गाड़ी के घर से निकलते ही नहीं छूटा मनकापुर
वो बहुत देर तक हमें दिखाई देता रहा....
बहुत देर हमारी यादों में बना रहा...
आज भी बना हुआ है.....
अब हम मनकापुर को उसके क़िस्सों से याद करते हैं
और करते रहेंगे
अनगिनत बातें, अनगिनत किस्से
जो गोदने की तरह गुद गए हैं मन की चमड़ी पर....
कितनी भी चेष्टा कर लें अन्य जगहें ..... हमें उतना सहेज नहीं पाएंगी....
जितनी सहजता और शालीनता से
अपनाया था उस नितांत अजनबी जगह ने हमें.....
जिस जगह के बारे में कभी कोई चर्चा तक नहीं सुनी थी...
भूगोल के किसी पाठ में भी नहीं पढ़ाया गया जिसके बारे में...
दुनिया के नक्शे में कभी नहीं खोजा था जिसे..
उस जगह से इतना विकट मोह!!!
जहाँ की खूबसूरत सुबहों का नशा
एक सुहानी खुशबू सा हमारे आसपास छाया रहता है.....
सुंदर हरियाली, मनवर नदी का पुल, राजा मनकापुर का राजमहल
और करोंहानाथ का शिव मंदिर
जिनके सामने की गई अनगिनत प्रार्थनाएं
ये सभी दृश्य
लखनऊ की सड़कों पर
आज जैसे अदृश्य हो कर भी चलते है हमारे साथ....
हमारी प्रतीक्षा में बैठी ढेरों चिड़ियाँ,
उदास आम, अमरूद और नींबू के पेड़
सूखती हुई तुलसी की क्यारियाँ ,
खूब हरियाई हुई मनी प्लांट की ढेरों बेलें जिनके पत्ते अब खूब बडे़ बडे़ हो चले थे.... ,
कूकती कोयलें,
हल्ला-गुल्ला मचाती बदरंग ऊदे रंग वाली सेवेन सिस्टर्स
और हरी आँखों वाला मासूम सा बिल्ला...
धीरे-धीरे हमारा रास्ता देखते देखते एक दिन उम्मीद खो देंगे...
सबसे पूछते तो जरूर होंगे शायद, हमारे आने की खबर...
रास्ता देखते सब कुछ अक्सर ठहर सा जाता है.....
वहां से दूर रहकर जब भी मन बेचैन होने लगता है
मन जैसे पलटने लगता है अतीत के एलबम के पन्ने,
वो स्मृतियाँ गले लगाने को मचल उठती हैं.....
बिछड़ा हुआ शहर जैसे दुलराने लगता है.......
छलकने को आतुर हो जाती हैं आँखे.....
बरस भी जाती हैं कभी कभी.
ये सोच कर भी बेचैन हो उठती हूँ कि अब लौटना नहीं हो सकेगा वहाँ....
जी में कुछ कसकने सा लगता है.....
जब कभी,
बडे शहरों की भागम-भाग
और गहमागहमी से घबरा कर
आखिर जब मनकापुर की चौहद्दी में पंहुच जाते थे
तो यही आभास होता था कि बस......
अब कहीं नहीं जाना.... अपना घर आ गया......
ताला खोलते ही अपने घर की चिरपरिचित सुगंध
अपना बिस्तर.... और चैन की नींद
पर कहां... अब तो
छोड़ आए हम वो गलियाँ..... .