मन जैसे खाली खाली सा... उचाट सा होने लग गया है..... कुछ भी ठहरता नहीं बहुत देर तक..... गुस्सा जितनी जल्दी आता है उतना ही जल्दी शांत भी हो जाता है... रोना कुछ देर का ही है फिर "अच्छा छोडो.... क्यों सोच रही हूँ इतना? सब ठीक है" कहकर चीजें हटा देना चाहती हूँ दिल और दिमाग से... कहने को बहुत से लोग हैं साथ...... पर अब एकांत ज्यादा सुखद लगता है अब......अब अपने शौक और मनपसंद कामों को ही पूरा वक्त देना चाहती हूँ.... किसी के दबाव में कुछ करने की न जरूरत है न इच्छा....
नहीं पता कि अब इस उम्र में ज्यादा समझदार हो चुकी हूँ या दिनों दिन बेवकूफ होती जा रही हूं..... बेहद नॉर्मल - फॉर्मल चीजें ,जो करनी भी जरूरी है वो भी करने की इच्छा नहीं होती... किसी जान पहचान वाले को देख कर भी कोई खास उत्साहित नहीं होती... अब बातें ही शुरू नहीं करना चाहती....सिर्फ सुनती ही रहती हूँ.... चाहे घर पर रहूं या स्टाफ रूम में... महज एक दर्शक और श्रोता ही बनी रहती हूँ..... बड़बोली तो मैं खैर कभी नहीं रही.... पर अब कुछ अजीब ही स्थिति है.... मन ही नहीं होता..कुछ भी करने का ..सबसे मन खिन्न सा हो गया है जैसे.... हर जगह वही हाल है..... कोई भी चीज बस थोड़ी ही देर तक अच्छी लगती है...
लगता है जो छूट गया सो छूट गया...... जो है सो है..... नहीं है तो भी कोई गम नहीं और है भी तो क्या.... क्या पता कल न हो....... कुछ सपने जो कभी देखे थे अब निरर्थक से महसूस होते हैं... ना खुद.... से ना दुनिया से... कोई शिकायत रही...... ना ही उन लोगों से कोई शिकवा है जिनकी बातों पर रो पडी़ हूँ ....... सभी को दिल से माफ कर दिया है ..... ये तो नहीं कह सकती.... पर बस्ससस.......
अब फर्क नहीं पड़ता कि किसने क्या कहा.... क्या दिया..... क्या लिया.. ... छोड़ो.... अब सब अपनी अपनी दुनिया में मग्न हैं तो ठीक है....अब मुझे किसी से ज्यादा उम्मीद भी नहीं.....
खैर सब ठीक ही है.....
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