बनारस से वापस लौट आई हूँ... ..
मुठ्ठी भर चावल ..
गाँठ भर हल्दी ..
मांग भर सिंदूर...
आँख भर गंगा ..
और मन भर याद लेकर .....
मम्मी नहीं हैं
फिर भी दिखाई देती रहती हैं..... ..
सुनाई देती रहती हैं.......
घर की हर चीज में शामिल....
हर कोने में उनके होने का अहसास.....
मेरा अपने आप को वजह बेवजह
व्यस्त रखते हुए, इधर उधर घूमना.....
भरे हुए जी....
डबडबाई आँखों
और भर्राई आवाज का कुछ नही होने वाला .....
बात करते करते निकल आने वाले
आँसुओं का क्या करूँ?
छोटा भाई कुछ नही बोलता हुआ भी
दिखता है परेशान .....
आस पास बना रहता है
अचानक से बोल देता है .......
कुछ न कुछ...
एकांत में खुला हुआ बैग......
पसरे सामान को सहलाता......
गले लगाता ये बावला मन.....
पैकिंग करने का बिल्कुल मन नहीं.....
बल्कि मुझे पैकिंग करना ही पसंद नहीं 😢
( लौटना बनारस से)
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