दही के लिए मेरा ननिहाल एरिया (गोरखपुर, अब महराजगंज) बहुत मशहूर है.... बचपन से ही इतनी ज्यादा दूध, दही, मलाई, रबड़ी की शौकीन रही हूं जिसकी हद नहीं 😊😊😊 (अब तो इनका सपना भी देख लूं तो कैलोरी बढ जाती है 😕😕😔😔😢😢😢) याद है कि मौसी, मामा जी, और मेरी खुद की शादी में १५-२० किलो दूध की खूब बढ़िया जमाई हुई दही"खूब मोटी साढ़ी वाली, (औटा औटा कर भूरी गुलाबी मोटी मलाई, जो रोटी की तरह हाथ में उठाई जा सकती थी) दही नाना जी ने तैयार कराई थी... जो कई घंटों तक मुलायम चादर में बांध कर टांग दी जाती थी.... फालतू पानी निकल जाने के बाद जो बचता था, वो होता था निखालिस खोए जैसा सॉलिड, मलाईदार, गाढ़ा, मीठा, शुद्ध दही.... दही का कंडेंस्ड रूप.... एक कटोरी दही से एक भगोना नॉर्मल दही बनाया जा सकता था.... पर हमको तो सॉलिड वाला रूप ही पसंद था😊😊😊जो फ्रिज में रख देने के बाद बिल्कुल आइसक्रीम की तरह खाया जा सकता था.....
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अब कभी नहीं लौटेंगे वो दिन 😞😞
कुछ अनकहे पल ..कुछ अनकही बातें ......कुछ अनकहे दर्द कुछ अनकहे सुख ......बहुत कुछ ऐसा जो सिर्फ महसूस किया .....किसी से बांटा नहीं . ...बस इतना ही .......
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Thursday, December 10, 2020
यादें
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