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Thursday, October 18, 2012

कबाड़ गाथा






इधर कुछ दिनों से पुराने सामानों की उठा पटक चल रही है......न चाहते हुए भी इतना अल्लम गल्लम भरते चले जाते हैं हम लोग कि एक समय बाद न उसे रखते बनता है न फेंकते.......जब कि ये हम अच्छी तरह जानते हैं कि उनकी जरूरत अब कभी नहीं पड़ेगी..फिर भी एक ऐसा मोह...है जो उन वस्तुओं को त्यागने नहीं देता....



इसी खोज बीन के दौरान........अपनी कुछ बिछुड़ी हुई डायरियां हाथ लगीं ..... .पतिदेव की तमाम चुटकी पुर्ची से भरी डायरियां मिलीं.... सैकड़ों ऐसे पते मिले जिन पर रहने वाले अब हैं ही नहीं.....हजारों ऐसे फोन नम्बर जो अब शायद कभी नहीं लगेंगे......तमाम ऐसी चिठ्ठियाँ ............. जिनमे पतिदेव को नौकरी मिलने...हमारी शादी होने और फिर हमारे बच्चे होने तक की बधाईयाँ ......और शुभ कामनाएं .......शामिल हैं......मिलीं......उनका सम्मोहन ऐसा है ....कि उनको न फेंकते बनता है न जोगा कर (संभाल कर ,, ये बनारसी भाषा है ) रखते.....न ही उन्हें फाड़ कर जलाने का मन हो रहा है.......कुछ ऐसी ऐसी चीजे भी मिलीं जो बरसो पहले बिला गईं थी......पर अब फिर से मिल गईं हैं ....जब कि उनका अब कोई काम नहीं.......फिर भी एक अनजाना प्यार सा उमड़ा आ रहा है उनसे...




कभी कभी जी में आ रहा है कि बिना देखे पूरा कागजों का बण्डल कबाड़ी के तराजू पर रखवा दूं...फिर लगता है कहीं कोई जरूरी कागज न इधर उधर हो जाये........बच्चों के पचासों खिलौने तो बाँट दिए हैं ......पर कुछ इतने प्यारे खिलौने हैं.....कि उन्हें किसी को देने का मन नहीं हो रहा.......एक बिटिया रानी का प्यारा टेडी बियर ...(जो मैंने अपने हाथो से बनाया था......उस समय कितना क्रेज था ....कितना शौक......खुद से बिटिया के कपडे सिलना ..खुद से उसके स्वेटर बनाना ..... खुद से खिलौने बनाना..... ओह्ह ) बिटिया ने अपने टेडी का नाम मेपू जी रखा हुआ था......जिसके बिना उसे चैन नहीं आता था..सारे दिन उसे लिए लिए फिरना ... उसे खिलाना .....उसे लेकर सोना .......बेटे का बैट बाल ....शतरंज , कैरम बोर्ड , लूडो , निकलता ही जा रहा है दीवान से.....बच्चों को गिफ्ट में मिले हुए गेम्स.......उनकी स्लैम बुक....कितने लोगो से लिए गए हस्ताक्षर .....


बिटिया रानी की कई सारी बार्बी डॉल्स उनकी पूरी गृहस्थी .उसके गहने ...बर्तन ....कपडे.....नानी के बनाये हुए सुन्दर सुन्दर बार्बी के स्वेटर ..निकाले धूप दिखाए और ...सब फिर से संभाल के रख दिए हैं.........


पतिदेव कि एक खास आदत है अपनी जेब में ढेरों कागज छोटी छोटी पुर्चियाँ.....जमा करते जाते हैं....और जब कमीज बदल कर दूसरी पहनी जाती है तो वे सारी चीजें दूसरी नई कमीज के जेब में चली जाती हैं.......और ये सामान जब आवश्यकता से अधिक जमा हो जाता है तो सब रुमाल में लपेट कर रबर बैंड से बाँध कर रख दिया जाता है ....यह कह कर कि फुर्सत से देखेंगे ....और ये फुर्सत बहुत मुश्किल से निकाली जाती है......ऐसे कई बण्डल भी इस सफाई अभियान में मिले......मैं जानती हूँ कि अगर मैंने ये सारे बण्डल कूड़े के हवाले कर दिए तो उनमे कोई न कोई ऐसा आवश्यक कागज जरूर निकल आएगा .. जो पतिदेव ऐसे मौके पर खोजेंगे और पूछेंगे कि ....मेरे पास कोई जवाब नहीं होगा .......फिर घर में एक सुनामी आना तो तय है ,,,,,,,,और जिसके बिना कुछ न कुछ नुक्सान हो जायेगा.....इस लिए बिना उन्हें डिस्टर्ब किये पड़े रहने देती हूँ.....




बच्चों के ढेरों पुराने पेंसिल बॉक्स , जो कभी नए खरीद कर लाये गए थे तो उनमे अपना मनपसंद बॉक्स लेने के लिए कैसे कटा युध्ध्ह मचा था याद आता है......दोनों को अपना छोड़ कर दूसरे का ही ज्यादा पसंद आता था........पुरानी स्कूल ड्रेस, पुराने जूते , पुरानी ढेरो किताबें .....उफ्फ्फ्फफ्फ़ .........
कलाकार होने के नाते हम लोगो को जो उपहार गिफ्ट्स आदि भी मिलते रहे हैं उनमे ज्यादा तर ऐसी ही चीजें हैं......जो लोगो को आकर्षित तो बहुत करती हैं.....पर एक समय बाद वे कबाड़ का ही रूप ले लेती हैं....( और ऐसी चीजे हमारे पास इतनी ज्यादा हैं की एक छोटा मोटा म्यूजियम तो बन ही सकता है )......मैं मूलतः एक आर्ट और क्राफ्ट टीचर हूँ.....और ज्यादातर बच्चों को यही सब सिखाती भी हूँ......पर अपने लिए कभी नहीं बनाती....इतना ज्यादा बनाया है की अब मुझे इनसे ऊब सी होने लगी है ......(क्यों कि मुझे लगता है कि वे भी सिर्फ कबाड़ (!!) ही बढ़ाती हैं..)........

किताबें जो अब किसी काम की नहीं रही है...उन्हें सिर्फ दीमको का आहार बनाने की इच्छा नहीं है... उन्हें दिल कड़ा करके कबाड़ी के हाथो देने का मन बना लिया है.......... बेटी के बनाये हुए तमाम चित्र और उसकी ड्राइंग कापियां ,,,,,कैसे दे दूं कबाड़ी को ???

सैकड़ों की संख्या में मैगजींस .........अनगिनती किताबें.......ऐसी किताबें जिनकी कवर डिजाइन बनाई है मैंने ...या जिनमे कभी कभी छपी भी हूँ...... आखिर कितना इकठ्ठा करूँ ??.....क्या करूंगी इकठ्ठा करके....सब पत्रिकाओं के पृष्ठ भी जर्जर होने लगे हैं ....फिर भी करीब २०० पत्रिकाएँ ऐसी हैं जिन्हें फेंकने को अभी दिल गवारा नहीं कर रहा .......वे फिर से संभाल कर किताबों की आलमारी में सजा दी हैं.....



कभी बेहद शौक़ से पत्रिकाओं से काट काट कर व्यंजन और अचार इत्यादि बनाने के तरीके इकठ्ठा किये थे...और जो शायद ही कभी प्रयोग में लाये गए......कितनी फाइल्स में लगा लगा कर रखे हुए ..तमाम घरेलू नुस्खे...पुराने अखबारों की कतरनें ..........सब एक बड़े लिफाफे में भर दिए हैं.....और ये सोच लिया है की वे मैंने देखे ही नहीं.......या वे कभी थे ही नहीं...( हाय !!!मैं कितनी कठोर दिल की हो गई हूँ )

1 comment:

  1. hahaha.. bahot acha likhi ho mammy..
    sahi baat hai bilkul.. kitni saari purani chize yaad dila di mammy.. kuch kenkna mat .. kuch saman mein le lungi :)

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