उन्होंने
चाँद को चांँद नहीं रहने दिया
उससे
हमारे
सारे रिश्ते ख़त्म कर दिए
बचपन के मामा
जवानी का महबूब....
उनकी
महत्वाकांक्षा की भेंट चढ गये...
सब जान गए हैं कि
चाँद सिर्फ ऊबड़ - खाबड़ नीरस पत्थरों का ढेर मात्र है
जहाँ हवा पानी तक नहीं.....
हमारे बचपन की
चरखा कातती बुढिया
चाँद के बदसूरत
गड्ढों में दफ्न हो गयी.....
अब बच्चों को चंदामामा में कोई रूचि नहीं....
गर्मी के दिनों में खुले आसमान के नीचे अब कोई नहीं सोता,
ध्रुव तारे और सप्तऋषियों को
उनींदी आंखों से देखते देखते कहानियां सुनाने वाली
वो दादी - नानी भी लुप्तप्राय हैं.....
सच
कुछ सच्चाइयांँ
बड़ी डरावनी और
बदसूरत होती हैं !!
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