ये विशुद्ध घरेलू औरतें हैं....
इनके मन से कभी भी आपसी ईर्ष्या नही जाती।अपनी ही सगी बहन, नन्द या सहेली भी अगर ज्यादा सज धज के साथ आ जाएं तो इनसे नहीं देखा जाता...... इनकी नजरों में कुढ़न - जलन साफ दिखने लगती है..... ये पास बैठ कर भी जैसे मीलों की दूरी बना लेती हैं।
किसी के रंगरूप से लेकर पहनने ओढने तक, रीति-रिवाज, घर परिवार, रहन सहन पर हिकारत भरी बातें सुनाना, अपने परिवार, अपने रस्म रिवाज को ही सर्वश्रेष्ठ समझना....पता नहीं क्या साइकोलॉजी है.....खुद को बहुत कुछ और सामने वाले को नगण्य समझना..... हर जगह बस ये ही सही हैं...छुआ छूत... भरी भावना... जाति धर्म विशेष के लोगों के प्रति नफरत भरी कटूक्तियां करना......खुद को सर्वश्रेष्ठ समझने वाली प्रवृत्ति........
मैं लगातार इनके चेहरे देखती हूँ...... कभी लगता है इनके भगवान, इनके गुरू जी, इनके व्रत त्योहार - पूजा न होती तो ये और क्या करतीं..... हर किसी में अनगिनत कमियां निकालना....वो भी बिना समय. या स्थान देखे..... मैं तो कभी भी नहीं कर पाती..... यही इतनी बाहर की दुनिया है इनकी.....
मैं कभी किसी ऐसे अवसर पर न मुखर हो पाती हूँ न बात चीत में हिस्सा ले पाती हूँ.... मेरे पास बस एक मरियल सी बेचारगी भरी मुस्कराहट है.... सबके लिए...... सबकी तरफ देख अभिवादन करने की......चुपचाप सबकी बातें सुनते रहने की..... और बस यहीं मैं घमंडी साबित कर दी जाती हूँ......
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मैं कभी कभी इन्हें देखते हुए सोचती हूँ क्या इनको कभी चिडियों की सुमधुर चहचहाहट सुनने और झिर झिर गिर रही बारिश की बौछार में भीगने की तमन्ना नहीं होती या कभी इनको जी भर कर खुला खूबसूरत नीला आसमान देखने की चाहत नहीं होती होगी या ये किसी खिलते फूल के रूप रंग पर मोहित नहीं होतीं, क्या कोई प्यारी सी नर्म मुलायम बिल्ली पर प्यार नहीं आता??? क्या कोई सुंदर सुरीला गीत इन्हें अच्छा नहीं लगता....किसी साहित्य, किसी कहानी-कविता, किसी सार्थक सामाजिक गतिविधियों में कोई रूचि नहीं.....
दुनिया कहां से कहां पंहुच गई...... पर वो आज भी उसी फटीचर दकियानूसी चारदीवारी में बंद हैं........
छोटी बड़ी शिकायतें, हर किसी की चुगली एक नशा है जैसे इनके लिए....और बाकी समय तो बस खाना बनाने, खिलाने... बड़ी, पापड़ बनाने, गेंहूं धुलने सुखाने, साड़ियां ,कपड़े तहाने, चूड़ियां संभालने में ही लगी रहती हैं....
दुनिया कितनी बड़ी और सुंदर है.... कितनी चीजें हैं यहां....... पर हम ज्यादा तर औरतें झड़ते बालों, ठहरी उम्र, अलाने-फलाने के मोटापे, तरह तरह की डिशेज, डायटिंग, फैशन और मेकअप और दूसरों की बुराई से अलग बातें क्यों नहीं करतीं??.....
इन औरतों के बीच मेरी जैसी बोर और "पता नहीं मुझे क्या चाहिए"टाइप वाली औरतें बड़ी मिसफिट साबित हो जाती हैं..
चुगली में आखिर क्यों मजा नहीं आता मुझे यार???
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