17 अक्टूबर से शुरू हो रहा है नौ दिन तक चलने वाला नवरात्र व्रत... ..जिसे व्रत का नाम क्यों दिया गया है....ये समझना मुश्किल है.....दिन भर तले मखाने...मूंगफली...चिप्स...कुटू और सिंघाड़े की पूड़ी हलुआ..दही....रबड़ी...मलाई......भुने आलू....आलू टमाटर रसेदार...कुटू के आटे का दोसा...दहीबड़ा...आलू की चाट....कचौड़ी... और सब शुद्ध घी में तरबतर माल......खोये की मिठाई....दूध...शरबत....जूस....फलों का रस......दिन भर में कई बार चाय..... इतना सब खाते रहने के बाद भी ये बताते रहना. कि "भूखल हईं न!!..नौ दिन के बरत है न!"".... इहे कुल खाइल जाई........अरे व्रत का क्या मतलब जब दिन भर खाते ही रहना है......जब कि औसत दिनों मे लोग इतना कभी नहीं खाते..... ये कहने में क्यों इतना संकोच ??...कि नौ दिन सिर्फ जिह्वा के स्वाद बदलने के सरंजाम हैं.......व्रत करना ही है... तो नौ दिन तक सचमुच व्रत करना चाहिये.....पता तो चले कि भूखा रहना क्या होता है ???
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