आज जीवन में शायद दूसरी बार ऐसा हुआ कि स्टेशन पर समय से एक घंटा पहले पंहुच कर भी ट्रेन छूट गई......कुछ अपनी बेवकूफी और कुछ रेलवे वालों की कृपा......किसे दोष दें..कुछ समझ नहीं आ रहा.....अंतिम समय में प्लेटफार्म बदल देने वाली रेलवे की आदत से कितनी परेशानी होती है...ये भुक्तभोगी ही जान सकता है.....हमेशा की तरह २ नं. की जगह आज डबलडेकर ६ नं प्लेटफार्म से रवाना हुई.....और इस विषय मे कोई एनाउन्समेमट भी नहीं की गई.....मेरी तरह ही कई मुसाफिर जब तक भाग कर प्लेटफार्म नं.६ पर पंहुचे तब पता चला कि रोज की तरह ५-७ मिनट देर से जाने के बजाय आज १० मिनट पहले ही चल दी...,....खैर!!!!!...काफी जद्दोजहद के बाद वॉल्वो से जाने के लिए स्वयं को तैयार किया...बेटे ने ढाढस बंधाई. ..रात भर का सफर......पैसों की बरबादी अलग .....कष्ट हो रहा है......बस बहुत शानदार है....बिल्कुल नई है....चमाचम!!!!.बाहर मौसम ठंडा है..पर अंदर कोई दिक्कत नहीं......पर यकीन है सफर थकाऊ होगा......पर क्या किया जाये.....एक सफर यूं भी सही.......सुख की बात है..कि लगभग ५० सीट की बस में १६ लोग ही हैं .......ड्राइवर सरदार जी....गुरू नानक देव जी के गुरबानी ...भजन सुनते चल रहे हैं ......कोई फिल्मी गाना- बजाना नही है......सभी निंदासे हैं....और ऐसे मे ये बहुत मधुर लग रहा है.....गजरौला में ढाबे पर चाय पानी के बाद बस फिर चल पडी है ......मेरे ठीक पीछे बैठा जोड़ा किसी घरेलू बात पर लगातार बहस कर रहा है.....और आगे बैठा हुआ लड़का बहुत धीमी आवाज में संभवत: अपनी महिला मित्र को फोन पर बड़ी गूढ़ बातें समझा रहा है.. जो कि यकीनन किसी को नहीं सुननी चाहिए. ...पर मेरे पास और कोई चारा नहीं... उनकी बात सुनने के अलावा.....कोशिश करती हूं...कि एकाध झपकी मार ही लूं........बच्चों के पास १५ दिन बिता के आई हूं....याद आ रही है सबकी....
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