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Sunday, April 24, 2022

हमारे पास...

ज़िन्दग़ी में,
एक समय के बाद...
खोने के लिए हमारे पास
केवल,
इक उम्र के अलावा
और कुछ भी तो नहीं बचता...

और आज, हम सब
लगभग उसी मुहाने पर खड़े हैं
शायद...
उसी कग़ार के इर्द-गिर्द...

अब, इस पड़ाव पर पहुँच
सोचती हूँ,
अभी तक जो बीत गया,
कितना सार्थक रहा वह,
और कितना निरर्थक भी...

अब तो यही लगता है,
खुद को... 
बहुत ही बारीक़ी से
और बचा बचा कर
ख़र्च करना चाहिए..... 

मन जिद्दी है बहुत
समझौता करना नहीं चाहता.. 

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