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Tuesday, November 15, 2022

बस्ससस

बाहर बहुत तेज बारिश हो रही है  जैसे मन भी भीग रहा है..... खिड़की का एक पल्ला खोल कर देखती हूँ..... लैंपपोस्ट की रोशनी में भीगे हुए पत्ते बड़ी खामोशी से बोलते हुए से लगते हैं "सर सर सर सर टी टी.." ..ठंडी हवाएं सराबोर कर जाती हैं.... गजब है प्रकृति के नजारे असली संपत्ति तो यही है.......
आस पास की कुछ खिड़कियों से पीली उदास सी रोशनी झांक रही है..... दूर दूर तक कोई आवाज या आहट नहीं है..... खिड़कियों के अंदर भी ज्यादा चहलपहल होगी ऐसा नहीं लगता...... सभी अब एकाकीपन के अभ्यस्त हो चले हैं..... ज्यादातर लोगों के बाल बच्चे बाहर हैं....कुछ पति-पत्नी साथ आते जाते दिखते हैं बस.....सब उम्र और किसी न किसी बीमारी - लाचारी से ग्रस्त..... बस एक दूसरे के साथ सामन्जस्य बैठाते हुए......कुछ जो अकेले हो चुके हैं वो और भी हतोत्साहित से दिखते हैं......
      मुझे लगता है, कितना ही फोन का सहारा हो,कितना ही सोशल मीडिया हो, आपको घर में दो-चार बात करने वाले चाहिए  ही चाहिए सोशल मीडिया भी बेमानी हो जाता है वह भी रद्दी का टुकड़ा हो जाता है अगर लंबे समय तक आपको अकेले रहना पड़े........ 
    

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