अतुल,ब्रजराज श्रीमाली , अनगिनत नाम हैं कितने नाम गिनाऊँ ?..बड़ी लम्बी लिस्ट है ....

कितनी ही बार निजी कवि गोष्ठियों में बड़े अच्छे अच्छे कवियों को सुन ने का अवसर मिला है , श्री आदित्य वर्मा जी कि सुप्रसिध्ध रचना "तांडव" उनके घर पर स्वयं उनके ही मुख से सुना है . बेहद प्रभावशाली रचना कभी नहीं भूलती.
याद आता है जब कैलाश गौतम जी आई.टी.आई. में यहाँ के प्रेक्षागृह में आयोजित काव्य गोष्ठी या कवि सम्मलेन में जब भी आये और अपनी सर्वप्रिय रचना "अमौसा क मेला " पढना शुरू किया , हर बार उन्होंने मुझे और मेरे पतिदेव को विशेष रूप से समर्पित करके पढ़ा ....भरी हुई जन सभा में जब वे सिर्फ हम दोनों को संबोधित कर के कहते थे "ये रचना मैं श्रीमती और श्री के.के. तिवारी जी को समर्पित कर रहा हूँ तो एक ऐसी हार्दिक ख़ुशी की अनुभूति होती थी , जिसका बयां नहीं किया जा सकता ....


ऐसे अनगिनत अनुभव हैं जो एक विशिष्ट बुध्धिजीवी और साहित्यकार वर्ग के साथ बैठने से प्राप्त हुए हैं....कभी कभी सोचती हूँ कितना अनूठा अनुभव होता होगा जब सब अपनी अपनी रचनाएँ एक दूसरे के साथ बाँटते होंगे उनपर चर्चा करते होंगे,..

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