दुनिया को ढेर सारे अंतर्दृष्टिपूर्ण उद्धरण देने वाले सत्रहवीं सदी के मशहूर निबंधकार फ्रांसिस बेकन ने अपने लेख 'ऑन रीडिंग' में लिखा है- 'कुछ किताबें बस चखने के लिए होती हैं, कुछ भकोस जाने के लिए, लेकिन बहुत कम किताबें चबा-चबा कर पचाने के लिए होती हैं।'
किताबों की एक और क़िस्म होती है जिनके बारे में लेकिन बेकन ने नहीं लिखा। ये वे किताबें होती हैं जिन्हें घूंट-घूंट पिया जाना चाहिए- उनका पूरा रस लेते हुए, उनके नशे में डूबते हुए और उनके साथ खुद को कुछ बदलते हुए।
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