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Monday, December 4, 2023

इन दिनों....

एक लंबे वक्त के बाद रात भर जाग कर ऐसी सुबह देखी है. इस डर के बग़ैर कि पूरा दिन बर्बाद होगा,थोड़ा सो लेती हूँ. अचानक से याद आया कि लगभग पूरा साल गुजरने को है गाजियाबाद में रहते हुए...... इतने साल गुजर गए. मनकापुर में काम करते हुए एक स्कूल में......अचानक से महसूस हुआ कि जिन  लोगों को मैंने काम के दौरान जाना उन्हें जानते हुए भी कितने साल बीत गए......पर अभी तक नहीं जान पाई..... . 

मनकापुर जैसे  एक गांव या कॉलोनी में बैठकर बातें करने पर बड़े शहरों की  एक अलग ही दुनिया लगती थी तब  और शायद  एकतरफा इंप्रेशन था इन बड़े (!!) शहरों का..... 

गनीमत इतनी है कि मेहनत से अब भी चिढ़ नहीं होती.इतने बरसों अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाने के बावजूद, अभी भी मैं अंग्रेज़ी सीखना चाहती हूँ.... सीख नहीं पा रही..... बोलना सीख रही हूँ.......पर अब बोलने से ज्यादा सुनना अच्छा लगने लगा है..... धीरे धीरे चुप रहने की आदत सी पड़ती जा रही है.... 

मेरे सपने अब तक लगभग  पूरे नहीं हुए हैं. शायद कुछ भी  नहीं पूरा होता.... . लेकिन दो चार जो पूरे हुए उसमें से एक मेरी नौकरी भी थी....... 

बहुत मुश्किल से देखा सपना जो बहुत आसानी से पूरा हो गया... .

पता नहीं कितने साल और कटेंगे इधर..... या कितने दिन......लेकिन ये साल ये दिन बहुत समृद्ध करेंगे ऐसी उम्मीद और इच्छा है 

Saturday, October 28, 2023

मम्मी की याद में

         असहनीय होता है यूं अपनों का चला जाना फिर माँ तो ज़मीन होती है.. माँ का चला जाना यानी पांव के नीचे से ज़मीन हट जाना.. माँ कभी जाती नहीं वो हमेशा हमारे साथ रहती है..... हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन कर...... माँ का होना क्या होता है यह बच्चों के अलावा कौन समझेगा!.....
                  समय लगता है संभलने में जानती हूँ आसान नहीं है, फिर भी !!हमारी उम्र कितनी भी हो जाय माता-पिता के रहते उसका अहसास ही नहीं होता और एक दिन वे हमें यकायक बड़ा कर जाते हैं..... यहीं हम असहाय हो जाते हैं...... 
         जब माता -पिता हमें छोड़ कर चले जाते हैं तो हमारे मन में हमेशा यह अफसोस सालता रहता है कि काश! हम थोड़ी देर और उनके साथ बैठकर बातें कर लेते...... थोड़ा समय और उन्हे दे देते.... हमारे जीवन मे उनकी जगह कोई नहीं ले सकता.. हमें हर पल उनकी कमी महसूस होती है........ शब्द ऐसे समय अर्थ खो देते हैं..... इस तकलीफ़ को सिर्फ़ अपनी तकलीफ़ से समझा जा सकता है........... 
          मां का जाना हमेशा रुला देता  था..... और जब वो हमेशा के लिए चली जाएंगी  तो क्या होगा?? . ये कल्पना ही पीड़ा देती थी..... आज 13 साल बीत गए है पर अभी तक यकीन नही होता.....

(7-2-23)

Friday, October 6, 2023

नानी की जान का तीसरा जन्मदिन 💖💝

हमारे परिवार के सबसे छोटे चमकते सितारे को तीसरा जन्मदिन मुबारक हो...... 

एक..... दो....... तीन! ऐसे ही सुन्दर समय चलता रहे.. 

अस्सी नब्बे और सौ साल तक चलता रहे!!!!! 

खुशियों भरे जन्मदिन की शुभकामनाएं....... 

तुम इतने प्यारे लगते हो न कि मैं चाहती हूं तुम  हमेशा ऐसे ही रहो 

लेकिन मेरी उम्मीद और आशीर्वाद  है 

कि जैसे-जैसे तुम बड़े होगे और भी सुंदर दिखोगे....... 

तुम सुंदर और प्यारे छोटे से राजकुमार हो, 

दुनिया के लिए तुम सिर्फ एक छोटे बच्चे हो 

लेकिन मेरे लिए तुम हम सबकी खूबसूरत दुनिया हो..... 

जब तुम मुस्कुराते हो तो सबको खुश कर देते हो....... 

ख़ुशहाल जीवन जीने के बहुत सारे कारण हैं लेकिन 

अब तो हम सबकी ख़ुशी का सबसे बड़ा कारण तुम बन गए हो.... 

नानी का खूब खूब सारा प्यार और आशीर्वाद लो...... हमारे नन्हे मुन्ने 😍😍😘😘😘

Thursday, July 6, 2023

सुकून के पल

एक वक्त के बाद हम ये खुद समझ जाते हैं 
कि ये जो पीस ऑफ माइंड और सुकून हम कहीं और ढूंढ रहे होते हैं..... किसी और से माँगते फिर रहे हैं  जाने कितनी जगह भटकते फिर रहे हैं.... ये न अपने अंदर ही है...... 

जैसे -सुबह  का समय सिर्फ मेरा है जब सबका नाश्ता बनाकर रख दिया और खुद चाय लेकर एक कोना पकड़ कर बैठ गए..... ये वाला टाइम मेरा सुकून है.....इस समय मुझे डिस्टरबेंस नहीं चाहिए....सब काम निबट जाने के बाद खाने-पीने के बाद दोपहर चार से छः मेरा सोने और आराम करने का समय है जाड़ा - गर्मी - बरसात..... इसमें मुझे डिस्टरबेंस नहीं चाहिए...... नौकरी करते समय भी और अब निठल्ला बैठे रहने के समय भी...ये मेरे सुकून के पल हैं.... 

हमने अपना जीवन, अपना बचपन  अपनों में जिया हर रिश्ते हर एहसास के रंग में रंगे हुए --- हम ना कभी बोर हुए ना चिड़चिड़ाए.... पड़ोसी भी पूरे अधिकार से डांट दिया करते, हमारी मां कभी परेशान नहीं हुई कि बच्चों की पसंद का क्या बनाया जाए उन्हें पता था कि हम कोई ना नूकुर नहीं करेंगे...... पहले ये हर्ट हो जाने या डिप्रेशन में चले जाने जैसे शब्द या भाव नहीं थे...... पहले हम कुछ कहने से पहले अपने बड़ों की तरफ देखते थे..... और अब बच्चों की तरफ देखते हैं ----इसलिए हमारी पीढ़ी की महिलाओं में अकेलेपन का एहसास बढत जा रहा है ---- 
समय की गति तूफानी रफ्तार में है विरोधों और कुतर्को का  सफलता, पैकेज का दौर है
कारण वही है ,पीढ़ी का अंतर...... हमारे माता पिता संयुक्त परिवार में रहते थे ,हर परिवार में चार पांच बच्चे होते थे ।जिम्मेदारियां आसानी से बनती हुई थी.... हम पर कैरियर का बहुत ज्यादा दबाव नही था... साठ प्रतिशत हमारे लिए यूनिवर्सिटी टॉप करने जैसा था......फैशन और स्टाइल की अति नहीं थी... दिल तोड देने जैसे कॉम्पिटिशन नहीं थे... सीधी सरल जिंदगी थी... .. हमने अपने माता पिता को खीझते नही देखा....... पूरा मोहल्ला हमारा घर था कोई भय नहीं... 
पर आज बच्चे घर में अकेले है , मां बाप पर काम का दबाव   भी है और दुनियां भर की चिंताएं........ जिसके चलते वह आर्थिक रूप से भले ही बच्चे की जरूरत पूरी कर रहे हों लेकिन मानसिक रूप से जरूरत से ज्यादा दबाव भी दो साल के बच्चे पर डालने लगते हैं... साथ ही घरों में युवा पीढ़ी का माता पिता के बीच भी स्वस्थ संबंध कम ही देखने को मिलते हैं ..... नतीजतन , आज के हालात हमारे सामने है
यह अंतर हर पीढ़ी के बीच नजर आएगा। हम और हमारे अभिभावक के नजरिए में भी बहुत अंतर मिलता था  ,आचार विचार में.....लगता है,,कुछ अधूरापन काटता है,, कही कुछ ज्यादा ही छूट गया,,,गुजरती जिंदगी में,,, 
कभी कभी सोचती हूँ
हमारे माँ बाप ने संस्कार हमारे अंदर कुछ ज्यादा ही ठूंस-ठूंस कर भर दिये हैं🤦

Tuesday, May 16, 2023

मैं

सब झूठ है.... 
बरसों पहले किसी ने बताया था
 कि  भिगोए बादाम रोज सुबह खाने से बुद्धि तेज होती है......
पर जिसका मेक ही गड़बड़ हो उसका क्या  ? 
लोगों की बनावटी बातें समझ नहीं आतीं......
बातों के पीछे छिपे मकसद समझ नहीं आते...
 प्रेम से उठा हाथ गला दबोचने आ रहा है या गले लगाने?? 
 आज तक समझ नहीं आया .... 
 आस्तीनों में कौन सा सांप है समझ नहीं आता..... 
 धोखा खाने के बाद भी अपनी ही गलती लगती है...... 

समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूँ 
ताकि समय और जमाने के साथ चल सकूँ.... 
लोग कितने आगे बढ़ गये
 मैं वहीं की वहीं रह गई जैसे..... 
सदियों  पहले की सोच वाली  ! 
बकलोल की बकलोल 
बेवकूफ़ की बेवकूफ़!!!!!! 

Saturday, May 6, 2023

यूंही

._______________________________________________________
. पुरानी यादों के साथ एक बहुत अजीब बात होती है, 
वो चाहें कितनी भी अच्छी हों या बुरी... 
आंखों में आंसू भर ही देती हैं.....
आज फिर से मन भरा हुआ है ... 
डर लगता है जो घाव सूखने को छोड़ा है उस पर जमी पपड़ी उखड़ ना जाए..... 
   शायद  मैं पहले से बदल गई हूँ...... 
  शिकायत भी नहीं करती अब....  
  मेरे पास एक  समय बहुत सी शिकायतें थीं.... 
  पर अब मन नहीं होता कुछ भी कहने का.. 
  ये अच्छा है कि यूँ ही समय भी बीतता रहता है...... 
  बीतता ही जा रहा है , 
  मानव मन क्यों अपने से अलग लोगों को स्वीकार नहीं कर पाता है? 
 वो क्यों सबको अपने ही रंग में रंगना चाहता है? 
 सब तो एक से नहीं हो सकते.... 
 एक ही हाथ की हर उंगली भीअलग  अलग तरह की होती है...
 इतना द्वेष क्यों और किसलिए?? 
 कौन कब तक रहने को आया है यहाँ?? 
 और ये बात जितनी जल्दी समझ आ जाए अच्छा है ………
 ज़िंदगी में आया हर शख़्स एक एक कर वापस चला जाएगा और ....... वापसी का टिकट तो  सब कटवा कर आए है
जाना तो सबको ही है ना!

......

मैं नास्तिक तो नहीं हूँ 
पर
पूरी तरह से तो आस्तिक भी नहीं हो सकी मैं....
 दुविधा बनी हुई है,
बहुत से सवाल हैं..
होने और न होने के बीच.. 
कर पाने और न कर पाने के मध्य.... 
समर्थता और असमर्थता के बीच.. 
और लगता भी नहीं 
कि इस अटपटी स्थिति से
 कभी उबर सकूँगी..... 

Wednesday, May 3, 2023

......

आजकल कैसा अजीब सा मौसम है😕ना कुछ लिखने का मन है न पढने का.......तीन किताबों में बुक मार्क लगा कर सिरहाने रख छोड़ा है कि पता नहीं कब कौन सी पढने का मन करे😏😏😏 एकदम बोरियत से भरे दिन....एक सी रूटीन वही एक से थके ऊबे चेहरे.....कोई उत्साह नहीं बस  समय बीत रहा है जैसे तैसे! 
बस यही सुकून है कोई तकलीफ नहीं....... 😊😊😊😊😊😊😊😊😊पर एक बोझिल सा मूड बना हुआ है कई दिनों से.... शायद मौसम का असर है... अजीब सिरफिरा उदास मौसम...
. 28 अप्रैल 23

Thursday, April 27, 2023

मेरे मन की बात

कांग्रेस की दी हुई पेंशन खाकर - खाकर भरे पेट ये सारे निखट्टू पूरे दिन गांधी, नेहरू को कोसते हैं..... सुबह-सुबह व्हाट्सग्रुपों में 
हिंदूबाजी वाले फ़ॉवर्ड मचाने वाले अंकिल जी...... रेलवे और एअरलाइन्स, आपको सीनियर सिटिजन वाली छूट अब नहीं देंगी..... 😀सबसे ज्यादा तो ये बुड्ढों  पर चढ़ा है  हिन्दू होने का ढोंग . और ये सठियाए बुढ़ऊ लोग परम् भक्त हैं..... अंकल लोगों की तो उम्र बीत बिता गई लेकिन अभी भी वो स्थिति की गंभीरता को समझने की बजाय ही ही खी खी और गाली गलौज में मस्त  रहते हैं..... रहना भी चाहिए, आगे जाकर धर्म के नाम पर बने देशों सरीखा हाल होना ही है.. तब बर्बादी से पहले वाला एन्जॉयमेंट लेने में क्या हर्ज है..... पेंशन भी बन्द कर देते तो ये हिंदूबाजी वाले मेसेज भी बन्द हो जाते.... इन्हे जेल में भी बंद कर दें तो भी ये भक्त लोग हिन्दू - मुस्लिम वाले मैसेज बंद नहीं करेंगे.... 😀

Sunday, April 16, 2023

बनारस की मिठाई 😋😋😋😋

बनारस   की मिठाइयों में मगदल को मिठाइयों का राजा    माना जाता है .यह ज्यादा तर जाड़े में मिलता है..यह यहाँ की सबसे प्रिय मिठाई  है.बनारस   में वैसे   तो    मिठाई     की सैकड़ों    दुकानेंहैं    ,,,,,लेकिन    इनमे    से    कई    काफी मशहूर हैं बनारस में जितने मोहल्ले हैं, उतनी किस्म  की मिठाइयां आज भी बिकती हैं....आपको जान कर आश्चर्य होगा की सुविख्यात सितार वादक.पंडित रवि शंकर को काशी के एक मिष्ठान्न कारीगर ने मिठाइयों का सितार बना कर भेंट किया था......
यहाँ की मिठाइयों का स्वाद लाजवाब होता है...पहले यहाँ जो मिठाइयां बनती थीं , उनमे लड्डू , पेड़ा, लाल पेड़ा ,बर्फी , गुलाबजामुन, मगदल , खजूर , इमरती , बालूशाही , तिरंगी बर्फी , राधाप्रिय ,गांधी गौरव , खोये की चन्द्रकला , केसरिया बर्फी , लवंग लता ,  जलेबी  और जलेबा, परवल की मिठाई , मदन मंजरी , राष्ट्रीय बर्फी, जवाहर लड्डू , वल्लभ सन्देश , प्रमुख हैं...इनमे से दो चार  को    छोड़ कर ज्यादातर आज भी बिकती हैं ....
अब लोगों की रूचि छेना से बनी मिठाइयों में ज्यादा बढ़ी है ...छेने की मिठाइयों में.. खीर मोहन , खीर कदम , रस मलाई , मलाई चाप , मलाई कोफ्ता , मलाई सैंडविच , मलाई के लड्डू , मलाई गिलौरी , मलाई पूड़ी रसमाधुरी , रस मंजरी , राजभोग , रसगुल्ला , रस बहार आदि हैं .....
बनारस की कुछ प्रमुख मिठाई की दुकानों में...जलजोग , क्षीर सागर ,आनंद बहार ,श्री राम भंडार , मधुर जलपान ,मधु बहार ..गोपी स्वीट्स ,कामधेनु स्वीट , सत्यनारायण मिष्ठान्न भण्डार., राजश्री , और भी असंख्य हैं ...अभी नाम  नहीं याद आरहे.....और सबसे अंत में हमारी सबसे प्रिय हमारे अपने मोहल्ले सिगरा की झन्नाटू साव की दूकान "मधुर -मिलन "जो ताजा गरमा गरम लवंग लता और बेहद स्वादिष्ट समोसों के लिए प्रसिद्ध है......(बहुत याद आरहे हो बनारस....जल्दी ही मुलाकात होगी..)

Saturday, March 4, 2023

सफर

ज़िंदगी के सफर में, 
हम बहुत से लोगों से मिलते हैं..
उनमें  से कुछ, हमारे अपने बन कर 
दिल के करीब जगह बना लेते हैं.. 
और 
कभी-कभी ऐसी भी, दुःखद परिस्थितियां
 पैदा हो जाती हैं 
कि सब कुछ करने के बावजूद, 
 बेहद प्रिय व्यक्ति भी  
हमसे दूर हो ही  जाता है...... 
मुझे  लगता है
 यदि ... संबंधों में ऊष्मा नहीं रही है 
तो व्यवहारिकता वश 
उसे निभाते जाना भी.. 
कम पीड़ा दायक नहीं होता.....
सूख कर भी
जुड़े रहने की पीड़ा से
टूट कर अलग हो जाने का कष्ट
शायद कम है.... 
बदलाव को स्वीकार करके,
 जिंदगी के उस हिस्से की कहानी को 
खत्म कर देना ही बेहतर होता है.....
 बीते  हुए सुख के  क्षण 
कम से  कम यादों  में तो 
सदा  हरे-भरे रहते हैं..... 😊😊😊

Tuesday, February 7, 2023

मनकापुर से दूर

गाड़ी के घर से निकलते ही नहीं छूटा मनकापुर 
वो बहुत देर तक हमें दिखाई देता रहा.... 
बहुत देर हमारी यादों में बना रहा... 
आज भी बना हुआ है..... 
अब हम मनकापुर को उसके क़िस्सों से याद करते हैं
और करते रहेंगे
अनगिनत बातें, अनगिनत किस्से
जो गोदने की तरह गुद गए हैं मन की चमड़ी पर.... 

कितनी भी चेष्टा कर लें अन्य जगहें ..... हमें उतना सहेज नहीं पाएंगी....
जितनी सहजता और शालीनता से 
अपनाया था उस नितांत अजनबी जगह ने हमें.....
जिस जगह के बारे में कभी कोई चर्चा तक नहीं सुनी थी... 
भूगोल के किसी पाठ में भी नहीं पढ़ाया गया जिसके बारे में... 
दुनिया के नक्शे में कभी नहीं खोजा था जिसे.. 
उस जगह से इतना विकट मोह!!! 

जहाँ की खूबसूरत सुबहों का नशा
एक सुहानी खुशबू सा हमारे आसपास छाया रहता है..... 
सुंदर हरियाली, मनवर नदी का पुल, राजा मनकापुर का राजमहल 
और करोंहानाथ का शिव मंदिर 
जिनके सामने की गई अनगिनत प्रार्थनाएं 
ये सभी दृश्य 
लखनऊ की सड़कों पर 
आज जैसे  अदृश्य हो कर भी चलते है हमारे साथ.... 

हमारी प्रतीक्षा में बैठी ढेरों चिड़ियाँ, 
उदास आम, अमरूद और नींबू के पेड़ 
सूखती हुई तुलसी की क्यारियाँ ,
खूब हरियाई हुई मनी प्लांट की ढेरों  बेलें जिनके पत्ते अब खूब बडे़ बडे़ हो चले थे.... , 
कूकती कोयलें, 
हल्ला-गुल्ला मचाती बदरंग ऊदे रंग वाली सेवेन सिस्टर्स 
और हरी आँखों वाला मासूम सा बिल्ला... 
धीरे-धीरे हमारा रास्ता देखते देखते एक दिन उम्मीद खो देंगे... 
सबसे पूछते तो जरूर होंगे शायद, हमारे आने की खबर... 
 रास्ता देखते सब कुछ अक्सर ठहर सा जाता है..... 

वहां से  दूर रहकर जब भी मन बेचैन होने लगता है 
मन जैसे पलटने लगता है अतीत के एलबम के पन्ने, 
वो स्मृतियाँ गले लगाने को मचल उठती हैं..... 
बिछड़ा हुआ शहर जैसे दुलराने लगता है....... 
छलकने को आतुर हो जाती हैं आँखे..... 
बरस भी जाती हैं  कभी कभी. 

ये सोच कर भी बेचैन हो उठती हूँ कि अब लौटना  नहीं हो सकेगा  वहाँ....
जी में कुछ कसकने सा लगता है..... 
जब कभी, 
बडे शहरों की भागम-भाग 
और गहमागहमी से घबरा कर  
आखिर जब मनकापुर की चौहद्दी में पंहुच जाते थे 
तो यही आभास होता था कि बस...... 
अब कहीं नहीं जाना.... अपना घर आ गया......
ताला खोलते ही अपने घर की चिरपरिचित सुगंध
अपना बिस्तर.... और चैन की नींद 

पर कहां... अब तो 
छोड़ आए हम वो गलियाँ..... . 

Sunday, January 8, 2023

मुंबई से लौटते समय (7-1-19)

कुछ ही देर में इटारसी पंहुचने वाले हैं.....  हल्की हल्की ठंड का आभास होने लगा है.... साथ में कई गुजराती महिलाओं का समूह है... जो नेपाल पशुपतिनाथ का दर्शन करने निकला है....  हमारे साथ बैठी गुजराती महिला, बेहद मिलनसार और बातूनी.... भाषा कोई व्यवधान नहीं है हमारे बीच... उनकी टूटी फूटी गुजराती मिक्स हिन्दी हम अच्छी तरह समझ रहे हैं....जरूर वे बहुत ममतामयी और सुगृहिणी होंगी..... इतनी सी देर में ही अंदाजा लग गया है.... वो पूरी गृहस्थी के साथ हैं उनके बड़े से बैग से ढेरो खाने पीने का सामान निकलता ही जा रहा है 😊😊😊😊थेपला, खाखरा, पेड़ा, बेहद स्वादिष्ट हरी मिर्च का गुजराती अचार, चूडे़ की चुरमुरी नमकीन.....इलेक्ट्रिक केतली में बनाई गई चाय..... और साथ में उनका आत्मीय स्नेह भरा आमंत्रण 😍😍😍बस समझो... हमारी तो लाटरी ही निकल पडी है😂😂

Thursday, January 5, 2023

मन की बात😢

कभी-कभी सोचती हूँ कितना अच्छा लगता होगा जब आप अपनी देवरानी, जेठानी या ननद भौजाइयों से सास- बहू और घर गृहस्थी, बाल बच्चों वाली, चुगली एक दूसरे की बुराई, घर कच्ची और परपंच छोड़कर..... सम सामयिक प्रसंगों, ज्वलंत विषयों और किताबों की बात कर सकें..... विश्व प्रसिद्ध लेखकों, कवियों और कविताओं की, कला और साहित्य की बात कर सकें......जहां आपको कोई "बहुत एडवांस" बहुत "पढीलिखी", "बहुत मेंटेन ", "अपने को बहुत समझती हैं "वाले कमेंट या ताने न दे.... हर एक के शौक या पसंद नापसंद एक सी नही हो सकती  ये तो जगजाहिर है......... पर किसी से गुण मिले या न मिले...... उनसे धीरे-धीरे मन तो मिलने  ही लग जाता है.....उनका संग-साथ अच्छा लगने लगता है..... ..मुझे यह बात का हमेशा कचोटती रहती है कि मैं इस मामले में बहुत भाग्यहीन रही.... इतने लंबे चौड़े.... लोगों से खचाखच भरे.... छुआछूत.... पूजा-पाठ (लगभग पाखंड) और दोहरा चरित्र जीने वाले कुनबे में मुझे कोई भी अपनी जैसी रूचि वाला इंसान नहीं मिला......
       अब तो अपने बच्चे ही आपस में प्रेम से रह लें..... तो माता पिता के लिए जन्नत है .... हमारी पीढ़ी तक तो रिश्ते अब भी बहुत हद तक संभाल के रक्खे हुए हैं..... हालाँकि अब मिलना जुलना उतना नहीं होता..... सभी की अपनी अपनी व्यस्तताएं हैं......समय ही ऐसा आ गया है.... उसके लिए किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.... पर कोई वैमनस्य नहीं है...... पर हमारे बच्चे शायद  उन्हे इतना नहीं संभाल पायेंगे........ बच्चे जानते ही नहीं बहुतों को..... आमना सामना ही नहीं हुआ..... शादी विवाह में भी व्यस्तता के कारण पहुंचना - मिलना नहीं हो पाता...... अब उनके  लिये रिश्तों से ज़्यादा दोस्तों की अहमियत है....उनका अपना सर्किल है अपना समाज है...... 
          रिटायर मेंट के बाद अब यहां से शिफ्ट होने की तैयारी में आज कल बहुत सारे पुराने कचरे(!) को साफ करने में लगी हुई हूँ.....एक समय बेहद प्रिय और जरूरी चीजें..... जो बड़े प्यार से खरीदी गई थीं.... बच्चों को मिले ढेरों इनाम, कप, गिफ़्ट वगैरह को कचरा कहना  रूला रहा है.... भरसक मैं यूँ भी  बहुत  सारी एक्स्ट्रा हो गई चीजे हटाते रहने और उन्हें जरुरतमन्द लोगों को  बांटते रहने मे विश्वास करती हूं..... इससे घर भी हल्का रहता है और मन भी....... काफी हद तक बहुत कुछ बांट ही दिया है....... 
             इसी सफाई के सिलसिले में  आज बडी मेज का ड्राअर खोल कर  कर बैठी थी..... नई  के साथ साथ बहुत सारी  पुरानी फोटुएं - चिट्ठियां भी हैं यही कोई  30-40 या 50 साल पुरानी भी..... उनमें से छांट कर  कुछ एक फोटोज और चिट्ठियां तो मैंने  फाड़  कर फेंक ही दीं ...... जो अब तक भावुकतावश सम्भाल कर रखी थीं...... उसमें..... बहुत सारे चेहरे  तो अब कोई पहचानेगा ही नहीं..... मैं खुद भी नही पहचान पा रही.... फिर  भी फोटो फाड़ना नही चाहिए... चिट्ठियां फाड़ना अच्छा नही होता... ऐसा सोच के  अब तक संजो के रखा था....... 
         बस लग रहा था जैसे कि चार या साढ़े चार दशक पीछे का फ्लैश बैक देख रही हूं.... उसमे से कितने ही   चेहरे तो अब हमेशा के लिए ही   तस्वीरों में तब्दील हो चुके है.... कितनी चिट्ठियां जो कितने अरमान कितने प्यार से लिखी गई हैं.... अब उनके उत्तर कभी नही आएंगे.... कितने सारे पुराने फोन नंबरों से भरी डायरियां.. जो नंबर अब कभी नहीं लगेंगे......उन नंबरों पर मिलने वाले बात करने वाले हमेशा के लिए बहुत दूर जा चुके हैं..... 
           देर रात तक  नींद नही  आई..... फ्लैश बैक में घूम रहा था मन...... जैसे कोई बहुत पुरानी  रंग उड़ी - बदरंग सी फिल्म देख रही हूं......पर यही सोचती रही कि फिल्म का अंत सुखद रहे बस..... 
     बहुत सुखद समय तो नहीं कहूंगी पर फिर भी बहुत अच्छा समय था वो.... फिर सबके बच्चे बड़े होते गये.....सब अपने पैरों पर खड़े हुए...... सबके शादी ,ब्याह हुए..... सब,बाल बच्चेदार हुए... माँ बाप से अलग हुए... और धीरे धीरे अपनी दुनिया मे सिमट गए...... चचेरे ,ममेरे रिश्ते सिमटने लगे...... बल्कि सगे रिश्ते भी धीरे-धीरे पट्टीदारियो में तब्दील होने लगे ..... और अब तो आपस मे  अच्छाइयाँ  देखनी  छोड़ कर बुराइयों की तलाश शुरू हो गई हैं.....बल्कि किसी का भी आगे बढ़ना, तरक्की करना.... किसी को नहीं सुहा रहा...ईर्ष्या दग्ध हो उठते हैं सब.... . 
     . अनजाने में भी किसी के मुंह से निकली  नापसन्द बात और व्यवहार का नकारात्मक छिद्रान्वेषण होने लगा। मन मलीन होने लगा है  और साथ ही रिश्तों पर धूल की परत जमने लगी है.....एक अनजानी सी शून्यता आने लगी है रिश्तों पर..... बस "जब देखें तब लागे मोह" वाली बात है.... 
         कितना अजीब है न यह सब कुछ...... पर आज ऐसा ही है.....सब  आपसी रिश्ते दूर करके बस दोस्तों में सिमटने लगे हैं..... .. सबको दिखाने के लिए अंदर से बिल्कुल ठंढे होते जा रहे  रिश्तो के ऊपर भी बनावटी खुशी, बनावटी गर्माहट का लबादा चढाने लगे हैं....... 
       सचमुच उन तस्वीरों - चिट्ठियों  में से कई बहुत नजदीकी  रिश्ते आपसी राजनीति के चलते अपने मे सिमट गये......बहुत चाहते हुए भी एक फोन तक करने में डर लगता है कि पता नही सामने वाले की क्या प्रतिक्रिया हो..... उनमे से बहुत रिश्तो को तो स्वयं मैंने बहुत शिद्दत से जिया है तो मेरा मन दुखी होना तो स्वःभाविक ही है.......पर विवशता है कुछ कर नहीं सकते 😢😢

Tuesday, January 3, 2023

साल का पहला दिन

 शुरू हो गया हमारा नया साल 😊😊
 
बस फिर  एक संख्या बदल गई आज से.... 
अब 2022 की जगह 2023 लिखना है... 
वह भी अब लिखना कहां  होता है? 
न कोई पेपर लिखना है अब..... न कोई चिट्ठी.... 
कम्प्यूटर और मोबाइल पर तो सब पहले से ही लिखा रहता है...... 

सामने ही कैलेंडर टँगा है.... 
जिसमें केवल बारह पन्ने हैं..... 
एक एक कर के कब सारे पन्ने खत्म हो गए.... 
पता ही नहीं चला.....
दिन,महीने,साल खत्म होते जा रहे हैं... 

 और अब फिर से शुरू होंगी नए ढंग से वही तारीखें....... 
 वही सब दुहराया जायेगा जो कल तक होता चला आया.... 
 
बस एक ही फर्क होगा कि हमारी ज़िंदगी का 
एक और मूल्यवान वर्ष समाप्त हो गया 😔

Monday, January 2, 2023

ऐसी ही हूँ मैं

               उम्र के इस मोड़ पर आ के  मैं अब चीजों से मोह नहीं रखना चाहती और न ही नई चीजों को पाने या लेने की कोई ललक रहती है....... कबर्ड  में ज़्यादा कपड़े देख कर अब उलझन होने लगी है.... बहुत  सोच समझ कर ही लेती हूँ कि पहन पाऊँगी या नहीं क्योंकि अब सिर्फ़ कम्फर्टेबल ढीले-ढाले कपड़े ही पहन पाती हूँ........ 
           बचपन मे मैंने भी कम खिलौनो से खेला....... गिने चुने ही खिलौने रहे मेरे पास....... ज़्यादा की चाह रही भी नहीं। न दूसरे बच्चों के खिलौनों को देख कर कभी  जी ललचाया...... 
            बेहिसाब लापरवाह होने के बाद भी अपनो की निशानियों को बचपन से ही सहेज सहेज कर रखना आ गया था..... बेस्ट फ्रेंड की ढेर सारी चिट्ठियां और ग्रीटिंग कार्ड बरसों संभाल के रखे रही..... वो ग्रीटिंग कार्ड कॉलेज के टाइम तक थी मेरे पास......अपने 32 वर्षों के अध्यापन कार्य काल के दौरान छात्र छात्राओं बच्चों के दिए अनगिनत प्यारे प्यारे कार्ड्स.... आज भी मेरे पास धरे हैं..... .  कितनी प्यारी प्यारी चीजें..... सहेलियों के दिए छोटे छोटे गिफ़्ट मेरे बनाए तमाम स्केचेज ड्राइंग्स....कितने क्रिकेटर्स, चार छः फिल्म कलाकारों कुछ लेखकों, कवियों के आटोग्राफ से भरी मेरी आटोग्राफ बुक..... . सब कुछ सम्भाल कर रखती थी....... बनारस की भयावह बाढ़ में मेरा ट्रंक 20 दिन तक डूबा रहा और उसमे कितने सारे मेरे सपने और खूबसूरत चीजें  गीले कीचड और मलबे में बदल गईं......
          अंतर्मुखी स्वभाव के चलते.... दोस्त भी बहुत कम बनाए... ... उन्हीं से दोस्ती होती जो दिल मे घर कर जाते....और जिंदगी में अगर सचमुच किसी को चाहा और जिससे प्यार हुआ बस उसी के हो कर रह गए........ बस ऐसी ही हूँ मैं... खुल कर लडाई झगड़ा करने का कभी नेचर नहीं रहा..... किसी के कुछ कह देने पर रो धो कर चुप हो जाती रही हूँ..... 
               अब जाकर 2-4 साल से कुछ चेंज करने की कोशिश की है  ख़ुद को.... मैं मजाक नहीं करती कभी और दिल दुखाने वाले और अश्लील मजाक तो कभी नहीं...... और ये भी कभी पसंद नहीं किया कि  कोई मेरा मजाक बनाए या उड़ाए...... अब बहुत प्रैक्टिकल हो गयी हूँ.... मैंने भी कुछ समय पहले कुछ लोगों का व्यवहार बहुत बुरा महसूस किया..... और हमेशा के लिए उनसे संपर्क तोड़ लिया..... मैं अपने आप से बहुत प्यार करती हूँ...... अब ख़ुद को गिफ्ट देती हूँ कभी कभी.....अब कोई लालसा सी नहीं रही जैसे.... बहुत बचा लिया.... बच्चे अब समर्थ हैं अपने पांवों  पर खड़े हैं...... 
किसके लिए बचाना है? जिसे ज़रूरत होगी अपने लिए कमा लेगा..... 
                  गम नही करती अब मैं...... खुद को समझा बुझा कर खुद ही नॉर्मल कर लेती हूँ...... मैं तो हमेशा से ही ऐसी रही....... मिनिमम में काम चलाने वाली....... भंडार भरकर कभी रखा ही नहीं......पर चाहे अनचाहे.... नौकरी के चक्कर में साडियों /कपडों का ढेर लग गया......कपडों का शौक रहा है बचपन से ही और बचपन में जो शौक पूरे नहीं हो सके...... वो अब तक गाहे-बगाहे करती रही......खूब बांटा भी.... बिना किसी से पूछे.... बस उठाया और दे दिया......जब तक चीजें सामने दिखती रहती हैं मोह लगता है पर अब एकदम निर्मोही बन कर आंखे बंद कर लेती हूँ...... अब तक  जितना सम्भालकर जो भी रखा....... दे दिया..... 
                  भावुक हूँ बहुत...... भुला नहीं पाती..... अगर दुःखी भी हूँ तो किसी को ज़ाहिर नहीं करती.... लेकिन फ़र्क़ न पड़े,.... ऐसा नहीं होता.... बहुत पड़ता है,...बहुत ज़्यादा पड़ता है.... .. कभी किसी ने कुछ भी किया हो मेरे लिए, अपनी ताक़त से ज़्यादा ही उसके लिए कुछ करने की कोशिश करती हूँ...... हमेशा एहसानमन्द रहती हूँ...... कुछ अच्छा कहा हो तब भी..... और अगर कभी किसी ने मुझे रुलाया हो या चोट पंहुचाई हो तो उस समय अवाइड तो कर देती हूँ, पर दिल से भुला नहीं पाती....... अपना ग़म अपने तक ही रखा हमेशा.... मेरा मन मुझसे जुड़ी हर चीज़ में अटका रहता है..... कितनी लिमिटेड चीजें थीं बचपन में......पर  कभी नई नई चीज़ें दूसरों के पास देख कर ललचाई नहीं.....  जो कुछ भी मेरे पास है, जब तक वह ठीक-ठाक काम दे रहा, नए का क्या ढेर लगाना....... खिलौने हों, चप्पल-8 जूते हों, घड़ियां, हैंड बैग, बरसों चलाया...... सिलाई करने का शौक चढा तो कितने ही दिनों तक खुद के सिले हुए ही सलवार कुर्ते पहने....... भले वो कैसे भी सिले हों.... यूनिवर्सिटी में उन्हीं सूट्स को पहन के जाती रही निःसंकोच बिना शर्माए.......जब कि उस समय बेलबॉटम और डॉगकॉलर वाली नीतूसिंह टाइप शर्टस खूब फैशन में थीं..... बहुत चीज़ों का ढेर नहीं लगाया लेकिन जो भी पास था, प्यार से सहेजा......शो आफ करने की आदत नहीं रही..... 
            इंसानों के लिए भी यही भावना रही..... जिसने दिल में जगह बना ली, बस बना ली..... नाराज़ होना, शिकवे करना नहीं आया.... कभी उदास हुई या रूठी भी तो किसी से मनाने की उम्मीद नहीं लगाई....कभी हक़ जताना, धौंस जमाना नहीं आया...... 
               मेरा चीजों को सहेज कर रखने की, हिफ़ाज़त करने की,  ये सब कुछ बहुत अच्छी आदतें हैं... मुझमें भी यह मेरी मम्मी से आया है.... 
    अपनी चीजों से बहुत लगाव रहता है मुझे...कभी किसी की चीज छीनने की मंशा नहीं रही..... भले मेरी ही कितनी चीजें बिन पूछे ले ली गईं....और आजतक वापस नहीं मिलीं.... . 
पर अब चाहती हूँ बदल जाऊँ...... रिश्ते,सामान....हर चीज बहुत संभल कर रखी  ..मैंने ...पर अब  सीख  रही   हूं थोड़ा बहुत "छोडो जाने दो यार"... करना..... 
               आदमी जिंदगी भर ये सोचकर पैसा बचाता है कि मुसीबत में काम आएगा और ये ही सोचकर जिंदगी भर मुसीबत में ही रहता है..... 

31-12-22

मन बहुत भारी भारी सा है.......सब कुछ जानते हुए भी कि जीवन का सत्य है ये फिर भी मन नहीं मानता... 
आज भी मुझे नहीं लगता कि मेरा भाई अब मेरे साथ नहीं है.....
 मैं उसको सदा महसूस करती हूं.....गहन प्रेम में ये अहसास बना ही रहता है...... 
उसकी याद हमेशा हमेशा दिल में रहेगी..... 
            जिन्दगी चलती रहती है ....  पर भीतर कुछ है जो ठीक नहीं होता....... कुछ खोने की पीड़ा और मन का एक कोना खाली होना बड़ा अजीब सा अनुभव कराता है... बस व्यस्तता के बहाने उसका एहसास कम से कम करना ही ठीक रहता है.... पिछले  साल आज के ही  दिन मैने अपने भाई को खोया दिया था..... 

तुम जहाँ भी हो ऐसे ही मुस्कुराते रहो 😔😔😔 बस्सस