कभी सोचती हूँ कि कोई जाए तो आपकी तरह ही जाय अचानक। न किसी से कोई सेवा ली न किसी का एक पैसे का एहसान लिया.... बस खुद की जमापूंजी भर से इलाज हो गया.....कुल हफ्ते भर के अंदर सारा खेल खत्म हो गया.... और बस चली गईं हम सबको ये जताकर कि रखो तुम लोग अपनी कमाई अपने एहसान..... सही एटीट्यूड है ये एकदम....
खैर किस्मत में यही था शायद.... अच्छा है हम लोग शायद कुछ कर देते तो बड़ा गुमान हो जाता खुद पर और क्या पता क्या समझने लगते खुद को। ठीक ही है जिंदगी ने आपके जाने के बाद ही सब कुछ दिया जो हमने सोचा था.... कम से कम अकेलेपन और संघर्ष के दिनों में तो आपका पूरा साथ रहा..... एक हिम्मत रही कि यार कोई नहीं...... मम्मी हैं न..... हम लोग सब संभाल लेंगे.....
सोचती हूँ आपके रहते तक एक अलग ही जिद थी कुछ करने की ,अपनी गृहस्थी बनानी थी.... घर का सामान जोड़ना था... एक घर लेना था खुद की कमाई से...... बिटिया की शादी करनी थी...... पर आपके जाने के बाद ये सब हुआ अच्छी तरह हुआ पर आपके सामने होता तो कुछ और बात होती....... कभी-कभी बहुत बड़ी लगने वाली चीजें अब बहुत छोटी चीजें लगने लगी हैं.....
पापा जी को तो प्राण छोड़ने के घण्टों बाद देखा था पर आपकी साँसे रुकते हुए तो सामने से देखा है। उस वक्त के बाद सपने, जिद सब बहुत छोटे लगते हैं.... लगता है जैसे जीवन का कोई बड़ा सत्य खोज लिया है.....!
अब लिखने बैठो तो केवल यही टीस यही भारीपन निकल ही आते हैं कलम से..तो क्या ही लिखना..... बस मन ही मन बड़बड़ा लेती हूँ तो मन थोड़ा सम्हल जाता है,लिख लेती हूँ तो थोड़ा मन की भड़ास निकल जाती है बस यही कर रही हूँ।
सच कहूँ तो जिंदा हूँ ..खुश भी हूँ...... बहुत खुश हूँ अपने जीवन में..... सबका लाड़ मिलता है...... बच्चे बहुत ध्यान रखते हैं..... सारे नखरे झेलते हैं... अब किसी से कोई शिकायत नहीं..... आपकी बहुत एहमियत थी हमारे जीवन में..... कितना कुछ किया.... दिया हमको लेकिन आप जाते-जाते मेरा कुछ हिस्सा तो ले गईं मम्मी .....
❤️
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