क्या पता, किसी और को भी ऐसा महसूस होता हो कि एक शून्यता सी आने लगी है संबंधों में, वह जड़ता, निष्क्रियता जब हम कुछ फ़ील करना ही नहीं चाहते। जब लगने लगता है कि सब-कुछ जोड़कर, सम्भालकर रखने की कोशिश में ख़ुद टूटते-बिखरते जा रहे हैं.... सबकी अपनी-अपनी व्यस्तताएं हैं, अपने संघर्ष हैं, अपनी चुनौतियां हैं और सबसे बड़ी बात, अपनी प्राथमिकताएं हैं और अपने-अपने एहसास है.....
अपनी बात करूँ तो मैं इज़ी टू कनेक्ट हूँ (बेशक़ सबसे नहीं, जिनसे मेरी अंडरस्टैंडिंग है, दोस्ती है, उनके लिए) लेकिन टच में रहने के मामले में बेहद-बेहद आलसी हूँ.... ख़ुद से कॉल/मैसेज, हाल-चाल जानना, मैं नहीं कर पाती ज्यादा.... मैं कभी दावा नहीं करती कि मै अवेलेबल हूँ हमेशा, क्योंकि पता है, नहीं रह सकती......फिर भी अपने दोस्तों के लिए कोशिश करती हूँ.....चमचागिरी होती नहीं, इसलिये जिनसे ट्यूनिंग नहीं, वहाँ जाने से बचती हूँ ......
पता हम किसकी स्टोरी में हीरो हैं, किसकी स्टोरी में विलेन। सबकी ही अपनी-अपनी सोच है..... फिर भी अच्छा लगता है यह सोचकर कि कुछ तो हैं हम भी..... चाहे मिलें न मिलें, बात होती हो, न होती हो, फिर भी हमारी कुछ तो परवाह है, याद तो किया जाता है, ज़हन में रखा जाता है हमें भी.......हम भी चर्चाओं में रहते हैं......चाहे मन से याद किए जाएं या बेमन से......
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