लिखिए अपनी भाषा में

Monday, October 14, 2024

😢😢😢

इधर कुछ ड्रेसिंग सेन्स विकसित होता तब तक शरीर का मध्य देश ऐसा बेढब बेडौल विकसित हुआ कि अब नाप के कपड़े मिलना दुश्वार हो चला है.शरीर की चर्बी जलाना सैद्धांतिक रूप से जीवन की सर्वोच्च प्राथमिकता है लेकिन कहते हैं कि स्वर्ग का रास्ता सदिच्छाओं से पटा  पड़ा है ऐसे ही तमाम सदिच्छाओं के बावजूद मनुष्य के पेट के रास्ते में ठसाठस चर्बी भरी पड़ी है.

            अब कम न कर पाने की बेबसी में जीना तो मुल्तवी नहीं किया जा सकता लिहाज़ा थोड़ी झेंप से ही अपनी तमाम कमियों के बावजूद  जिए जा रहे हैं l

Saturday, October 12, 2024

बनारस की रामलीला

अपने बचपन में देखी रामलीला  याद आती है...जो बनारस के हर गली मोहल्ले और चौराहों पर होती थी..और सिर्फ राम दरबार और आरती के लिए छोटा सा सोफा नुमा मंच स्थाई रूप से बना हुआ होता था  बाकी रामलीला नुक्कड़ नाटकों की तरह जमीन पर ही खेली जाती थी.....चारों तरफ से जनता /दर्शक घेरे रहती थी....ज्यादा जोशीले बच्चे  सजे धजे राम लक्ष्मण और सीता को लगभग छू लेने की हद तक घेरा तोड कर अंदर पंहुच जाते थे...जिन्हे रामलीला संचालक थोड़ी  थोड़ी  देर पर डंडे से हांक कर पीछे कर देते थे.....
           पेट्रोमेक्स,ढोल, नगाडे़,पिपिहरी,शहनाई वाले भी पूरे जोश में होते थे ..कुछ दृश्य  आज भी ज्यों के त्यों आंखों के सामने हैं....एक तो मोटे शीशों वाला चश्मा और घड़ी  लगाए हुए दशानन.....,एक और दृश्य  में मोटी दफ्ती की बनी लकड़ी  के हैंडल वाली चमकती तलवार जो हर बार मेघनाद के लहराने पर लफलफा के मुड़ जाती थी,और उनके ज्यादा  जोश में आ जाने पर टूट के दो टुकडे़ हो गई  थी,और एक दृश्य जब रावण और राम के युद्ध के समय एक वृद्ध व्यक्ति  जोर जोर से चिल्ला पडे़ थे "मारिए मारिए महराज ...रवणवा को मारिए...काट डालिए ससुरे को"😁😁😁😁 आसपास के सारे लोग हंसते हंसते लोट पोट हो गए  थे,😂😂😂😂