मेरे रिटायरमेंट के अवसर पर हमारे बच्चे यहां मनकापुर आए.....
वो अपने पुराने शिक्षकों और मेरे पुराने साथियों से मिलने के इच्छुक थे....स्कूल तक आने पर कुछ एक से मुलाकात हुई भी...... अब यहां से जाने के बाद संभवतः फिर सबका एक साथ एकत्र हो पाना नहीं हो पाता..... हम सबकी भी इच्छा थी कि थोड़ा समय हम सब एक साथ बिताते.....
पहली बार नाती और मेरी बहूरानी के आगमन और नाती की दूसरी वर्षगांठ पर एक छोटी सी पार्टी करने की भी दिली तमन्ना थी....... पर मेरे रिटायर होने की तारीख, बच्चों की पांच दिनों की छुट्टी, स्कूल में गांधी जयंती और दशहरे की चार-पांच दिनों की छुट्टियां सब आपस में ऐसा गड्ड-मड्ड हुईं कि मन लायक कुछ हो ही नहीं पाया...... ज्यादा तर लोग ज्वाइन नहीं कर सके.... खैर जो भी आए मैं उनकी शुक्र गुजार हूँ......अब पता नहीं यहाँ से जाने के बाद फिर कभी उन सबसे जीवन में मुलाकात होगी या नहीं.... नहीं जानती........ अपनी मित्रों के इस छुअन भरे स्नेह के सामने मुझे धन्यवाद कहना बहुत छोटा और औपचारिक लग रहा है...... .
अब मनकापुर छोडने का वक्त नजदीक है...... मनकापुर छोड़ते हुए.... मुझे लग रहा है जैसे आज तक हमेशा हर जगह लिखा जाता रहा....... मेरा स्थाई पता खो गया है.... एक बड़ी कमी एक अधूरापन सा महसूस हो रहा है.... जैसे मैं किसी ऐसे अनजान स्टेशन पर उतरने वाली हूँ....... जिस स्टेशन का नाम तक मुझे मालूम नहीं है.... अब फिर से एक नया शहर.....नई शक्ल में देखूँगी...... और हर तरफ एक नई ख़ुशबू महसूस करूँगी ......लगता है फिर सबकुछ नए सिरे से शुरू करना होगा......
शायद इसी तरह मैं अपने सपनों को ज़िंदा रख सकती हूँ .
आठ -दस जगहों की लिस्ट बना रखी है जहां जाने की बड़ी तमन्ना है..... कामकाजी व्यस्तता की वजह से नहीं जा सकी..... अब मैं वो सारी जगहें देखना चाहती हूँ....(पर शायद अब शरीर साथ नहीं दे रहा)..... मैं हर उस शख्स से मिलकर इत्मिनान से बात करना चाहती हूँ ,जिससे कभी न कभी मिलने का वादा किया था... कई किताबें दो- चार पन्ने पढ़ कर रख दीं थीं ये सोचकर कि किसी दिन फुर्सत में पढूँगी..... अब वो सारी किताबें आराम से पढ़ना चाहती हूँ...... ढेर सारी पेंटिंग्स बना लेने का मन है....
अब रसोई में वो हर उल्टा पुल्टा एक्सपेरिमेंट करना चाहती हूँ जो कभी इस डर से नही किया कि शायद गडबड़ न हो जाए.... मुझे नहीं पता कि ये सच है या मैं किसी गलतफहमी में हूँ..... पर अब लगता है कि अब तक जिंदगी का एक लंबा दौर सिर्फ दूसरों को खुश करने, रोजी कमाने या दुनिया के बोसीदा से खांचे में खुद को एडजस्ट करने की जद्दोजहद में ही बिता दिया है पर अब ये वाली पारी तो मेरी होनी चाहिये.....अब अपनी मर्जी से बाकी बचे हुए दिन... जी लेने की इच्छा है....... बिना किसी बंदिश के.....
हर इंसान के जीवन में एक वक्त आता है जब इंसान ये समझ ही जाता है कि खुशियाँ बहुत बड़ी-बड़ी उपलब्धियों में नहीं जिंदगी से जुड़ी छोटी-छोटी बातों में छुपी होती है........शायद अपनी व्यस्तता और कहीं मूर्खता वश भी...... मैं यहाँ तक पहुँचने में काफी लेट हो गयी... मुझे नहीं पता ये क्या है, ये उम्र और जीवन का कौन सा पड़ाव है........ हो सकता है ये मेरी समझ नहीं मेरा भरम भर हो पर जो भी है अच्छा है.......
अच्छा लग रहा है........
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