हम जैसे सीमित आमदनी वाले लोगों के यहाँ कितनी ही योजनाएं बनती बिगड़ती रहती है.… कितने दिन तो उस योजना की कल्पना में ही बिता लिए जाते है…। शेखचिल्ली वाले सपने। ।लेकिन सबसे अच्छी बात ये है कि यदि ये कल्पनायें या योजनाएं पूरी न भी हों तो ज्यादा तकलीफ नहीं होती क्यों कि हम इनके अभ्यस्त हो चुके हैं
No comments:
Post a Comment