एक वक्त के बाद हम ये खुद समझ जाते हैं
कि ये जो पीस ऑफ माइंड और सुकून हम कहीं और ढूंढ रहे होते हैं..... किसी और से माँगते फिर रहे हैं जाने कितनी जगह भटकते फिर रहे हैं.... ये न अपने अंदर ही है......
जैसे -सुबह का समय सिर्फ मेरा है जब सबका नाश्ता बनाकर रख दिया और खुद चाय लेकर एक कोना पकड़ कर बैठ गए..... ये वाला टाइम मेरा सुकून है.....इस समय मुझे डिस्टरबेंस नहीं चाहिए....सब काम निबट जाने के बाद खाने-पीने के बाद दोपहर चार से छः मेरा सोने और आराम करने का समय है जाड़ा - गर्मी - बरसात..... इसमें मुझे डिस्टरबेंस नहीं चाहिए...... नौकरी करते समय भी और अब निठल्ला बैठे रहने के समय भी...ये मेरे सुकून के पल हैं....
हमने अपना जीवन, अपना बचपन अपनों में जिया हर रिश्ते हर एहसास के रंग में रंगे हुए --- हम ना कभी बोर हुए ना चिड़चिड़ाए.... पड़ोसी भी पूरे अधिकार से डांट दिया करते, हमारी मां कभी परेशान नहीं हुई कि बच्चों की पसंद का क्या बनाया जाए उन्हें पता था कि हम कोई ना नूकुर नहीं करेंगे...... पहले ये हर्ट हो जाने या डिप्रेशन में चले जाने जैसे शब्द या भाव नहीं थे...... पहले हम कुछ कहने से पहले अपने बड़ों की तरफ देखते थे..... और अब बच्चों की तरफ देखते हैं ----इसलिए हमारी पीढ़ी की महिलाओं में अकेलेपन का एहसास बढत जा रहा है ----
समय की गति तूफानी रफ्तार में है विरोधों और कुतर्को का सफलता, पैकेज का दौर है
कारण वही है ,पीढ़ी का अंतर...... हमारे माता पिता संयुक्त परिवार में रहते थे ,हर परिवार में चार पांच बच्चे होते थे ।जिम्मेदारियां आसानी से बनती हुई थी.... हम पर कैरियर का बहुत ज्यादा दबाव नही था... साठ प्रतिशत हमारे लिए यूनिवर्सिटी टॉप करने जैसा था......फैशन और स्टाइल की अति नहीं थी... दिल तोड देने जैसे कॉम्पिटिशन नहीं थे... सीधी सरल जिंदगी थी... .. हमने अपने माता पिता को खीझते नही देखा....... पूरा मोहल्ला हमारा घर था कोई भय नहीं...
पर आज बच्चे घर में अकेले है , मां बाप पर काम का दबाव भी है और दुनियां भर की चिंताएं........ जिसके चलते वह आर्थिक रूप से भले ही बच्चे की जरूरत पूरी कर रहे हों लेकिन मानसिक रूप से जरूरत से ज्यादा दबाव भी दो साल के बच्चे पर डालने लगते हैं... साथ ही घरों में युवा पीढ़ी का माता पिता के बीच भी स्वस्थ संबंध कम ही देखने को मिलते हैं ..... नतीजतन , आज के हालात हमारे सामने है
यह अंतर हर पीढ़ी के बीच नजर आएगा। हम और हमारे अभिभावक के नजरिए में भी बहुत अंतर मिलता था ,आचार विचार में.....लगता है,,कुछ अधूरापन काटता है,, कही कुछ ज्यादा ही छूट गया,,,गुजरती जिंदगी में,,,
कभी कभी सोचती हूँ
हमारे माँ बाप ने संस्कार हमारे अंदर कुछ ज्यादा ही ठूंस-ठूंस कर भर दिये हैं🤦
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