अगर अपनी उम्र का हिसाब लगाने बैठूं तो ये महसूस करती हूँ कि उम्र का काफी बड़ा हिस्सा जी चुकी हूं और अब मेरे पास अब जीने के लिए समय बहुत कम बचा है...
अब मेरे पास अंतहीन बहसों के लिए समय नहीं है , जो है सब ठीक है..... जो नहीं है वो भी ठीक है..... यह जानते हुए कि अब किसी बहसबाजी या तंज़ से कुछ भी नहीं होगा.... बातों का स्टॉक खत्म सा हो गया लगता है... चुप रहना अच्छा लगता है....एकांत प्रिय हो गई हूँ....
मेरे पास अब ऐसे बेतुके लोगों की बातों का जवाब देने का धैर्य नहीं रहा, जो उम्रदराज होने के बावजूद आज तक बड़े नहीं हुए हैं.....
मैं अब सिर्फ अपनों के साथ रहना चाहती हूं,
मैं अब उन खास लोगों के साथ ही जीना चाहती हूं, ऐसे लोगों के साथ जिन्हें सचमुच मेरी जरूरत है.. जिन्हें मुझे देख कर ऊब न होती हो.... और मुझे भी जिनका साथ पसंद हो....
हमारे पास दो जीवन होते हैं एक जब समय भागता रहता है.... और दूसरा जब समय रेंगने लगता है....एक वो जब हम समय के साथ दौड़ लगाते हैं पर समय आगे निकल जाता हैं और हम अक्सर पीछे छूट जाते हैं...... एक वो जब समय हमें छोड़ कर जाना ही नहीं चाहता.... बीतता ही नहीं हमें जकड़ कर बैठ जाता है..... और दूसरा जीवन तब शुरू होता है जब हमें एहसास होता है कि हमारे पास सिर्फ एक ही जीवन था...... अब मेरा वो दूसरा वाला जीवन शुरू हो चुका है....
No comments:
Post a Comment