जिंदगी में इतनी उलझनें हैं कि.... हम बचपन की शरारतों को भूल जाते हैं......और ये भ्रम पाल बैठते हैं कि अब हम बड़े हो गए हैं.......हमें ऐसी शरारतें नहीं करनी चाहिए.....पर सच पूछो तो हर किसी में एक छोटा सा बच्चा हमेशा ज़िंदा रहता है.......जो वक़्त बेवक्त शरारतें करना चाहता है........हर तरह की फ़िक्र से दूर खूब देर तक सोना चाहता है........अपने हर काम में किसी की रोक टोक नहीं चाहता है.......जी भर कर हंसना चाहता है.....मनचाहा न होने पर जी भर कर रोना चाहता है....किसी से चिढ जाने पर..... उसे जीभर कर पीटना चाहता है....और कोई जी दुखाने वाली बात हो जाने पर चाहता है कोई हमें भी पुचकारे.......प्यार से समझाए........बिना झिडके हमारे आंसू पोंछ दे .......और सर पर हाथ फेर कर कहे........कोई बात नहीं सब ठीक हो जायेगा.......चिंता मत करो....
कहाँ गए वो हाथ ???. जो हमारे दुखी और उदास होने पर सर सहला कर और पीठ थपथपा कर सांत्वना देते थे.....
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