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Monday, September 21, 2020

आती हूँ....

बनारस ही तो हमारा प्यारा घर है.... जो हम पीछे छोड़ आए हैं..... यही भाई हैं जो आने वाली अनेकों राखियों पर भी हमारा इंतजार करेंगे।
😟इस बार राखी भी ऑनलाइन पंहुची होगी..... उसमें साल में एक बार ही सही ये लिखने का मौका नहीं मिला.....
"प्रिय पप्पू, रंजन
शुभ राखियाँ भेज रही हूँ, डुग्गू से बंधवा लेना....
शेष शुभ
दीदी
.
राखी हल्दी कुमकुम सब पहुँच गया ।बस हम नहीं पंहुच पाए ।न मिठाई के लिए कोई झगड़ा रहा... न नेग की मारा मारी😟माहौल तो इसी से बनता है कि बताओ कितना पैसा मिलेगा, और क्या मिलेगा? (वैसे जीवन में मैं कभी इस बात के लिए नहीं लड़ पाई)
पहले मम्मी इस चुहल में मुस्करा के हिस्सा लेती थी और पैसे भी वही देती थीं....
😖😖😖😖
घर हमेशा आने वालों की प्रतीक्षा करता रहता है...... पता नही मेरा प्यारा घर अब मेरी  राह देखता होगा या नहीं 😖😖।भाभी की रसोई में खूब कढ़ी, भुजिया, पूड़ी, कुम्हडे, कटहल की तरकारी की खुशबू फैलती होगी.... बस हम ही नहीं पंहुच पाते....

अब तो बस ये सपना ही देख सकते हैं... काश कि अचानक हमें  लेकर कोई रिक्शा वाला गेट पर रुकता और गेट पर खड़ी मम्मी दिख जातीं..... हमेशा की तरह, छोटा भाई फटाफट अटैची और बैग उतार लेता रिक्शा से....... भाई, भाभी, बच्चे सब दौड़ कर आ जाते....... सबके चेहरों पर खुशी दिखाई देती....सिर्फ हमारे पंहुचने से ही चहलपहल मच जाती.....

बस वहीं खड़े रहना सब लोग....  हम आ रहे हैं........

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