मधुबन की एक याद |
मधुबन का नाम लेते ही , ज़ेहन में सबसे पहले उभर कर आती है वो जगह .... ...जहाँ कभी ...राधा नृत्य किया करती होंगी.......वो गाना है न .. मधुबन में राधिका नाचे रे ..........तब हम लोग सोचा करते थे कि इस जगह का नाम मधुबन क्यों रखा गया ??....ये राज तो बाद में खुला .कि उस मधुबन से और यहाँ से कोई मतलब नहीं....और यहाँ राधा नहीं नाचतीं , हाँ कई राधा कृष्ण टाइप जोड़े जरूर वहां मिल सकते थे ....
हमने जब फाइन आर्ट्स
बी.एच. यू. में एडमिशन लिया था...... तो वहां मनचाहा विषय पढने की ख़ुशी ..... और जब जी चाहे कैंटीन में जाकर चाय पीने की आजादी ... दोनों ने इतना लुभाया था , जिसकी हद नहीं.......तब
तक घर पर चाय नहीं पीने दी जाती थी, इस लिए कि बच्चे (! ) चाय नहीं पीते हैं, और चाय पीने से काले हो जाते हैं ....ऐसा माना जाता था
, .उस समय अगर ५ रुपये भी पर्स में होते थे .....तो हम खुद को अमीर समझते थे.....और दो तीन
लोग उसमे चाय और समोसे या ब्रेड पकौड़े विद चटनी खा लेते थे.........
यादव जी ,मधुबन की
कैंटीन के सेवक थे ,,,,,,और हम सब पर उनकी विशेष कृपा रहती थी....कई बार ऐसा भी हुआ है कि ...
हमने छ कप चाय पी है और पैसा चार का ही दिया है ..... पर यादव जी ने कभी उसके लिए तकादा नहीं
किया.......... उस समय वो समोसे (हमेशा के मेरे फेवरिट) इतने अच्छे लगते थे और उसके
साथ की खट्टी चटनी क्या कहने !!....अक्सर बिना भूख के भी खाए जाते थे......
वहां की हरी
घास पर बैठना.....बल्कि घंटो बैठे रहना ... कितनी ही प्रेम कथाएँ वहां जन्मी.....और
अपने अंजाम तक भी पहुंची.....( और कई अधूरी भी रह गई ...)
बगल में ही संगीत और मंच कला संकाय हुआ करता था. ...(आज
भी है ) एक से एक दिग्गज कलाकार वहां होते थे.....सितार ,वायोलिन की आवाज और तबले की मीठी ठन ठन , ढोलक की धमक , और सुमधुर स्वर लहरियां
गूंजा करती थी.....पूरा माहौल बहुत संगीतमय होता था......
हमारे कॉलेज से
मधुबन तक आने के लिए एक छोटा सा तालाब पार
करना पड़ता था.....तालाब इस लिए कह रही हूँ क्यों कि हमेशा वहां पानी भरा होता था
....पर उसे पार करने के लिए एक संकरा सा करीब
५० कदम का रास्ता था ...जो दोनों और बोटल ब्रश के पेड़ों से घिरा हुआ था.....करीब पांच
या छ फीट चौड़े रास्ते को .. बोटल ब्रश के पेड़ों ने बेहद रोमांटिक तरीके छुपाया हुआ
था.....और वो जगह दूर से देखने पर बेहद खूबसूरत लगती थी.........अक्सर लैंड स्केप की
क्लासेस के लिए हमें जब भी बाहर ले जाया जाता था, तो हम सब वहीँ जाते थे......अपने अपनी
पसंद की जगहें चुन कर सब बैठ जाते थे....और काम करते थे.....कितने ही स्केच बनाये हैं
वहां के....पर अफ़सोस है की अब कोई भी चित्र मेरे पास नहीं.....
कभी कभी पम्मी लाल सर
....पूरी क्लास को लेकर भी वहां गए हैं......और कितनी ही बातें हमारे साथ शेयर की हैं....अपने विदेश के अनुभव .... नए नए काम करने
के तरीके..... बहुत मजा आता था....... वहां हमारे कई सिनिअर छात्रों द्वारा बनाई हुई
मूर्तियाँ आज भी वैसे ही लगी हुई हैं....... पहले पहल तो हमें समझ नहीं आता था कि ऐसे
अमूर्त चित्रण क्यों किये जाते हैं..... बाद में जब कुछ कुछ कला की जानकारी हुई तो उन
मूर्तियों में भाव समझ आने लगे.......एक बहुत बड़ी स्त्री मूर्ति हमारे सामने ही तैयार
हुई.......अखिलेश राय जी की बनाई हुई एक कृति पत्थर शायद मार्बल में वहां लगी है......जो
हमारे सामने ही लगाई गई थी......
वहां बहुत सारे , बहुत ऊंचे ऊंचे
,इमली के पेड़ थे...जिनमे मौसम में इतनी इमलियाँ आती थीं... कि पूरा
पेड़ उनसे लद जाता था.......हमने बहुत बार वहां से इमलियाँ बटोरी हैं....और तोड़ी भी
हैं......पता नहीं अब पेड़ हैं कि नहीं .......ये
१९७९ से ८७ के बीच की बात है....जिस दरम्यान
हम वहां पढ़े ....
संगीत संकाय
से भी लोग आ आ कर वहां चाय पीते थे ...पर तब
हमें नहीं पता था कि आज जो इतने सहज उपलब्ध लोग दिख रहे हैं.... .वो कल को कितने बड़े
कलाकार बनने वाले हैं...... मुझे याद है ... संगीत संकाय की श्रीमती एन. राजम.जिन्हें मैं व्यक्तिगत रूप से नहीं जानती थी..तब
.. .बस ये जानती थी की वे यहाँ वायोलिन सिखाती
हैं.....कुछ एक बार वे मेरे साथ कॉलेज से
लंका ( बी. एच. यू. गेट ) तक रिक्शा से भी गईं ..... तब मुझे भी गिटार या वायलिन सीखने
की धुन चढ़ी हुई थी.......इस बाबत मैंने उनसे बात भी की ...... पर बात आगे नहीं बढ़ सकी क्यों कि मैं फाइन आर्ट्स की
छात्र थी....और एक साथ दो कोर्स नहीं कर सकती थी........काफी दिनों बाद मुझे मालूम
हुआ कि वे तो अंतर राष्ट्रीय स्तर की कलाकार हैं......जिनके अनगिनत प्रसंशक और सुन
ने वाले हैं.....शायद ये इस लिए भी था कि तब टेलीविजन का इतना व्यापक प्रभाव नहीं था.....और
कलाकारों को ज्यादातर लोग शक्ल से नहीं पहचानते थे ......मधुबन में आने जाने से कई महान कलाकारों
को भी देखने को सौभाग्य मिला......अब टी. वी. पर या नेट पर देख कर याद आता है कि उनको कॉलेज और मधुबन में देखा है....
मधुबन में हमने बहुत अच्छा समय बिताया है......गाने सुने हैं.....वीरेंद्र भाई से मुकेश के गाने सुन ने में कितना मजा आता था.... सब याद आता है तो जी खुश हो जाता है.... ........आज चंचल दा से मालूम हुआ कि मधुबन पर्यटन स्थल .....बन रहा है ये जान कर तो बड़ा ही गर्व महसूस हुआ .....कि कभी अतीत में हम उसका हिस्सा रहे हैं ...........
Brings back old memories. Nice writing Smita! Keep it up.
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