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Thursday, April 14, 2011



            मेरी  प्यारी  बेटी      


                        आज बेटी ने एक बहुत मासूम सी ख्वाहिश जाहिर की है ...मम्मी कुछ मेरे ऊपर भी लिखो न........समझ नहीं पा   रही क्या क्या लिखूं ??// क्यों की इतना कुछ है लिखने को.....की लिखती ही चली जाऊँ तो भी जी नहीं भरेगा.....खुद से ज्यादा प्यार किया है मैंने अपनी माँ को और उस से भी कहीं ज्यादा अपनी  बेटी को.....कहते हैं न की एक औरत खुद में अपनी  माँ को देखती है और अपनी बेटी में खुद को......और ये बात मैंने स्वयं महसूस की है  .......
            मम्मी ने एक साल की उम्र में ही अपनी माँ को खो दिया था...और उनका बचपन अपनी ननिहाल में ही बीता....अपनी प्यारी नानी जिन्हें वो दूधू कहती थीं ........   .........बहुत से किस्से सुने हैं मम्मी से उनकी नानी के......और उनकी नानी ने उनको जितना प्यार दिया.............वो उन्होंने पूरे का पूरा या कहूं...................ब्याज के साथ अपनी  नातिन (मेरी प्यारी बेटी) को लौटा दिया......इतना ज्यादा स्नेह और प्यार....................कल्पना नहीं की जा सकती........ मेरी बेटी के जन्म के वक़्त मैं एम्. ऍफ़.ए. प्रथम वर्ष की छात्रा थी.....और उसके कुछ महीनो का होते ही मेरा यूनिवर्सिटी जाना फिर शुरू हो गया था.......सुबह ९ बजे  से शाम ५ बजे तक मेरी व्यस्तता रहती थी....फिर वापस घर आकर अपने कमरे में क्लास वर्क..और सेश्नल्स में जुट जाना......कहने का मतलब ये की मेरी बिटिया सिर्फ सोते वक़्त ही कुछ देर के लिए मेरे पास आती थी.......बाकी का सारा समय अपनी नानी के पीछेपीछे..........मेरा घरेलू नाम गुडिया है......और हमेशा गुड़िया गुड़िया की पुकार  सुन कर मुझे वो भी गुड़िया ही कहने लगी थी......मम्मी के बार बार समझाने पर की बेटा नाम नहीं लेते वो तुम्हारी मम्मी है......उसमे इतना ही सुधार आया था की वो मुझे गुड़िया मम्मी कहने  लगी थी.......जिसे सुन कर सब खूब हँसते थे......मम्मी सिर्फ उन्हें ही कहती थी..........

                  करीब साढ़े तीन साल तक मम्मी ही उसकी सब कुछ बनी रही   .......महीने दो महीने में एक बार मैं मनकापुर (पतिदेव के पास ) चली आती थी......कुछ दिनों की छुट्टी लेकर......तो भी वो मेरे साथ आना नहीं पसंद करती थी.....और अगर बहुत कोशिश करने पर आ भी गई तो एक दो दिनों के बाद ही वापस चलने की फरमाइश शुरू हो जाती थी.......पूरा समय बाहर बालकनी की ग्रिल पकड़ कर खडी रहती थी.................नानी के इंतज़ार में.........और यही हाल नानी का बनारस में रहता था...............नातिन के वियोग में.........
                   बाज़ार में कोई भी सुन्दर फ्रॉक  दिखे वो मेरी बेटी के पास होनी ही चाहिए......कितने सुन्दर सुन्दर डिजाइन के कपडे और फ्रिल्स वाली ड्रेस बनवाई थीं मम्मी ने उसके लिए......मुझे याद है एक बाद  एल.के. जी. में पढने के समय स्कूल के एक प्रोग्राम में उसे परी और राजकुमारी बनना था......उसके लिए गुलाबी फ्रॉक खोजने में मम्मी और मैंने पूरे ५ घंटे लगाये थे.....तब जा कर कहीं मम्मी के मन लायक ड्रेस मिल पाई थी........           

                   आज भी ........कपड़ों का बेहद शौक़ है उसे.....कितने ही कपडे हैं उसके पास पर जब भी बाज़ार जाना होगा............चाहे उसे या चाहे हमें.....प्लीज मम्मी मेरे लिए   कोई   अच्छा सा ड्रेस ले लेना..........कोई बढ़िया सा टॉप ले लेना......उसकी हमेशा यही फरमाइश रहती है.......और मैं खुद को क्या कहू......मैं खुद ही अपने आप को रोक नहीं पाती उसके लिए कुछ लेने से.....कोई भी बढ़िया .....उसके लायक ड्रेस दिखती है.........यही मन  होता  है की ये मेरी बेटी पर बहुत सुन्दर लगेगी और उसे खरीद लेती हूँ....क्या क्या अच्छा  कर डालूँ   अपने बच्चो के लिए........यही तमन्ना रहती है.........बस अपने तरफ से कोई कमी नहीं की है और .................आगे भी नहीं करना चाहती...........
          

             एक दिन की घटना नहीं भूलती........मेरे फाइनल  एक्जाम्स  चल रहे थे ...और अपने फाइनल   सेश्नल्स जमा करने थे मुझे .......एक साथ दो  तीन पोस्टर्स पर काम कर रही थी.............अपने विषय के अनुसार यू .पी. टूरिज्म  पर पोस्टर बना रही थी......रात रात भर जाग कर .........विजिट  आगरा पर पोस्टर बनाया था......जिसमे एक बहुत खूबसूरत मुमताज़ महल का पोर्ट्रेट था.......जो लगभग पूरा बन चुका था......मेरा कमरा या उस वक़्त का मेरा स्टूडियो जो भी कह लें...उसमे मेरे कहे अनुसार किसी को घुसने की अनुमति नहीं थी.....क्यों की  पूरे कमरे में रंग ...कागज़..ब्रुश  वगैरा फैले हुए थे.........उसमे मैं बाहर से ताला बंद करके ही यूनिवर्सिटी  जाती थी.......

     मैं उस कमरे में रात भर .........और दिन में जब घर में हूँ .......तो क्या करती  रहती हूँ.........ये जानने की बड़ी उत्सुकता रहती थी मेरी बिटिया में......क्यों की वो जब भी वहां आना चाहें.........फ़ौरन मना कर दिया जाता था  ...........तो उस दिन मेरी ही लापरवाही की वजह से वो कमरा खुला रह गया.........और जब शाम को ५ बजे मैं यूनिवर्सिटी से वापस लौटी......तो ...........हे भगवान्.....!!!!!           

               पहले तो मैं एक घंटा खूब जोर जोर से रोई  ......... फिर तीन चार चांटे लगाये बिटिया  के गालों पर............मम्मी बहुत परेशान हुईं पर क्या किया जा सकता था....बिटिया रानी ने मेरी अनुपस्थिति में मेरे मुमताज़ महल के पोस्टर पर अपनी कला का पूरा प्रदर्शन कर दिया था........कलर प्लेट में जितने भी रंग थे ...........उसने   सबसे मुमताज़ महल के  साथ  होली खेल ली थी..........
           कितनी  दिक्कतों के साथ मैंने रात भर जग कर वो चित्र  फिर से बनाया ....मैं ही जानती हूँ...........
            हम दोनो पति पत्नी को रंग ब्रुश से काम करते हुए देखते देखते बहुत शौक हो गया था उसे भी....जब वो ठीक से खडी भी नहीं हो पाती थी.....उस समय के बनाये हुए उसके चित्र आज भी मेरे पास रखे हैं........

                पहले मुझे लगता था की शायद हमारी तरह ही वो भी कला क्षेत्र  में जाना पसंद करेगी...............पर ये कला प्रेम सिर्फ शौक़ तक ही सीमित रहा......मेरे बेटे को तो ड्राइंग पेंटिंग बिलकुल भी नहीं आती......उसका कला क्षेत्र मंच से जुडा है..........इसी लिए वो मीडिया लाइन  से जुड़ गया है.......

            मेरी बिटिया कोई असाधारण व्यक्तित्व की स्वामिनी नहीं है पर चूंकि वो मेरी बिटिया है और ............अपनी   बिटिया  सभी को प्रिय होती है........इस लिए मैं उसके बारे में जो भी लिखूंगी दिल से लिखूंगी......ये तो तय है......
                        ये भी शत प्रतिशत सच है की बचपन में बेहद प्यारी थी वो.....बिलकुल डॉल जैसी......खूब साफ़ गोरी चिट्टी.....बिलकुल अपनी दादी  के रंग की....क्यों की न  तो मैं ही इतनी  गोरी हूँ न ही मेरी मम्मी थीं......जब से उसके आगमन की बात पता चली थी.......तो मम्मी का पूरा ध्यान इसी में रहता था की इस अवस्था में क्या क्या खाने और  क्या क्या सावधानियां  रखने से बच्चा सुन्दर होता है......बाल सुन्दर होते हैं......और उन सभी बातो का मुझ पर प्रयोग भी किया गया............ख़ुशी की बात ये रही..........की उन सब पर मेरी बेटी खरी भी उतरी.......जब वो हुई तो बेहद गोल मटोल साफ़  सफ़ेद रुई के गोले जैसी थी....और सर पर बेहद काले मुलायम बालों  की टोपी सी लगी हुई.......नवजात बच्चे के सर पर इतने घने बाल कम ही देखने को मिलते हैं........
       आज भी उसके बाल बहुत सुन्दर हैं......हाँ बीच बीच में काट पीट और स्टाइल बदलने के चक्कर में मुझसे डांट भी खाती रहती है..........एल. के. जी से लेकर क्लास ८ तक उसके बाल मैं ही काटती  रही हूँ.....हर शनिवार को रात में बालों खूब सारा तेल लगा कर छोड़ देना ..........और दूसरे दिन शेम्पू करना आज भी दिनचर्या में शामिल है.................मम्मी को बाल काटना बिलकुल पसंद नहीं था.....और हमारी कभी हिम्मत नहीं पड़ती थी की कभी चर्चा भी करें इसकी.......और मम्मी के नहीं रहने पर मैंने भी बाल छोटे करा लिए हैं.......और आज भी   अभी भी  जब भी कटिंग करने जाती हूँ तो कहीं से एक डर सा मन में खटक  जाता है .......की कहीं मम्मी नाराज न हो.......

        बचपन से ही उसे तरह तरह के पोज  बना कर फोटो खिंचाने का बहुत शौक़ रहा है......और उसके पापा ठहरे एक बढ़िया फोटोग्राफर.......तो पापा बेटी की खूब जोड़ी जमती थी.......जब भी वक़्त मिले...पूरा समय उसके पीछे कैमरा  लेकर  लगे रहते थे........वो तरह तरह का मुंह  बनाये......और ये क्लिक करते रहें  ......कम से कम ६ या ७ अल्बम भरे हुए हैं उसकी और मेरे बेटे की  बहुत प्यारी प्यारी फोटोज   से.........उसके बचपन की लगभग २ या ३ साल की उम्र की बेहद प्यारी बात चीत.....पापा से लड़ना ..मुझसे  बाते करना.......गाना गाना...लोरी सुनाना.....नाना नानी के बारे में बातें करना ...सब हमने   टेप  करके रखा हुआ है और आज भी सुनते रहते हैं........बहुत मज़ा आता है.............

                 मेरी बिटिया ने छोटी क्लासेस  में तो खूब अच्छे नंबर लिए पर अगली क्लासेस  में वो एक औसत छात्रा  ही रही.........कितनी ही बार बहुत ज्यादा परेशान और दुखी हुए हम लोग........पर दूसरी एक्टिविटीज में उसका बहुत अच्छा रेस्पोंस रहा....डांस ,ड्रामा,...स्टेज  परफोर्मेंस .........  स्कॉउट्स  एंड  गाइड्स  में तो   उसे राज्यपाल और राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिला है..............वो हमारे स्कूल की उन पहली ४ छात्राओ में है जिन्हें ये पुरस्कार मिला है........डांस के लिए अभी भी टीचर्स   उसे याद      करती हैं..........जब की     उसे स्कूल छोड़े     हुए ६   साल बीत    चुके    हैं......हर गर्मी    की छुट्टियों   में कोई न कोई वर्कशॉप    ज्वाइन    करना और पूरे मनोयोग    से उसे सीखना उसकी खासियत रही है.....खाना बनाने और कोई खास डिश  बनाना सीखने में भी .............उसकी काफी रूचि है........आज भी जब कभी कुछ खास बनाने का मन होता है उसका .........तो मुझसे फ़ोन कर कर के पूछती रहती है..और बनाती है..या गूगल पर खोजती रहती है.....................ये गुण उसे नानी से विरासत में मिला है.............
                     मनकापुर जैसी छोटी सी जगह में भी हमने पूरी कोशिश की  की हर क्षेत्र में उसकी रूचि  रहे..................मेरी खुशकिस्मती   रही है  की मनकापुर में एक आर्टिस्ट की हैसियत से हमारा एक अलग स्थान बन गया है और आज १८ साल से मैं यहाँ अपनी पेंटिंग और होबी क्लासेस  चला रही हूँ.......और बहुत से बच्चे मुझसे सीख कर जा चुके हैं और आज भी आते रहते हैं........पर मेरी  बेटी को यहाँ मेरी बेटी होना  थोडा  नुकसानदायक  रहा है क्यों की .......जब भी किसी चित्रकला  की प्रतियोगिता हुई है अक्सर हम पतिपत्नी  ही वहां जज  बन कर जाते  रहे हैं.....और इस डर से उसे नंबर देने से बचते  रहे हैं..की हम पर पक्षपात का आरोप  लग जायेगा ..........उसका काम प्रथम या द्वितीय स्थान पर होने के बावजूद उसे प्रतियोगिता से बाहर रख दिया है........
          क्लास में अगर उसने बहुत अच्छा बनाया है तो.....उसे ये सुनने को मिलता था  की  अरे मम्मी पापा दोनों कलाकार हैं.....अच्छा तो बनाएगी ही....और अगर अच्छा नहीं बनाया...तो कहा जाता था......की बताओ भला.....मम्मी पापा दोनों कलाकार हैं..............और कितना ख़राब बनाया है.......इस पर उसका झुंझलाना भी याद आता है.........कभी कभी लगता है की अगर माँ बाप ज्यादा हुनरमंद हैं तो अक्सर बच्चों की प्रतिभा उनके आगे दब जाती है...........पर मुझे ख़ुशी है की यहाँ से बाहर जाने के बाद उसने अपना एक अलग स्थान बनाया है.........जिसमे हमारा सहयोग बहुत कम है.....(सिर्फ पैसे दे कर फीस भरने तक ही)......बाकी की सारी मेहनत उसकी अपनी है.........जब उसे मेरे पतिदेव बंगलौर छोड़ने गए और जिस दिन वापस आये.......वो दिन नहीं भूलता....... हफ्ते भर उसके साथ रह कर जब  ये आने के लिए ट्रेन में चढ़े.......तो मेरी बेटी  जो तब तक खुद को जब्त किये हुए थी......एक दम बिलख पड़ी...... तुरंत मुझे फ़ोन पर रोते हुए बोली मम्मी पापा जा रहे हैं.........तब उसे लगा की इतने बड़े शहर में वो बिलकुल अकेली रह गई है...........और पापा का ये हाल था की वे भी रास्ते भर उदास और भरे मन से आये ...............कई बार तो ऐसा   लगा की शायद वो अकेले नहीं रह पायेगी...............पर बहुत समझाने और दिलासा देने के बाद......... नानी के बहुत समझाने पर अंततः  ..............उसने रहना स्वीकार  किया..............और बहुत अच्छे नम्बरों  से अपनी परीक्षाएं  भी    पास की ............एम्.बी .ए.   में अपना एडमिशन उसने स्वयं भागदौड़ कर के कराया......और अकेले बाहर भी हो आई............मुझे याद है.........मम्मी को बहुत शौक़ था की मेरी बेटी भी विदेश जाये......जब उसका पासपोर्ट  बन कर आया  तो बहुत उदास हो कर उसने फ़ोन किया था ...की मम्मी आज नाना नानी होते तो कितने खुश होते.......सचमुच .........आज वो लोग नहीं है उसकी सफलताएं देखने के लिए.......नानी की तबियत ख़राब होने का सुनकर वो कितनी मुश्किलों से रात में ३ बजे अस्पताल पहुची थी.....और रात भर उनका हाथ अपने हाथ में लेकर बैठी रही थी.......बस इसी बात का संतोष है की  मम्मी उस समय तक इतने होश में थीं की उनको उसके आने का पता चल गया था................शायद वो सिर्फ इसी लिए उस वक़्त तक होश में थीं........बार बार उसे आराम    करने को कहती रहीं  .....इतनी दूर  से आई है...कुछ खाया   या नहीं?.....जाओ सो जाओ...............फिर वो कोमा में चली गईं......और दोबारा कभी होश में नहीं आईं................मेरी बेटी ने नानी की कराहने और बार बार उसे सो जाने का निर्देश देते हुए बोलने की आवाज अपने मोबाइल में रिकार्ड कर ली थी......जो आज भी सुनती रहती है......वो एक धरोहर सी हो गई है.....उसके पास.........

                 ये कहते हुए बहुत अच्छा लग रहा है.....की अब उसने अपनी सफलताओं की मंजिल की ओर कदम    बढ़ा    दिए    हैं........एक अच्छी    शुरुआत    की तरफ    बढ़    चली है.......यही उम्मीद  क्यों पूरा विश्वास    है .........की वो हर हाल    में सफल    होगी   .......देखते ही देखते कितना समय बदल गया है......मेरी नन्ही सी प्यारी सी बेटी आज इतनी बड़ी हो गई है.........की अब इतनी बड़ी बड़ी और समझदारी की बातें करने लगी है....हम दोनों मुंह  खोले भौंचक्के से उसकी बातें सुनते रहते हैं.......क्यों की कितनी ही बातें हैं जो अब उसके लिए बहुत आसान है ...........और हमारे लिए बहुत मुश्किल.........जिनके बारे में हम कत्तई नहीं जानते.....और अपने बच्चो से सीखते हैं...........अब तो उसके साथ एक बहुत अच्छा  साथी  और सहयोगी   भी जुड़   गया है..........हम शादी   के लिए ऐसा ही    साथी   तलाशते   हैं....जो हमारे विस्तार    में सहयोग दे,..........न की हमें   बाँध    कर रख दे...एक दूसरे    के लिए सहयोग जरूरी    है...............किसी पर अपनी मर्ज़ी   नहीं थोपनी   चाहिए  .......और मुझे पूरा विश्वास   है की उसे ऐसा ही साथी   मिल   गया है................भगवान्      उन दोनों को हमेशा खुश रखे......जीवन  में कभी किसी तरह की कमी  न रहे......किसी को उसकी वजह से तकलीफ   न पंहुचे .........हम सभी का, नाना नानी , दादा   दादी का, सभी बड़ों   का आशीर्वाद  उसके साथ रहे यही कामना  है............आमीन !!!