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Saturday, August 27, 2022

नौकरी और मैं

          मुझे अपनी नौकरी से बहुत  प्यार तो कभी नहीं था हां पर नफरत भी नहीं थी..... बस थोडा व्यस्त रहने का एक जरिया सा था..... जब मुझे अनावश्यक से कुछ कारण बता कर दूसरे सत्र में जॉब देने से मना कर दिया गया तभी नौकरी से पहली नफ़रत ठीक उसी समय हो गयी थी...... दोबारा नौकरी ज्वाइन करने से लेकर आज तक निभाए चले जाने तक का एक लंबा सफर है.....कभी कभी लगता है बिना किसी मंजिल का ये सफर बहुत निरर्थक तो नहीं रहा..... बहुत से फायदे भी रहे.... पर जीवन भर की इस तपस्या को फायदे नुकसान की तराजू में नहीं  तोला जा सकता..... इसका कोई मापदंड नहीं है......
               माँ बनना मतलब पूरी दुनिया बदल जाने जैसा होता है किसी भी औरत के लिए...... और जब ऐसे में फैमिली सपोर्टिव न हो..... नई नई नौकरी हो... तब बिल्कुल एक चक्रव्यूह में घुसने और निकलने जैसा होता है.... मेरी बिटिया कब पैदा हुई और कब पाल पोस कर स्कूल में पढने की एज में मुझे सौंप दी गई .... मुझे पता भी नही चला........ मैं मम्मी की कृतज्ञ हूँ.... मेरी बिटिया की उस उम्र की सारी जिम्मेदारी उठाने, मेरी पढ़ाई पूरी करवाने में मम्मी का बहुत सहयोग रहा......पता नहीं मैं इतनी सहयोगी दादी-नानी बन पाऊंगी  या नहीं😕😕
            दूसरी डिलीवरी के बाद मैं भी बहुत डिप्रेस होने लगी थी। कुछ हार्मोन्स का असर, कुछ अपने घर की हालत देखकर...... ट्रेडिशनल फैमिलीज ऐसे में और हताश करती हैं.... "500/_रुपए के लिए लड़िका के जान के पीछे परी हैं" (तब मेरी सेलेरी 500/_से शुरू हुई थी)बिना किसी सहयोग के ऐसे कमेंट्स सुनने को मिले... नतीजा जॉब छोडनी ही पडी....सारी सीनियारिटी खत्म हो गई...जब किसी ने मेरे  ज़रा से बच्चे को  ज़्यादा खास प्रियॉरिटी नहीं दी ..... मदद करने के बजाय कमेंट मारने को सब तैयार....  तमाम जली कटी भी सुनी,  बच्चे के लिए कोई कुछ करने को तो तैयार नहीं लेकिन मेरे काम मे नुक्स निकालने को सब के मुंह खुले हुए...... मैं उसकी माँ हूँ तो मैं उसका ध्यान अच्छे से अच्छा ही रखूंगी ये तो स्वाभाविक है .....सब मिला कर नतीजा यही रहा ...अभी तक संभल नहीं सकी हूं...."जॉब में हूँ और सैटिस्फाई हूँ".... इस बात की बस तसल्ली देनी पडती है मन को......अगर पतिदेव का सहयोग न मिला होता तो शायद ये संभव नहीं होता.... और तभी से.. .सभी से....... जैसे मन खट्टा सा हो गया मेरा हमेशा के लिए..... और अब तो जैसे किसी से कोई घनिष्ठता और आत्मीयता ही नही रही...ये जरूर है कि चेष्टा करती हूँ........ सबके सामने  सामान्य बनी रहूं.... अपने मनोभावों को छिपा ले जाऊँ.....पर कभी-कभी असफल भी हो जाती हूँ....अंतर्मुखी और अल्पभाषी होने के कारण घमंडी तो पहले से ही प्रचारित हूँ.....पर  अब तो  मुझे जो ठीक लगता है... हर हाल में वो ही करती हूँ....... मुझे अब किसी की कोई चिंता नहीं है...... 
           इतना होने पर भी मैं भूलना चाहती हूँ सब........ कि छोड़ो अब याद करने से कोई फायदा नहीं पर..... कभी कभी मन में ये कसकने सा लगता है.... . ज़िंदगी में मैंने बहुत से लोगों को माफ़ किया ...... क्यूँकि मैं "छोड़ो जाने दो" में  यक़ीन करती हूँ ..
लेकिन कुछ लोगों को कभी माफ़ नहीं करूँगी …

रिश्तों की भी कोई "एक्सपायरी डेट" होती है क्या???
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3 comments:

  1. बिल्कुल सही मैम👏🌼🌼

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  2. ...सौभाग्य है कि एक भरे-पूरे परिवार से तुम जुड़ी..और जीवनसाथी संग जीवन पथ पर अग्रसर रहीं... बरतनों की तरह ख़नकते ढ़ेर सारे इष्ट-मित्र में बहुतायत चाहने व जान छिड़कने वाले भी होंगे... मुंडे-मुंडे मतिर भिन्न: प्रचलित कहावत ही बताती है..कि सब एक सोच के नहीं हैं... सो, जो बीत गया सब अच्छा था..और जो बीतेगा..वह सब भी अच्छा ही होगा..और हमें सीख दे कर बीतेगा... भावनात्मक सुन्दर दृष्टान्त...👌💕

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    1. बस यही तसल्ली है कि आपका साथ हर कदम पर बना रहा....और उम्मीद है कि हमेशा बना रहेगा.... आमीन

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