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Thursday, February 10, 2011

नहीं  भूलते  वो दिन....



            आज एक साल बीत चला है .....मम्मी के  बगैर.....यकीन  ही नहीं आता कि मम्मी को गए हुए भी एक साल हो गया है..... यही ७ फरवरी का दिन है और यही वक़्त.....हे भगवान्.....कभी कभी तुम कितने निर्मम हो जाते हो............

           ज़िन्दगी में एक वक़्त ऐसा आता है कि सब कुछ ठीक हो गया लगता है......मगर हम इंसान बहुत बेसब्र हैं....हम कभी सब कुछ ठीक होने का इंतज़ार नहीं करते ......हम बस अपनी इच्छाओं  के  पीछे भागते हैं.......हमारी ज़िन्दगी में भी लगता है सब ठीक हो गया है....पर काफी कुछ खो देने के  बाद............

            माँ बाप का साया .......सर से उठ जाना बहुत तकलीफ देता है.......

                    समय बदल जाता है परिस्थितियां बदल जाती हैं.....सब कुछ पहले जैसा नहीं रहता .............घर वही रहते हैं ........रहने वाले बदल जाते हैं...........मम्मी के  जाने के  बाद   पहली बार अभी दीवाली में बनारस जाना हुआ........करीब ९ महीने के बाद.........बता नहीं सकती...कि कैसा महसूस कर रही थी................जी उमड़ा  आ रहा था....रास्ते भर.........हर बार कि तरह यही लगता रहा......कि अभी मम्मी का फ़ोन आएगा....कहाँ तक पहुचे तुम लोग?????......पापा जी का कई बार फ़ोन कर कर क पूछते रहना ............बड़ी देर हो गई??/.....कहाँ तक पहुंचे ????..............देर सवेर हम लोगो के पहुँचने  तक बिना खाना खाए  इंतज़ार करते रहना......तिवारी जी की  मनपसंद मिठाई....मंगवा कर और बढ़िया गाढी  दही जमा कर रखना मम्मी का हमेशा का शौक रहा ........मुझे नहीं   लगता है कि  उनके जैसा दही बना पाना हम लोग कभी सीख पायेंगे ..कम से कम मैं तो नहीं बना सकती........

         मम्मी से कितना कुछ सीखना चाहते थे हम लोग पर आज लगता है कि कितना व्यर्थ समय गंवाया हमने और १०% भी नहीं सीख सके........कभी  सोचा  भी नहीं कि कटहल की  सब्जी या मिर्च का अचार ..........अब कभी खाने का मन होगा तो किस से कहूँगी   ......कभी जरूरत ही नहीं पड़ी कि मैं खुद से बनाऊँ जब भी बनारस जाना हुआ......तो बड़े हक़ से अचार के  जार नीचे उतार कर अपने मर्जी भर अलग जार में भर लाती  थी.....टमाटर के  मौसम में पचास पचास किलो टमाटर की  सॉस मैं और मम्मी बना डालते थे......जिनमे से आधी तो बाँट दी जाती थीं......हर आने जाने वाले को पापा जी बड़े ही खुश होकर ये बताते थे कि मेरी बेटी ने बनाया है........मैंने फ्रूट प्रिजर्वेशन  का कोर्स किया था.........तब मेरे साथ साथ मम्मी को भी बहुत शौक हो गया था तरह तरह के अचार और जैम     जेली बनाने का........वैसे  मम्मी हर तरह का अचार बहुत अच्छा बनाती  थीं............और सेंटर  में जाकर मेरे साथ वो भी सॉस बनवाती थीं............घर  के अमरुद के पेड़ के ढेरो अमरुद तोड़ कर उनकी जेली बनाना याद आता है............और मम्मी के बनाये हुए मिक्स्ड अचार का तो कोई जबाब ही नहीं........अब वो स्वाद कभी नहीं मिलेगा.....किसी भी पार्टी में कोई विशेष व्यंजन अगर हम लोग खा कर आते थे..तो सबसे पहला प्रयास मेरा और मम्मी का यही होता था कि वो कैसे बनाया गया है उसे जरूर बना कर देखना है.........पापा जी जितना खाने के शौक़ीन थे उतना ही मम्मी ने बनाने और सीखने का प्रयास किया........और ये रूचि मुझमे और रेनू मौसी में भी जगी .........मौसी भी बहुत अच्छा खाना बना लेती है.....

          मेरे दोनों बच्चे बनारस जाने के  पहले ही नानी से आग्रह कर लेते थे या कहू...आर्डर दे देते थे कि नानी...हम लोग जब आये तो कढ़ी बना कर रखियेगा......और नानी हर काम छोड़ कर उनकी बात पूरी  करती  थीं....बेहद रूचि के   साथ और बहुत स्वादिष्ट .........बहुत याद आरही हैं सारी बाते.....
          मेरे पतिदेव खाने के मामले में थोडा अलग रूचि के हैं..और उन्हें बहुत कम चीजे ही पसंद हैं.....पर मुझे याद है कि मम्मी कि बनाई हुई सूरन कि सब्जी  और कटहल का कोफ्ता भी बहुत स्वाद ले कर खाया है उन्होंने.......मेरे बेटे को उनका बनाया हुआ बेसन का हलवा इतना पसंद था कि उसने मम्मी से सीख लिया ...और कभी कभी बना भी लेता है.......और मुझे गर्व है कि मेरे दोनों बच्चे भी बहुत अच्छा खाना बना लेते हैं.........

             कभी कभी यह सोच कर  बहुत तकलीफ सी होती है कि अब बनारस जाने पर मम्मी और पापा जी कोई नहीं मिलेगा.......भाई  ने घर का पूरा निचला हिस्सा किराये पर दे दिया है और ऊपर के पोर्शन में शिफ्ट हो गए हैं सब लोग.........बहुत  से  परिवर्तन  हो  गए  हैं  घर  में ........पर घर बदले जा सकते हैं बेचे जा सकते हैं....पर उनसे जुडी हुई यादें नहीं बदली या बेचीं जा सकती......

                              पूरे घर में बचपन की  यादें बिखरी हुई हैं......
: हजारो  यादें  जुडी  हुई  हैं ...उस  घर  से ......जब  जाती  हूँ  तो  आँखें  भर  आती  हैं ........पर   क्या  करूँ  .......अब  तो  सिर्फ  एक  मेहमान  की   तरह  जाना  होता  है  न .....
         सब  खुद  में  इतना  व्यस्त  हैं ........किसी  के  पास  किसी  के  लिए  समय  नहीं .....
     मुझे याद है कि मुझे हॉस्टल में रहने का बहुत शौक था......पर बनारस में ही रहने और बनारस  यूनिवर्सिटी में ही पढने की  वजह से हॉस्टल कि कोई जरूरत नहीं समझी गई.......तो मम्मी ने मेरे लिए  मेरा एक निजी कमरा बना दिया था........जो आज भी गुडिया (मेरा) का ही कमरा कहलाता है...........
        घर  में  मैं  अपने  कमरे  को   अपने  ढंग  से  सजा  कर  रखती  थी ..... बड़े  बड़े  पोस्टर्स  और चित्र  अपनी  मर्जी  से  लगाये थे
....कमरे  के  अन्दर  हॉस्टल  था ..और  कमरे  से  बाहर  घर........ ...मेरा  निजी  कमरा  था  .......मेरी   अलमारी  मेरी  टेबल  .........मेरा  पलंग ................सब  कुछ  अपने  ढंग  से  .....
                     वो मेरा प्यारा कमरा .... कितनी  पेंटिंग्स  बनाई  है  उस   कमरे  में ..........कितनी  कहानियाँ और  कवितायें  लिखी  हैं ....कितना  हँसे  और  रोये  है.............लड़े  और झगडे    हैं ......    
     
   सहेलियों के साथ घंटों बैठ कर खीं खीं करते रहना पर अब  तो    

सब  कुछ  एक  सपना सा लगता   है .....
       और  अब    मम्मी  पापा  के  नहीं  रहने  से  सब  कुछ  ख़त्म   सा ही  लगता है....... अब वो दिन कभी नहीं लौटेंगे......

2 comments:

  1. mammy itna sundar likha hai.. ki shayad agar tum hi dubara padhogi to ro do gii....
    bahot zada chu gaya dil ko..
    mein bahot roii hu mammy..
    bahot sundar hai .. bahot zada..
    love u..
    nani n nana hamehsa hamare pass hai..

    betu.

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  2. bht heart touchng hai .........
    kitni aisi baatein smjh aatin h jinko hmesa hi hmlog for granted lelete h....
    ye blog padhne k baad me aaj tk yahi soch rh hun ki jb mummy mere saath nai hogi to sb kuch kis tarah khtm hojayega....jin chhoto chhoti baaton pe kbhi dhyan bi nai diya.....unki bi kitni kami mehsus hogi... :'-(

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