बहुत याद आता है.... चिलचिलाती दोपहर में पोस्टमैन के आने पर, अलसाते, गुस्साते हुए जाकर.... तप रहा मेन गेट खोलना और किसी जगह दस्तखत करने हों तो उस समय मेज पर, आलमारी में, फ्रिज पर हर जगह तलाश करने पर कलम का न मिलना, और कोई कलम भाग्य से मिल भी गई तो उसमें इंक नहीं होना, और बॉलपेन या डॉटपेन का कोशिश करके भी न चलना.... और इन सब सरंजाम के बीच पापा जी का हम सब पर लानत भेजते हुए नाराजगी जाहिर करना... "कि ये सब पढ़ने - लिखने वालों का घर है.... मौके पर एक कलम नहीं मिल सकती 😡😡" (सच में उस वक्त सारी कलमें साजिश करके गायब ही हो जाती थीं, मजाल थी कि कोई मिल जाय😏😏😏)
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