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Monday, December 10, 2012

बाय बाय डी- टाइप



ए - २०८ से डी -५५ तक का सफ़र



इधर काफी दिनों से घर (डी - ५५ ) छोड़ने की प्रक्रिया चल रही है.....

पतिदेव के अवकाश प्राप्त करने के बाद कम्पनी के आदेशानुसार अब हमें यह बंगलो ख़ाली करना पड़ेगा.....और शिक्षकों के लिए मिलने वाले बी - टाइप क्वार्टर में शिफ्ट होना पड़ेगा......जहाँ मैं बिना किसी परेशानी के रह सकती हूँ......पर पता नहीं क्यों .....नए घर में जाने का सोचते हुए एक अजीब सी मनःस्थिति बनी हुई है .......करीब २८ वर्षों से हम यहाँ आई.टी.आई. में रहते चले आरहे हैं....एक अच्छा , खुश हाल और लोकप्रिय जीवन जिया है......पतिदेव के एक संभ्रांत पद पर और स्वयं एक अध्यापिका के पद पर रहने के कारण लोगो का भरपूर आदर भी पाया है......

जब पतिदेव ने यहाँ ज्वाइन किया था तब हमें कुछ दिन यहाँ ए -टाइप (कंपनी का सबसे छोटा फ्लैट,दो कमरों वाला ) में भी रहना पड़ा था.......उसके बाद चार कमरों वाले बी - टाइप में शिफ्ट हुए जहाँ कुछ लम्बा समय बिताया .......फिट सी - टाइप और करीब साल भर से डी- टाइप ,,,,,....और अब समय चक्र के घूमने से फिर बी- टाइप में जा रही हूँ.....गृहस्थी कई जगहों में बँट गई है.. रायबरेली में पुश्तैनी घर , मैं यहाँ मनकापुर में , पतिदेव लखनऊ में. बेटा दिल्ली में , बेटी दामाद गुडगाँव में ........
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अब फिर से नए लोग, नया पड़ोस ,नए सिरे से एडजस्ट करना पड़ेगा........सोच के उलझन सी हो रही है ,......खैर देखा जायेगा ......

.सबसे अजीब तो लोगों की कुछ कुछ उपहासात्मक नजरो से महसूस होता है.......जैसे न कहते हुए भी कह रहे हो आ गए औकात में ???.........क्यों की यहाँ का कुछ ऐसा चलन है कि डी - टाइप और सुपर डी -टाइप में रहने वाले अपने को कुछ ख़ास समझते हैं और होते ही हैं....बड़े अफसर जो ठहरे ......पति बड़े अफसर होते हैं और पत्नियाँ उनसे भी बड़ी अफसर....और ए और बी टाइप वालो को छोटा समझने की एक अलग सी भावना होती है..........और जब ऐसी स्थिति आती है कि पतियों के रिटायर होने के बाद नौकरी शुदा पत्नियों को छोटे क्वार्टर्स में रहना पड़ता है तो उनकी स्थिति थोड़ी अजीब सी हो जाती है........फिर बड़े बंगले में रहने के उपरान्त छोटे घर और भी छोटे लगने लगते हैं.....

सर्वेंट क्वार्टर , फुल टाइम काम करने वाली. खाना बनाने वाली .... सहयोगी आया , माली , नौकर ....खूब बड़े बड़े तीन बेडरूम्स , १५ बाई २० का बड़ा सा ड्राइंग रूम , १० बाई १५ का किचन , और ८ बाई १० के दो अंग्रेजी और देशी ढंग के बाथरूम्स..... १५ बाई १८ की बड़ी सी लॉबी ....घर के आगे , बीघे भर का लॉन..अगल बगल और पीछे किचन गार्डन कई कई अमरुद और आम के पेड़.....ये सारे सुख (!!! ) छोड़ के छोटे घर में जाना अखर जाता है.... सारी नक्शेबाजी ख़तम......सारा भौकाल धरा रह जाता है.....पर क्या किया जाये जाना तो है ही......ये कोई अपना तो नहीं है....कुछ समय के लिए भले ही सभी भ्रम में पड़े रहे ...

इतने दिनों में जो इतनी बड़ी गृहस्थी जोड़ ली जाती है वो सब लेकर छोटे से घर में जाना , ये सोचने पर विवश कर देता है आखिर क्या छोडें क्या ले जायें....सब कुछ तो वहां समाएगा नहीं.....फिर रिटायर होने के बाद अपना घर कहीं न कहीं , कोई न कोई तो ठिकाना तो होना चाहिए जिसे अपना घर कहा जाये.......भगवान् की असीम कृपा से आखिर वो दिन आ ही गया है की हमारे पास भी अपना कहने को एक छोटा सा ही सही प्यारा आशियाना बन गया है.... जिसमे हमारे सपनो के अलावा भी , बहुत सी चीजों के रखने की जगह है.......

अब अबतक जोड़ी गई .पूरी गृहस्थी लखनऊ भेज कर बी-टाइप में शिफ्ट होना है.......दो चार सामान यहाँ रख कर कुछ समय पुनः यहाँ बिताना है......

आज से २८ साल पहले जैसे आये थे उसी पोजीशन में फिर पहुँच गए हैं.......जैसे दो चार सामान के साथ यहाँ आये थे.....फिर वही स्थिति है.....उस समय पतिदेव तीन चार साल तक अकेले रहे थे ...मैं आती जाती रहती थी.....अब मैं अकेली रहती हूँ पतिदेव आते जाते रहते हैं..........यही लगता है दुनिया गोल है और आई. टी. आई. ने कह दिया है ,,,,,,पुनः मूषकः भव..... . .......