कितना अजीब सा समय है..... लग ही नहीं रहा कि सिर्फ हफ्ते भर पहले हम सब कितने उत्साहित थे.... खुशी के पलों को एन्जॉय करते हुए...... पर इन चार छः दिनों में ही जैसे जैसे कोरोना अपना रौद्र रूप से दिखाता जा रहा है.... सब आकुल व्याकुल होते जा रहे हैं.... कुछ पल के लिये घोर अंधेरा छा जाता है आँखों के सामने। एक अंजान डर आकर बैठ जाता है मन में।अब भी कभी देर रात अचानक उठ कर बैठ जाती हूँ और ठंड में भी पसीने से तरबतर हो जाती हूँ...... सब सही सही होता रहे तो भी एक डर नही पता क्यों हमेशा लगा रहता है।
दूसरे ही पल सोचती हूँ ..
सब छूटता सा जा रहा है जैसे और मैं छटपटाती रह जा रही हूँ.... कुछ कर तो नहीं पा रही हूँ..... मुठ्ठियों को पूरी ताकत से भींच कर रखती हूँ कि कुछ भी गलती से भी न छूटे लेकिन हाथों की लकीरों में जो नहीं होता उसे मुठ्ठियों की ताकत भी बांध नहीं सकती..... हर बार मोह के उस भंवर में फँसती जाती हूँ जिससे कई बार निकल चुकी हूँ..... अपने आस-पास सब फिर से वैसा ही घटता हुआ देखती हूँ फिर खुद को देखती हूँ ..अगर सबकुछ फिर से वैसा ही घट भी रहा है तो क्या...भगवान मेरे परिवार को सुरक्षित रखना....मेरे भाई की उम्र लंबी करो प्रभु.....रोज रोज भयावह खबरें सुन सुन कर बहुत मन खराब हो रहा है...... सब कुछ बदल रहा है जैसे..... क्या फिर सब कुछ पहले जैसा हो पाएगा??? मैं सोचकर घबराती हूं कि जब सब कुछ नॉर्मल हो जाएगा... कुछ साल बीत जाएंगे, जब हम कभी अपने खोए हुए लोगों को याद करेंगे उनमें कौन कौन होंगे?? ❤️😭🙏 ऐसा लगता है जैसे..... मैं भी तो अब वो नहीं रही जो पहले थी..
आंखें खोलती हूँ.... मुस्कुराने की नाकाम सी कोशिश करती हूँ..खुद को नजर भर निहारती हूँ ,सांसें भरती हूँ तो याद आता है कि ये तो अब भी अपनी गति से चल ही रहीं हैं और बस दिल पर हाथ रख के निकल जाती हूँ इस अंजान डर से..
(26-4-21)
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